0

संघ के प्रोग्राम में क्या बोले प्रणब मुखर्जी ?

Share

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गुरुवार को आरएसएस मुख्यालय में अपनी बात रखी. यहां उन्होंने प्राचीन भारत के इतिहास, दर्शन और राजनीतिक पहलुओं का जिक्र किया. इस दौरान उन्होंने महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, बाल गंगाधर तिलक और सरदार पटेल समेत कई अन्य नेताओं के विचारों को याद किया. आइए जानते हैं राष्ट्र राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रवाद पर क्या बोले प्रणब मुखर्जी…

  • राष्ट्र, राष्ट्रीयता और राष्ट्रभक्ति को समझने के लिए हम यहां हैं, मैं भारत के बारे में बात करने आया हूं. देश के प्रति निष्ठा ही देशभक्ति है.
  • देशभक्ति में देश के सभी लोगों का योगदान है, देशभक्ति का मतलब देश के प्रति आस्था से है.
  • सबने कहा है हिन्दू एक उदार धर्म है, ह्वेनसांग और फाह्यान ने भी हिंदू धर्म की बात की है.
  • उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद सार्वभौमिक दर्शन ‘वसुधैव कुटुम्बकम्, सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः’ से निकला है.
  • भारत दुनिया का सबसे पहला राष्ट्र है, भारत के दरवाजे सबके लिए खुले हैं.
  • भारतीय राष्ट्रवाद में एक वैश्विक भावना रही है, हम विवधता का सम्मान का करते हैं.
  • हम एकता की ताकत को समझते हैं, हम अलग अलग सभ्यताओं को खुद में समाहित करते रहे हैं.
  • राष्ट्रवाद किसी भी देश की पहचान है और सहिष्णुता हमारी सबसे बड़ी पहचान है.
  • देश पर कई बार आक्रमण हुए लेकिन 5000 साल पुरानी हमारी संस्कृति फिर भी बनी रही.
  • 1800 साल तक भारत दुनिया के ज्ञान का केंद्र रहा है. दार्शनिकों ने भी भारत की बात की है.
  • भेदभाव और नफरत से भारत की पहचान को खतरा है. नेहरू ने कहा था कि सबका साथ जरूरी है.
  • तिलक ने कहा था कि स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है. तिलक ने कहा था कि स्वराज में धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं होगा
  • राष्ट्रवाद किसी धर्म, भाषा या जाति से बंधा हुआ नहीं है, संविधान में आस्था ही असली राष्ट्रवाद है.
  • हमारा लोकतंत्र उपहार नहीं है बल्कि लंबे संघर्ष का परिणाम है.
  • सहनशीलता ही हमारे समाज का आधार है. सबने मिलकर देश को उन्नत बनाया है.
  • भारत में विभिन्न धर्म, जाति और वर्ग होने के बावजूद हम एक हैं.
  • देश में इतनी विविधता होने के बाद भी हम एक ही संविधान के तहत काम कर रहे हैं…
  • देश की समस्याओं के लिए संवाद का होना जरूरी है. विचारों में समानता लाने के लिए संवाद जरूरी है…
  • हमें लोगों को भय से मुक्त करना होगा. हमें ये सुनिश्चित करना होगा कि प्रत्येक व्यक्ति की लोकतंत्र में भागीदारी हो…
  • हमने विकास किया लेकिन लोगों की खुशी के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर पाए…
  • उन्होंने कौटिल्य को याद करते हुए कहा कि लोगों की प्रसन्नता में ही राजा की खुशी होती है. राजा की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वो गरीबों के लिए संघर्ष करता रहे.
  • उन्होंने सम्राट अशोक को याद करते हुए कहा कि विजयी होने के बाद भी अशोक शांति का पुजारी था.
  • मुखर्जी ने कहा कि हिंसा छोड़ शांति के रास्ते पर चले चलना चाहिए. सभी खुश और स्वस्थ्य हों, यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए.
  • हमारा लक्ष्य शांति और नीति निर्धारण होना चाहिए. शांति की ओर बढ़कर ही मिलेगी समृद्धि.
  • उन्होंने कहा कि सरकार लोगों के लिए और लोगों की होनी चाहिए.