राष्ट्र निर्माण का मापदंड क्या है ?

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कभी संघ के विचारक देश के विकास के रूप में विश्वस्तरीय शिक्षा संस्थान, शोध संस्थान, चरक, सुश्रुत, धन्वंतरि, अश्विनीकुमारों के नाम पर, ( ये नाम भी भारतीय परंपरा के चिकित्सा शास्त्र से जुड़े प्रसिद्ध नाम हैं और संघ इन नामों पर अपना कॉपीराइट समझता है ) बड़े बड़े प्रतिभा सम्पन्न अस्पताल, चिकित्सा केंद्र , नालंदा तक्षशिला की ख्याति के अनुरूप बहु विषयीय शिक्षा केन्द्र बनाने की बात क्यों नहीं सोचते हैं और क्यों नहीं सरकार से कहते और ऐसे संस्थान बनाने के लिये सरकार पर दबाव डालते हैं ?

  • अपनी सारी ऊर्जा केवल उन्ही मामलों में ही क्यों खपाते हैं जो देश को या तो विखंडित करने की ओर बढ़ती है न या विकास को अवरूध्द करने की ओर ले जाती हैं ?
  • धर्म और उपासना पद्धति भी समाज और लोगों के लिये आवश्यक हैं पर वे इतनी अनिवार्य भी नहीं है कि हम शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य, प्रगति, आदि को दरकिनार कर के धर्म और ईश्वर के गोरखधंधे में ही फंसे रहें।
  • हममें से कितने ऐसे लोग होंगे जो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के बजाय मंदिर मस्जिद विवाद का विषैला इतिहास पढ़ाना चाहेंगे ?
  • वे अक्सर कहते हैं कि वामपंथी इतिहासकारों ने इतिहास का गलत लेखन किया है। पर वे यह कभी भी नहीं बताते कि उनका इतिहास लेखन में क्या योगदान है ?
  • क्यों नहीं इतिहास लेखन के ही क्षेत्र में कुछ नया लिख देते हैं ?
  • हम सदैव चाहेंगे कि हमारे बच्चे आधुनिक शिक्षा ग्रहण करें, आधुनिक बनें और अच्छी नौकरी और रोज़गार में जाएं और हमारा तथा हमारे देश का नाम रोशन करें न कि सड़क पर मंदिर मस्जिद के झगड़े में अपनी ऊर्जा खपायें। क्या हम ऐसा नहीं चाहते हैं ?

मैं यह सवाल अपने संघ के मित्रों से भी पूछता हूँ जो मुझे भी अपनी विचारधारा से बिल्कुल विपरीत होते हुये भी अपने बौद्धिक गोष्ठी में बड़े प्यार और सम्मान से बुलाते हैं, पर वे इसका जवाब नहीं देते हैं।
संघ के साहित्य में भी आधुनिक शिक्षा व्यवस्था के बारे में कुछ उत्साहवर्धक बातें नहीं कही जाती है। अतीत के प्रगति के संवेग में आप कोई प्रगति कभी कर ही नहीं सकते हैं। लुढक कर थम जाएंगे।
यह एक विडंबना है कि जब साक्षरता दर 12 % थी तो हमारी सरकार वैज्ञानिक सोच और शिक्षा प्रणाली की बात करती थी और विश्वस्तरीय वैज्ञानिक शोध केंद्रों की नींव डाली थीं। औऱ आज जब हमारी साक्षरता दर 75 % हो गयी है तो हम हनुमानजी की जाति, राम के मूर्ति की ऊंचाई, स्टेचू ऑफ लिबर्टी के नकल की तौर पर स्टेचू ऑफ यूनिटी में अपनी अस्मिता खोज रहे हैं।
संघ से मेरा सवाल इसलिए है कि संघ 2014 से सरकार में है। संघ तुरन्त पल्ला झाड़ेगा कि उससे सरकार से कोई मतलब नहीं है। पर सच सब जानते हैं। यह भी एक हद दर्जे की गैरजिम्मेदारी भरी बात हुयी कि सरकार आप के इशारे पर चले और आप शरमा जांय कि वह मेरी नहीं है। खुल कर सरकार से कहिये कि देश को आधुनिक वैज्ञानिक प्रगति की ओर ले चलिये। धर्म, ईश्वर, उपासना, आदि महत्वपूर्ण होंगे पर कोई भी देश केवल इनसे न तो ताकतवर बनता है, न प्रभावी, न विजसित, और न ही खुशहाल बनता है।
संघ के मित्र अक्सर राष्ट्र निर्माण की बात करते हैं। उनमें से बहुत से लोग अविवाहित रह कर राष्ट्र निर्माण में भी लगे रहते हैं। राष्ट्र के प्रति उनकी निष्ठा पर कोई सवाल नहीं है पर वे यह कभी नहीं बताते कि वे कैसा राष्ट्र बनाना चाहते हैं। आधुनिक, विज्ञान के नए नए सोपान पर चढ़ता हुआ भारत या मंदिर मस्जिद के मूर्खता पूर्ण झगड़े में उलझा हुआ एक ऐसा देश और समाज जो प्रतिगामी हो। क्या हम अपने बच्चों को एक पीछे लौटता हुआ समाज देना चाहते हैं या प्रगति की ओर अग्रसर होता हुआ भारत ?

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