प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा कल लखनऊ में दिए भाषण की चौतरफ़ा आलोचना हो रही है. कल उन्होंने लखनऊ में जो भाषण दिया उसे बुद्धिजीवी वर्ग साम्प्रदायिकता से भरा हुआ और प्रधानमंत्री के पद पर बैठे व्यक्ति को शोभा न देने वाला भाषण बताया हैं. विपक्षी पार्टियों के बाद अब बुद्धिजीवी वर्ग एवं वरिष्ठ पत्रकारों का भी कहना है, कि यह भाषण उत्तरप्रदेश चुनाव में धुरुविकरण करने की कोशिश है. जनसत्ता अखबार के पूर्व संपादक और वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने अपनी फेसबुक पोस्ट में प्रधानमंत्री के इस भाषण की तीखी आलोचना की. उन्होंने अपनी फेसबुक पोस्ट में कहा :-
“क़ब्रिस्तान बनाम शमशान , रमज़ान बनाम दिवाली . कल तक सुनामी का मुगालता था,आज फिर वही फ़िरक़ापरस्ती की शरण क्या भाजपा को अपनी जीत का भरोसा नहीं ”
इसके बाद अगली पोस्ट में उन्होंने कहा:-
“भक्त मोदी का कल के भाषण के बचाव में लग गए हैं। कि वे तो यह कह रहे थे कि धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए! बड़े नादान चेले हैं। जो पार्टी ही धर्म की बुनियाद पर चलती हो (कितने मुसलमानों या ईसाइयों को भाजपा ने उत्तरप्रदेश में टिकट दिया है?), जिस पार्टी की पहचान बाबरी मसजिद ढहा कर राममंदिर के शिगूफ़े पर धर्मपरायण हिंदू मतदाताओं को गोलबंद करना रही हो, जो प्रधानमंत्री गुजरात में मुसलमानों के क़त्लेआम के दाग़ अब भी सहला रहा हो – वह दूसरों को समझा रहा है कि धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए?
असल बात यह है कि उत्तरप्रदेश में विराट ख़र्च, मीडिया प्रबंधन, कांग्रेस के नेताओं को टिकट के बँटवारे, वंशवाद से समझौते आदि की तमाम कोशिशें हवा को (आँधी-सुनामी दूर की बात है) भाजपा के हक़ में नहीं कर पाई हैं। सर्जिकल स्ट्राइक को भी भुना नहीं पाए। नोटबंदी के ज़िक्र से आँख चुरानी पड़ रही है। तो क़ब्रिस्तान-शमशान की गंदी राजनीति की शरण में जाना हमें तो समझ आता है, मूढ़ और कूपमंडूक भक्तों की समझ में न आता होगा।
विकास या बेरोज़गारी-महँगाई जैसे मुद्दों को भुलाकर ज़मीन और बिजली के बहाने कथित धार्मिक भेदभाव को मुद्दा बनाना हिंदू मतदाताओं को भड़काने के अलावा और क्या है? कहना न होगा, धार्मिक भेदभाव की राजनीति तो मोदी (फिर से) ख़ुद ही करने लगे। ऐसे मुद्दों की शरण में जाना अपनी जीत को सुनिश्चित न कर पाने की झुँझलाहट और बौखलाहट के सिवा कुछ नहीं।”