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गज़ल – गुज़र गई है मेरी उम्र खुद से लड़ते हुए – "ख़ान"अशफाक़ ख़ान

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गुज़र गई है मिरी उम्र खुद से लड़ते हुए
मुहब्बतों से भरे वो खतों को पढ़ते हुए

धुएं की तरह बिखरता रहा फज़ाओं में
के उम्र बीत गई हवा संग उड़ते हुए

बिखर गए हैं मिरे ख्वाब सह्र होते ही
मैं देखता हूं सभी ख्वाब यार जगते हुए

खुदा ए बंद से इतनी दुआ है मेरी बस
ज़ुबाँ से कलमा शहादत रवाँ हो मरते हुए

डरा नहीं हूं मै बंदूक गोली तोप से
मैं मर गया हूँ मगर बद दुआ से लड़ते हुए

“ख़ान”अशफाक़ ख़ान

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