ASHFAK KHAN

0
Avatar
More

कविता – मुझे कागज़ की अब तक नाव तैराना नहीं आता

  • April 9, 2017

तुम्हारे सामने मुझको भी शरमाना नहीं आता के जैसे सामने सूरज के परवाना नही आता ये नकली फूल हैं इनको भी मुरझाना नही आता के चौराहे...

0
Avatar
More

गज़ल – गुज़र गई है मेरी उम्र खुद से लड़ते हुए – "ख़ान"अशफाक़ ख़ान

  • March 3, 2017

गुज़र गई है मिरी उम्र खुद से लड़ते हुए मुहब्बतों से भरे वो खतों को पढ़ते हुए धुएं की तरह बिखरता रहा फज़ाओं में के उम्र...