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वे लग गए गाँधी जैसा दिखने की कोशिश में, मगर क्या कोई बन सकता है गांधी ?

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बहुत दिन बीते हमारे मुल्क में गाँधी जी पैदा हुए थे। बड़ी लड़ाई लड़ी उन्होंने। अपने मुल्क में भी और दीगर देश में भी। दूसरों की चोट से खुद चोटिल होते रहे और दूसरों को अपना समझकर उनके दुख-तकलीफों के निदान में खुद को होम करते रहे। अपने को जलाते-जलाते अपने मुल्क में उजाला ला दिए।
शख्शियत ऐसी कि अपने देश में ही नहीं बल्कि दुनियावी पैमाने पर भी एक नायाब मिसाल बनकर पूरी तरह छा गए। महात्मा और बापू हमने उन्हें बहुत कुछ कहा। तारीफों के पुल भी बाँधे और बाद में गालियों और गोलियों से भी उनका भरपूर स्वागत किया। वे न तो अपने सम्मान के भूखे थे और न ही किसी पद-प्रतिष्ठा या लाभ-लोभ के। उन्हें तो सिर्फ देश और दुनिया में आजादी और खुदमुख्त्यारी की रौशनी फैलानी थी। कोई स्वार्थ न था खास।
बाद में उन्हें हमने नोटों और टिकटों पर भी ला दिया। अदालतों और सरकारी-गैरसरकारी दफ्तरों में, बाजारों, घरों और गलियों में उनकी तस्वीरें लगा लीं। पूजा करने लगे उनकी और कुल मिलाकर उन्हें मंदिरों का देवता बनाकर प्रतिष्ठित कर दिया। फिर उनकी आड़ में हम ख़ुशी-ख़ुशी अपने सभी काले धंधे भी चलाते रहे।
समय के साथ कई लोग आगे आते गये। कुछ दलीलें देने लगे कि बापू गलत थे और उन्हें ठीक ही मार दिया गया। कुछ ने कहा कि अब नोट पर उसकी तस्वीर होनी चाहिए जिसने उन निहत्थे, अर्धनग्न और निर्बल महात्मा का गोली मारकर वध किया। उसी वधिक की मूर्ति भी बने और वही पूजा भी जाय। कुछ उस महापुरुष में खामियाँ निकालने लगे तो कुछ ने उनके महात्मा होने पर ही प्रश्न खड़ा कर दिया।
कुछ उन्हें मुस्लिमों का हितू बताने लगे तो कुछ ने उनमें यौन लिप्सा देख ली। कुछ को उनका सत्य और उनकी अहिंसा नहीं भाई तो कुछ लोग उन्हें बेकार, जाहिल और मुल्क ख़राब करने वाला बताने लगे।
धीरे-धीरे बापू को बुरा मानने वाले लोगों की तादाद बढ़ती चली गयी और वे मुल्क में काफी ताकतवर भी हो गए। जिस मुल्क को राष्ट्रपिता ने अपने दुर्बल हाथों से गढ़ा, आजादी दी और उसेे अपने खून से सींचा, उसी मुल्क में; उसी बापू के चित्रों तक की हत्या करने पर वे तुल गए जिन्होंने राष्ट्रनिर्माण में एक अदद ईंट तक न जोड़ी थी।

February 1948: The niece of Mahatma Gandhi (Mohandas Karamchand Gandhi) places flower petals on his brow as he lies in state at Birla House, New Delhi, after his assassination. Immediately after this picture was taken the procession left for the burning ghat on the banks of the river Jumna, where the cremation took place.


अब चूँकि दुनिया में बापू का बड़ा नाम है और इस मुल्क को भी उसी कमजोर बापू के नाम पर जाना जाता है तो उन नापाक ताकतों को न चाहते हुए भी बापू के चित्र दफन करने की तमाम हसरतों को दिल ही दिल में दबा कर ही सही लेकिन उनकी अमर स्मृतियों पर मालाएँ डालनी ही पड़ीं। तो उन्होंने एक रास्ता निकाला। वे लग गए गाँधी जैसा दिखने की कोशिश में… मगर क्या कोई गाँधी भी बन सकता है भला?
आप जो हैं वह तो दिखेगा ही। एक सज्जन पूरा इंकलाब ला रहे थे ताकि गाँधी बन सकें मगर उस पूरे इंकलाब का सुख भी कोई दूसरा उठा ले गया। देश बिचारा भले ही डायलिसिस पर चढ़ गया। वे गाँधी न हो सके।
ऐसे कई लोग कोशिश किये मगर अफ़सोस कि गाँधी एक ही थे और उनकी हमने गोली मार कर हत्या कर दी।
एक वृद्धपुरुष और आये नए-नए। तब आयुर्वेदाचार्य, गंगापुत्र और योगिराज आदि ताकत में नहीं थे। उन वृद्ध सज्जन ने भी गाँधी बनने की कोशिश में एक नौटंकी नेहरू पैदा कर दिया और उसे दिल्ली भेज दिया। एक नयी सरोजिनी नायडू भी उन्हीं दिनों उन्हीं वृद्ध सज्जन की कृपा से उभरी थीं जो वक़्त की धार में कब खो गयीं कुछ पता भी न चला। उनके गुट में प्रगाढ़ यौन लिप्सा भी दिखी और हर तरह की उन खामियों के भी दर्शन हो गए जो वे लोग बापू की छवि पर आरोपित करते थे।
वृद्ध पुरुष तो हतोत्साहित सोकर कुम्भकर्णी नींद सो गए थे मगर अपने ही जैसे एक ताकतवर और कुशल छद्म गाँधी के कुकृत्यों से पर्दा उठते देख पुनः जग गए लेकिन अब तक वे अब समझ चुके थे कि अब उन्हें जनता मजाक का पात्र मानती है। फल यह हुआ कि नींद ने उन्हें दुबारा अपने आगोश में ले लिया। अब मुल्क का सारा दारोमदार जिन कुछ लोगों के हाथ है उनमें से एक छद्म गाँधी हैं और दूसरे नए वाले स्वामी विवेकानंद। लगता है अब आयुर्वेदाचार्य राष्ट्रपिता होने की राह छोड़कर राष्ट्रपति होने की राह पर लगेंगें और नेपाली रसज्ञरंजन सदा की भाँति उनका साथ दिया करेंगें।
हे राम।
: – मणिभूषण सिंह
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