ये कार्टून बार बार दिख रहा इसमें दो लोग दिख रहे हैं. उनका पहनावा आज के दौर के प्रचलन से अलग है. तस्वीर पर ओणम गुदा हुआ है. ओणम है, तो जाहिर है केरल भी नत्थी होगा.
इसकी आड़ में एक खास विचारधारा के लोग गौरी लंकेश की हत्या को न्यायसंगत बता रहे हैं. कह रहे हैं कि गौरी लंकेश की विचारधारा गलत थी.सोशल मीडिया पर ये तस्वीर काफी शेयर की जा रही है. विरोधी खेमा इसके बहाने गौरी लंकेश पर इल्जाम लगा रहा है.
आरोप है कि गौरी केरल में RSS के लोगों के साथ हुई हिंसा का माखौल उड़ा रही हैं. असवंदेनशीलता बरत रही हैं. ये तस्वीर कार्टून की शक्ल में है. एक शख्स किसी को उठाकर कूड़ेदान में डाल रहा है. जिसे डाल रहा है, उसने जनेऊ पहना है. जनेऊ से पकड़कर ही उसे डस्टबिन में डाला जा रहा है. कई लोग कह रहे हैं कि इस कार्टून में संघ कार्यकर्ता की मौत का मजाक उड़ाया जा रहा है. हमें समझ नहीं आता कि इस कार्टून की ऐसी व्याख्या पहले-पहल किसके दिमाग में आई होगी.
कई लोग संदर्भ-प्रसंग जाने बिना चीजों की व्याख्या करने बैठते हैं. समझते नहीं, मनमानी करते हैं. ये आरोप भी ऐसा ही है.ये तस्वीर गौरी लंकेश की फेसबुक वॉल पर है. एक वेबसाइट काउंटरकरंट्स के फेसबुक पेज की इस पोस्ट को उन्होंने शेयर किया. ठीक उसी दिन जिस दिन उनकी हत्या हुई. ये तस्वीर साधारण नहीं है. एक लंबी बहस का हिस्सा है. बहस है संस्कृति की. बहस संस्कृति से जुड़े प्रतीकों की.
एक संस्कृति है, जो वामन को नायक मानती है. विष्णु के अवतार वामन.एक संस्कृति है, जो महाबलि से प्रेम करती है. महान राजा महाबलि. इनके लिए बलि नायक हैं.ये मानते हैं कि वामन ने बलि से छल किया. एक अहम सवाल है. त्योहार कहां का है? इसे मनाने वाले कौन हैं? जहां का त्योहार होगा, वहीं के तो प्रतीक होंगे. केरल के लोग. उनके प्रतीक. केरल का त्योहार. उनकी मान्यताएं.
गौरी लंकेश ने जो पोस्ट शेयर किया, वो इसी बहस का हिस्सा है. गौरी लंकेश ने केरल की भावनाओं को चुना था.
इस बहस का एक और पहलू है. जाति. महाबलि शूद्र थे. वर्ण व्यवस्था में सबसे नीचे. वामन ब्राह्मण थे. जातिगत श्रेष्ठता वाली संस्कृति को शूद्र राजा की महानता खलेगी.
पिछले कुछ समय से बीजेपी और संघ की केरल में यही है. प्रतीकों को उलटने की. ओणम से महाबलि को हटाने की. उनकी जगह वामन को लाने की. पिछले साल बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने ओणम पर एक कार्ड शेयर किया. इसमें वामन जयंती की शुभकामनाएं दी गई थीं. कार्ड में वामन ने महाबलि के सिर पर अपना पैर रखा था.
इस पर बहुत विवाद हुआ. निंदा करने वालों को इसमें ब्राह्मणवादी प्रभुत्व नजर आया. मलयालम में संघ की एक पत्रिका है. केसरी. इसमें लेख छपे. कि ओणम महाबलि के लौटने का त्योहार नहीं है. इसे वामन यानी विष्णु के स्वागत के लिए मनाना चाहिए. हिंदुत्व से जुड़ी एक महिला नेता ने वामन को स्वतंत्रता सेनानी कहा. कि वामन लोगों को मुक्ति दिलाने आए थे.
ये सब क्या है? सदियों से चले आ रहे सांस्कृतिक प्रतीकों को रिप्लेस करने की कवायद. एक संस्कृति पर अपनी विचारधारा थोपने की कोशिश. गौरी लंकेश को ये कोशिश खल रही थी.
