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2014 के बाद पहली बार कांग्रेस भाजपा पर भारी पड़ती दिख रही है

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पहली बार गुजरात चुनाव को ले कर कांग्रेस वह अक्लमंदी और दूरदर्शिता दिखा रही है, जो उसे संसदीय चुनाव के बाद होने वाले सभी विधान सभा चुनाव में दिखाना चाहिए था. क्योंकि इन चुनावों में बीजेपी की जीत उसकी लोकप्रियता से ज़्यादा उसके चुनाव मैनेजमेंट और तिकड़मबाज़ी की जीत थी. जिसका शर्मनाक सुबूत गोवा और मणिपुर में उसका हार के बाद भी जोड़ तोड़ और गवर्नर की खुली बेईमानी के कारण सरकार बना लेना था I
गुजरात में कांग्रेस ने पिछड़े वर्ग के सर्वमान्य नेता ओल्पेश ठाकुर को कांग्रेस में शामिल कर लिया है. इसके अलावा राहुल के ताबड़तोड़ दौरो और आक्रामक अंदाज़ ने नोटबंदी और GST की मारी जनता को एक आवाज़ दे दी है. उधर दलित नेता जिग्नेश मेवानी से भी बातचीत लगभग फाइनल स्टेज पर पहुंच चुकी है. पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने  यह तो कहा है,कि उनका पहला मकसद बीजेपी को गुजरात से उखाड़ फेंकना है. लेकिन वह अभी कांग्रेस के ले कर अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं. NCP जैसी अविश्वसनीय पार्टी को साथ लेना या न लेना भी उसके सामने एक बड़ी समस्या है.  AAP भी कांग्रेस का खेल बिगाड़ने के लिए मैदान में आ रही है.
बीजेपी भी चुप नहीं बैठी है,लेकिन उसका हर दांव counter productive हो रहा है. क्योंकि जनता इन तिकड़म बाजियों को एक हद से ज्यादा पसंद नहीं करती. चुनाव आयोग द्वारा चुनाव का एलान ना किया जाना बीजेपी की कमजोरी और निराशा झलका रहा है. केंद्र और राज्य सरकार अब जो एलान कर रही है,जनता उन्हें चुनावी लाली पॉप समझ रही है.
बीजेपी ने तिकड़म बाजी भी शुरू कर दी है फूट डलवाना उसका पुराना हरबा है, पाटीदार आन्दोलन के दो महत्वपूर्ण नेताओं को उस ने हार्दिक पटेल से तोड़ लिया है इससे पहले कंग्रेस को झटका देने की गरज से उस ने शंकर सिंह वाघेला को तोड़ लिया था. लेकिन राज्य सभा के चुनाव में अहमद पटेल की जीत से बीजेपी के मंसूबे पर पानी पड़ गया था.
बीजेपी को हिंदुत्व और विपक्ष की फूट का ही अंतिम सहारा है.क्योंकि गुजरात चुनाव उसकी मौत जिंदगी से जुड़ा है. इस लिए वह गुजरात जीतने के लिए साम दाम दंड भेद और नंगी साम्प्रदायिकता समेत कोई भी हथकंडा प्रयोग करने से पीछे नही हटेगी. कुल मिला के यह चुनाव कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए अत्यंत फैसला कुन साबित होने वाला है.