एक भीड़ है। उस पर किसी का नियंत्रण नहीं है। वह आजाद है। कहीं कहीं उसे सत्ता संरक्षण मिला हुआ है, तो कहीं वह कानून को धता बताते हुए मनमानी करती है। अब उस भीड़ की एक पहचान भी बन गई है। गले में भगवा पट्टा। हाथ में स्मार्ट फोन। स्मार्ट फोन इसलिए कि अपनी कारगुजारी रिकॉर्ड भी करनी है, ताकि उनके आकाओं को पता चल जाए कि उनका मिशन गंभीरता से अंजाम दिया जा रहा है।
भीड़ आती है और किसी अखलाक के घर में घुसकर उसे मार डालती है। दूसरी भीड़ अलवर में एक पशु व्यापारी को गौ तस्कर बताकर मार डालती है। बताते रहिए कि हम पशु व्यापारी हैं। हम गाय पालते हैं। हमने वैध तरीके से गाय खरीदीं हैं। लेकिन जब मकसद ही सबक सिखाना हो तो सभी अपीलें दलीलें धरी रह जाती हैं। एक भीड़ और है। उसने संस्कृति बचाने का ठेका लिया हुआ है। हालांकि बाद में पता चलता है कि दरअसल वे लुटेरे हैं। यह तय करना मुश्किल है कि ‘एंटी रोमियो स्क्वाड’ पुलिस चला रही है या उन शोहदों के हाथ में कानून दे दिया गया है, जो खुद बड़े वाले शोहदे हैं। यूट्यूब खोलिए। उनमें आपको बहुत सारी ऐसी वीडियो मिलेंगे, जिनमें संस्कूति के ठेकेदार किसी कपल को रोक कर उन्हें जलील कर रहे हैं। अभी एक वीडियो देखा है। एक कपल को रोक रखा है। एक लड़की बाइक पर पीछे बैठी है। लड़की आर्तनाद कर रही है, भैया हमें जाने दो… तुम्हें भगवान का वास्ता…भैया हमें जाने दो…भैया हमें जाने दो। लड़की के हाथ बराबर जुड़े हुए हैं। लेकिन ‘भैया’ का दिल नहीं पसीजता। थोड़ी देर बाद ‘भैया’ की असलियत सामने आती है। वह लड़की के साथी से सभी पैसे हथिया लेता है। जरा सोचिए, वह बच्ची मेरी आपकी बेटी हो सकती है, बहन हो सकती है। वह दिन दूर नहीं जब इस अराजक भीड़ की जद में सब होंगे। मैं भी और आप भी। डर, दहशत और खौफ हमारे दिल के किसी कोने में बैठा दिए गस हैं। मुझे नहीं पता कि उस लड़की के दिल से दहशत कब तक जाएगी, लेकिन जो भी लड़की का आर्तनाद सुनेगा, वह भी दहशत से भर उठेगा। अतिथि देवो भव: वाले देश में भीड़ उन विदेशी छात्रों पर टूट पड़ती है, जिनका रंग काला है। जिनके बारे में धारणा बना ली गई है कि ये लोग जन्म से अपराधी हैं। इनका यहां रहना देश के लिए खतरनाक है। यह तब है, जब ये लोग घुसपैठिए नहीं हैं। भारत सरकार ने इन्हें वीजा दिया है। ये लोग यहां पढ़ने के लिए आए हैं। कहा जाने लगा कि ये ड्रग्स का धंधा करते हैं। हमारी युवा पीढ़ी बरबाद हो रही है। ऐसा कहते हुए भीड़ यह भूल जाती है कि हमारे अपने देश के लोग भी ड्रग्स का धंधा करते हैं। अवैध शराब बनाते हैं, अफीम, चरस, गांजा बेचते हैं। ये धंधा करने वाले अफ्रीकी देशों के नहीं हैं। इसी देश के हैं। और हो सकता है कि उस भीड़ का हिस्सा भी बनें हों, जिसने अफ्रीकी देशों के छात्रों को पीटा। सत्ता का रंग देखिए। हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज अफ्रीकी छात्रों पर हमले को नस्ली हमला मानने को तैयार नहीं हैं। विदेशी मीडिया में हमारी थू थू हो रही है। लेकिन भीड़ को बचाने के लिए सत्ता कितने नीचे तक उतर सकती है, यह सामने आ गया। लेकिन जब हमारे अपने लोगों पर अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और आॅस्ट्रेलिया में हमला होता है, तो हम तड़प उठते हैं। हम अभी दूसरी खुमारी में हैं। हम देश बदलता हुआ देख रहे हैं। वाकई हम देश बदलता हुआ देख भी रहे हैं। एक ऐसा बदलाव, जिसमें भीड़ फैसला करेगी। सत्ता उसका समर्थन करेगी। भीड़ के कुकर्म के बचाव में सत्ता के चाटुकार हजारों तर्क देंगे। आंखें तब खुलेंगी, जब भीड़ आपके दरवाजे पर भी होगी। जब पड़ोसी के घर में आग लगती है, तो उसकी तपिश जरूर पास के घरों तक पहुंचती है।
0