नज़रिया – क्या आप किसी पार्टी को वोट देकर उसके गुलाम बन जाते हैं

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वोट देना आपका अधिकार है, जिसे चाहें उसे वोट दें. आपको भाजपा अच्छी लगती है उसे वोट दीजिये. कांग्रेस या अन्य क्षेत्रीय पार्टियों की नीतियां आपको पसंद हैं तो उसे वोट दें,पर अपने चुने गए सांसदों और विधायकों से सवाल तो करिए? क्या आप किसी पार्टी को वोट देकर उसके गुलाम बन जाते हैं. भाई सवाल करना देश के हर नागरिक लोकतांत्रिक अधिकार है. अगर आप सवाल करना बंद कर देंगे तो यकीनन आप गुलामों की श्रेणी में आ जायेंगे.
कोई सत्ता से सवाल करता है तो इसलिए करता है कि आप , आपके ही द्वारा चुने हुए नेताओं द्वारा राजनीतिक गुलाम न बना लिए जाओ. जी हुजूरी के चक्कर में आप सवाल करने वाले व्यक्ति को देशद्रोही तक का तमगा दे बैठते हैं. क्या आप नहीं चाहते कि नेताओं से सवाल हों ?

अपने नेता जी से पूछिए कि चुनाव में उन्होंने ये वादा किया था, क्या उनके वादों का. या फिर वो वादा वैसा ही वादा था जो कभी पूरा नहीं होगा. समाज को बाँटने की राजनीति करने वालों से पूछिए कि क्या चुनाव पूर्व विकास के मुद्दे पर जनता ने वोट नहीं दिया था, यदि आप विकास किये हैं तो विकास पर वोट मांगिये न ! क्यों देश के एक समुदाय को दूसरे समुदाय का डर दिखाकर वोट मांगते हैं ?
आपके सांसदों और विधायकों के आसपास सुरक्षागार्ड की तरह चिपके रहने वाले आपके गाँव और मोहल्ले के नेताओं से पूछिए कि रोज़गार शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य वास्तविक मुद्दों पर उन्होंने क्या किया? हो सकता है इसके जवाब में नेता जी 70 साल वाला प्रसिद्द डायलॉग बोल पड़ें, उसी वक़्त नेता जी को बता दीजियेगा कि विकास सतत चलने वाली प्रक्रिया होती है. शिक्षा , स्वास्थ्य और बेरोज़गारी की समस्या हर वक़्त नए चैलेंज के साथ आती है, आज यह समस्या भयावह होती जा रही है. आपने क्या किया ये बताईये! जब तक 70 साल वाले काम करते रहे जनता चुनती रही, जब जनता को लगा कि ये काम नहीं कर रहे हैं जनता ने हटा भी दिया फिर पुनः उन्हें चुन भी लिया. आप भी तो दो बार गठबंधन में और इस बार पूर्ण बहुमत से सत्ता में थे ?
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