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पहले भूख से बच्ची की जान गयी, अब गाँव वालों और दबंगों ने धमकाया

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देश की आर्थिक स्थिति की ख़बर हो या भूख मिटाने संबंधित ख़बर, हर क्षेत्र में भारत पिछड़ता ही जा रहा है. क्या आपने कभी गौर किया क्यों? नहीं किया होगा, हाँ हम ये ज़रूर गौर कर लेते हैं, कि किस ख़बर के सामने आने से और पीड़ितों के सामने आने से देश, राज्य, शहर या गाँव का नाम बदनाम हो रहा है.
कुछ दिन पूर्व झारखंड में आधार कार्ड लिंक न होने पर राशन न मिल पाने की वजह से सिमडेगा जिले में स्थित कारीमाटी गांव में भूख से दम तोड़ने वाली 11 साल की संतोषी कुमारी की मां कोयली देवी और उनका परिवार अपने घर में डरा और सहमा हुआ है. ख़बरों के अनुसार शुक्रवार की शाम को  संतोषी कुमारी के परिवार को कुछ लोगों ने घर में घुस कर धमकी दी, हंगामा किया और गांव से निकल जाने के लिए कहा.
इस घटना के बाद डरी-सहमी कोयली देवी ने  किसी तरह रात बिताई और शनिवार की सुबह अपने परिवार के साथ गांव छोड़ दिया. कोयली देवी के परिवार के सभी लोगों ने पड़ोस के गांव पतिअंबा में रहने वाले संतोष साहू के घर में शरण ली.
इस घटना की सूचना मिलने के बाद प्रशासनिक स्तर पर हड़कंप मच गया था. जिसके बाद उपायुक्त ने जलडेगा बीडीओ और थाना प्रभारी को कोयली देवी के परिवार को वापस उसके  घर लाने के निर्देश दिये. प्रशासनिक टीम पतिअंबा गांव पहुंची. व पूरी पुलिस सुरक्षा में कोयली देवी और उसके परिवार को वापस पांच घंटे बाद कारीमाटी में उनके घर पहुंचाया गया.
ज्ञात हो कि 11 वर्षीय संतोषी कुमारी को कई दिनों से खाना नहीं मिला था, जिसके बाद भूख से उसकी मौत हो गई थी. राशन कार्ड आधार नंबर से लिंक नहीं होने के कारण स्थानीय राशन डीलर ने महीनों पहले उसके परिवार का राशन कार्ड रद्द करते हुए अनाज देने से इनकार कर दिया था. जिस वजह से कोयली देवी के घर में दाना नहीं था.
बड़ी ही शर्म की बात है, कि अनाज न मिलने के कारण पहले तो कोयली देवी अपनी बच्ची को खो बैठती हैं, और हमारा समाज इतना बेरहम हो चला है. कि झूठी इज्जत के नाम पर कोयली देवी को ही गाँव से निकालने लगा. इस घटना के बाद होना तो ये चाहिये था, कि कोयली देवी की सभी के द्वारा मिलकर मदद की जाती. पर उनके गाँव के लोगों ने उन्हें उल्टा गाँव को बदनाम करने का इलज़ाम लगाकर गाँव से ही भगाने की कोशिश की.
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कुछ दिन पूर्व की ही बात है, कि दुनिया के 119 विकासशील देशों के हंगर इंडेक्स में पिछड़ने की ख़बर से पूरे अखबार और इंटरनेट की दुनिया रंग गई थी. क्या हमें देश के ऊपर लगे इस धब्बे को ख़त्म करनेकी कोशिशों पर ध्यान नहीं देना चाहिए. या फिर आखिरी पायदान में आने ka हमें इंतज़ार है. क्योंकि दिनों दिन देश कई क्षेत्रों में पिछड़ता जा रहा है. और हम हैं, कि झूठी शान में जीकर अच्छे दिनों का नारा बुलन्द कर रहे हैं.