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वर्तमान भारतीय राजनीति का चरित्र घटिया और भयावह हो चला है

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मुद्दे कई हैं नजर में। उनमें से कुछ अहम मुद्दे आज के हिंदुस्तान की जो डरावनी सूरत पेश करते हैं, उन्हें लिखना लाज़िमी जान पड़ा तो लिख रहा हूँ।

 सबसे अव्वल तो यह कि मैं बिहार से हूँ और सब दिन बिहार में ही रहा। इसलिए बिहार को जानता भी हूँ अच्छे से। बड़ा प्यार है बिहार और उसके गौरवशाली अतीत से। गुजरात की कोई बहुत खबर नहीं। गया भी नहीं उधर कभी और न अभी हाल में उधर जाने ही का इरादा है।
गुजरात को महात्मा गाँधी के नाम पर और बिहार को भगवान बुद्ध के नाम पर ही दुनिया जानती है। मैं भी उसी वजह से इन दो सूबों को जानता हूँ।
अब दोनों जगह दुरात्मा बुद्धूराम जी धमाल करेंगें, यह आशंका भी थी मन में क्योंकि हिमाच्छादित उत्तुंग पर्वत शिखर जहाँ होते हैं, वहीं नीचे कहीं गहरी, अँधेरी और भयानक घाटियाँ भी मौजूद होती हैं।
तो हमारा भारत भी कुल मिलाकर यूँ ही है। परम श्रेष्ठ भी और अत्यंत निकृष्ट भी। गुजरात में मोदीजी और बिहार में नीतीश बाबू की दशा चाहे जैसी भी हो, जनता और जनप्रतिनिधि दोनों उसी कुँए का पानी पीकर बौराये हुए हैं जिस कुँए में भाँग मिलाकर उन्माद पैदा किया जा रहा है।
पहले गुजरात की कहानी कहूँ। इस कहानी की भूमिका ऐसी है कि राहुल गाँधी कांग्रेस के बड़े नेता हैं। सीधे-सरल, ईमानदार, सच्चरित्र और सुपात्र श्री राहुल गाँधी एक ऐसे व्यक्ति हैं जिनसे किसी को कोई खतरा नहीं और जिनसे अगर किसी का कोई भला न हो सके तो बुरा भी नहीं हो सकता। साफ-साफ कहें तो राहुल जनसामान्य के लिए कतई हानिकारक नहीं।
राहुल गाँधी चतुर भी नहीं हैं। चालबाज, धूर्त, मक्कार, जालसाज और अपराधी भी नहीं ही हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने कभी मन की बात करके जनता का मुँह भी नहीं चिढ़ाया। पनामा मामले में आरोपित और सर्वोच्च न्यायालय से दंडित पाकिस्तानी नवाज शरीफ से मिलने भी नहीं गए और उनकी माँ के चरण छूकर शाल भी अर्पित नहीं किये।
राहुल गाँधी पर नोटबंदी तथा व्यापम से हुई मौतों और ह्रास का भी जिम्मा नहीं। वह तो सैनिक भी नहीं मरवाये और न ही वैध-अवैध कत्लखानों का ही खेल खेले। कारसेवकों को रेल में जिंदा जलाने के भी वे गुनहगार नहीं हैं। कुल मिलाकर राहुल गाँधी इतने भले और भोले हैं कि उन्हें पप्पू कहने वाले भी बहुत मिल जाएँगे।
तो यक्ष प्रश्न यह उठता है कि जिन लोगों ने गुजरात में पप्पू सरीखे राहुल गाँधी पर जानलेवा हमला किया वो आखिर हैं कौन और उन्हें ऐसा करने को जिस उन्माद ने प्रेरित किया उस उन्माद को फैलाने वाले चतुर लोग कौन-कौन हैं और ऐसा करके वे कौन से अद्भुत लक्ष्य को पाना चाहते हैं?
अच्छा, यह तो हुई गुजरात की बात, अब थोड़ी सी बिहार की कहानी भी कह लूँ। चलिये, थोड़ा बिहार चलते हैं। वहाँ एक कहावत है, “जिसके पेट में गाय का गोश्त, वह कभी हिन्दू का दोस्त?” तो यह कहावत किन लोगों ने मशहूर की इसका कोई विशेष पता नहीं किंतु विचार करें तो कुछ-कुछ जरूर समझ आ जाता है।