केरल अगर देश होता तो ओणम उसका राष्ट्रीय त्योहार होता. हिंदू धर्म का नहीं, संस्कृति का त्योहार. ऐसा त्योहार जिसे कमोबेश हर वर्ग के लोग मनाते हैं. खूब तैयारियां होती हैं. नाच-गाना. खाना-पीना. पलक-पांवड़े बिछाकर महाबलि की राह देखना. महाबलि, जनता के चहेते राजा. महाबलि, जिनकी कहानी सुनकर अनगिनत पीढ़ियां जवान हुईं.जनता के प्यारे राजा. जाति से शूद्र राजा. असुर राजा. अपनी प्रजा का ख्याल रखने वाले राजा. जनता के सुख में सुखी रहने वाले महाप्रतापी राजा.
कहते हैं महाबलि के राज में केरल बहुत खुशहाल था. सब बराबरी से रहते थे. मतलब जिसे आज यूटोपिया कहते हैं, वह महाबलि ने सच कर दिखाया. इतना महान साम्राज्य बनाया कि उसकी गूंज स्वर्ग में फैलने लगी. देवता डर गए. महाबलि का प्रभाव देवों को आतंकित करने लगा. सारे देव भागे-भागे विष्णु की शरण में पहुंचे. त्राहिमाम. विष्णु पालनहार हैं,बचाएंगे.
विष्णु ने युक्ति सोची. बौने ब्राह्मण का रूप धरा. वामन बने. स्वांग रचाया. महाबलि के दरबार में पहुंचे. उस महाबलि के दरबार जो खुद विष्णु भक्त थे. हर इंसान में कमियां होती हैं. महाबलि में भी थी. बहुत दानशील थे. कहते हैं उनके दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता था.महाबलि ने कहा, मांगो जो मांगना हो.वामन ने रहने के लिए तीन कदम बराबर जमीन मांगी. महाबलि ने कहा ले लो.
वामन ने अब छल किया. रूप इतना बढ़ा लिया कि एक पैर में स्वर्ग को घेर लिया. दूसरे कदम में जमीन नाप ली. फिर बलि से पूछा. तीसरा पैर कहां रखूं. दुनिया तो नप गई. भोले महाबलि ने सिर झुकाया. कहा – यहां रख लो. वामन ने पैर बलि के सिर पर रख दिया. बलि पाताल पहुंच गए. महाबलि की दानशीलता से वामन भी क्षुब्ध. सारा राज ले लिया,लेकिन एक वरदान दिया. कहा, साल में एक बार अपने राज्य में आ सकोगे. प्रजा से मिलने. ओणम में महाबलि पाताल से वापस लौटते हैं. अपने राज्य आते हैं.ओणम भावनाओं का त्योहार है. महाबलि और वामन थे या नहीं, कौन जाने. लेकिन संस्कृति तो है.
गौरी लंकेश ने ओणम का पोस्टर शेयर करके किसी की भावनाओं को आहत करने की कोशिश नहीं की. बस ये कहने की कोशिश की थी कि राजनीति को संस्कृति से दूर रखो. किसी खास विचारधारा को अपना एजेंडा मत बनाओ. हो सकता है कि कुछ लोग उनकी अभिव्यक्ति के तरीके से सहमत न हों. असहमतियां होती हैं. लेकिन इससे खुद को आहत कर लेना अलग बात है. कई लोग हर दूसरी बात पर आहत होते हैं. बिना बात के भी आहत होते हैं.
गौरी की मौत के बाद ऐसे कई लोग गंदगी उगल रहे हैं. उनकी पोस्ट पर जाकर घटिया बातें लिख रहे हैं. अरे भाई, सबके अपने-अपने प्रतीक होते हैं. कोई दुर्गा को पूजता है. कोई महिषासुर को. कोई राम की पूजा करता है. कोई रावण के मारे जाने का शोक मनाता है.
जिस समुदाय का त्योहार है, प्रतीक भी उसके ही होंगे. कथाएं भी उसकी ही होंगी. भावनाएं भी उसकी ही होंगी. इत्ती सी बात समझ नहीं आती! अपना मुंह गंदा मत करो. सोशल मीडिया भी एक किस्म का दस्तावेज है. यहां गालियां बकने और नफरत उगलने वालों के नाम दर्ज हो जाते हैं. बाद में कितना भी पछता लो, दाग नहीं मिटते.