आजकल हमारे देश में एक नए देवता पैदा हो गए हैं। अब वे खुद ही पैदा हुए या उन्हें भक्तों ने पैदा किया, यह कहना कठिन है। जो भी हो, देवता तो वे अब हो ही चुके हैं। जैसे सभी देवताओं की कुछ अजीबोगरीब विशेषताएं होती हैं, वैसे ही इनकी भी हैं। इनकी मगर कुछ ज्यादा ही हैं।
जैसे बहुत सारे देवताओं में कुछ मनुष्यों के, कुछ पशुओं के और कुछ देवताओं के गुण होते हैं, वैसे ही इनमें भी हैं। अब ये चूँकि कलियुग के देव हैं तो इनमें पशुओं के गुण ही ज्यादा हैं… मसलन लंगूरों की तरह नकल करना और एक डाल से दूसरे डाल पर कूदना। इनमें गधों की मानिंद रेंकने का गुण भी प्रचुर मात्रा में है।
अच्छा, इनकी एक बड़ी खासियत यह भी है कि ये कैमरे के सामने से कभी नहीं हटते। जिस दिन से पत्नी त्यागी है या शरीर के गुप्त विकारों से त्यागनी पड़ गयी है, तब से इन्होंने कैमरे से सात जन्मों का रिश्ता जोड़ लिया है
टोकरे भरकर झूठ बोलने वाले गुण के आधार पर स्वयं को ऋषि घोषित करने की एक निष्फल चेष्टा की जरूर मगर भक्त भला अपने देवता की पदावनति (डिमोशन) कैसे बर्दाश्त करते। उन्होंने झट से इन्हें फिर देवता बनाकर खड़ा कर दिया।
पहले ये शिव जी जैसे देवता होना चाहते थे। इसके लिए बहुत हर हर घर घर करवाया इन्होंने मगर क्या करें… शिव जी ने पत्नी तो कभी छोड़ी न थी। बाल-बच्चे भी थे ही। और बहुत उड़ते नही थे। एक ही जगह कैलाश विराजते थे। आँख ही कम खोलते थे तो कैमरे का क्या करते। हर हर घर घर जो हो जाय मगर भड़-भड़ कभी न करते थे। तो शिव जी बनना इनके लिए मुश्किल था क्योंकि छत्तीस छोड़िये, एक भी गुण इनके मिलते नही थे उनसे।
तब इन्होंने थक-हारकर राम होना शुरू किया। सीता तो छोड़ ही चुके हैं। लव-कुश का तो प्रश्न ही नहीं उठता। लंका विजिट कर ही चुके। हनुमान, अंगद, सुग्रीव, जाम्बवन्त आदि जैसों को पकड़ ही रखे हैं। वानर सेना ने भी हाफ पैंट बड़ी कर ही ली है।
अलबत्ता ये रघुकुलभूषण मर्यादापुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र जी महाराज से भी हजार हाथ बड़े हैं। भक्तों ने बड़ा किया है। विट्ठल कानिया और पंडित झाँसाराम से बड़े ये सज्जन का नाम “म” अक्षर से शुरू ही होता है। बेचारे राम जी का नाम यहीं इसी अक्षर पर खत्म हो जाता है। तो जहाँ राम जी समाप्त होते हैं वहाँ ये नए देवता शुरू होते हैं।
जय श्री रामोदी।
© मणिभूषण सिंह
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