खैर, नीतीश बाबू समेत सभी बिहारियों का डीएनए खराब था। यह ज्ञान हम बिहारियों ने समादरणीय श्री प्रधानमंत्री महोदय से प्राप्त किया था। उन्मादी भीड़ सड़कों, चौबट्टों और इंटरनेट इत्यादि पर नीतीश बाबू को मुल्ला-कठमुल्ला कहते न अघाती थी। अब मुल्लों-कठमुल्लों के खान-पान पर अगर हम कुछ न कहें तो ही बेहतर।
जो भी हो, मगर जंगलराज के नियंता रहे नीतीश जी इसरत के अब्बू का ठप्पा लगाए इफ्तार की दावतें उड़ाते रहे और उन दावतों में न मालूम कौन सी ऐसी भोजन सामग्री रहती होगी कि नीतीश जी ने कभी भी गोरक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषय को पलटकर भी न देखा।
हाँ, सिर्फ एक जगह नीतीश बाबू भ्रष्ट हुए थे। वह समझने के लिए थोड़ा सा हिन्दू धर्म की विचारशैली को समझना होगा। यह सर्वग्राही हिन्दू धर्म विभिन्न परस्पर विरोधी विचारों और सिद्धांतों को स्वयं में आत्मसात करने में प्रवीण रहा है और इसी क्रम में शराब को भी अमृतोपम मानता रहा तो किन्हीं को कोई खास आपत्ति नहीं हुई। हिन्दू धर्मशास्त्र मदिरापान की अनुशंसा करते पाये जाते हैं। शैव और शाक्तजन प्रसाद रूप में दारू चढ़ाते रहे।
तो जब तक नीतीश जी हिंदुत्ववादी पार्टी भाजपा के अभिन्न अंग होकर सरकार में रहे, उन्होंने शराब की नदियाँ बहायीं। तब तक तो ठीक लेकिन फिर जब से उन्होंने तथाकथित भ्रष्टाचारी खांग्रेसियों का दामन थामा और अपराध के आरोपी श्री लालू जी के साथ सिकुलर कहलाये, उन्होंने मौलवियों की मिजाजपुरसी के लिए शराबबंदी कर दी।
मगर अब तक तो बहुत देर हो गयी। उनके इफ्तार और इस्लाम प्रेम को मद्देनजर रखते हुए उन्हें किस तरह हिंदूवादी भाजपा का दोस्त माना जाय!
एक दीगर बात और बिहार से ही उठाता हूँ। वह यह कि अपने निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए बार-बार पलटी मारने वाले माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी के जदयू वाले जनप्रतिनिधि और जदयू के भाँगयुक्त अंधकूप से जल पीने वाली जनता दोनों ही अपने नीतीश जी के सुर में सुर मिलाकर पहले दक्षिणपंथ को जी भरकर कोसा करते थे। फिर माननीय नीतीश जी की लेटेस्ट पलटी को देखकर जदयूवादियों का ‘स्वाभिमान’ ‘परिवर्तन’ की आग में अचानक लहक उठा।
हृदय परिवर्तन हो गया। सद्बुद्धि आ गयी। मुख्यमंत्रित्वकाल का मध्यावकाश हुआ। अब उसी जदयू से जुड़ी जनता और उस जनता के महान जनप्रतिनिधि बड़ी चतुरता से नीतीश जी, भाजपा और भाजपा के सहायक दलों के सभी नेताओं और उनकी कार्यशैली या प्रचारशैली की दिल खोलकर सराहना करने लगे।
बिना किसी लाज-शर्म के उन्हें अब दक्खिनपंथियों में समस्त गुण और शेष दलों तथा उनकी गतिविधियों में समस्त दोष  दिखने शुरू हो गए। ऐसा क्यों हुआ और कैसे हुआ? उन्हें जरा सी भी लाज क्यों नहीं लगी?? कुछ लोग लजाते-लजाते भी चमड़ी मोटी किये अपने दलबदलू मुख्यमंत्री का अन्धानुसरण क्यों कर रहे और ऐसा करने में असली दोष किसका है?
भारत के लोग तो भाग्य भरोसे चलते ही हैं। इन्हें शासन, सत्ता और राजनैतिक दूरदृष्टि से विशेष लगाव कभी रहा भी नहीं। “कोउ नृप होंहि हमें का हानी” में पूरा विश्वास रखने वाली भारतीय जनता को शायद सिर्फ धर्म की दुकान में सपनों का सब्ज़बाग देखना सर्वाधिक रुचिकर है। जो हो, हम आज निश्चित ही कठिन काल से गुजर रहे हैं। ईश्वर रक्षा करें।

ख़ुदा हाफ़िज़।

© मणिभूषण सिंह
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