क्या अब राजस्थान के “कैप्टन” भी बदले जायेंगे?

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राजनीति की गिनती को गिने जाने का तरीका थोड़ा सा अलग है। हमारी गिनती 2 और 2 को जहां चार बताती है राजनीति में 2 और 2 कब 22 गिने जाते हैं कब पता ही नहीं चलता है।

पंजाब के पूर्व हो चुके मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को कब रिटायर कर दिया गया इसका इल्म वो खुद भी नहीं कर पाए हैं। उनकी जगह एक “युवा” चेहरे को मुख्यमंत्री बनाते हुए पंजाब के लोगों को कांग्रेस ने “बदलाव” करके दिखाया है।

अब जब से ये बदलाव हुआ है तभी से सभी की नज़रें राजस्थान पर टिकी हुई हैं। क्योंकि खबरे ऐसी आ रही हैं कि वहां भी कुछ हो सकता है। अब ये आशंका और गहरी तब होती है जब नेताओं के जयपुर से दिल्ली की तरफ की दौड़ शुरू हो जाती है।

1 अक्टूबर को दिग्विजय सिंह जयपुर जा रहे हैं। राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री 1 हफ्ते में दो बार दिल्ली हाज़िरी लगा चुके हैं। लेकिन ये सब क्या हो रहा है और क्या असल मे राजस्थान में हो सकता है इसे समझना बहुत ज़रूरी है।

ये है असली कहानी।

राजस्थान में जब कांग्रेस 2018 में विधानसभा चुनाव जीत कर आई थी तो उसमें बहुत बड़ा रॉल तब के प्रदेश कांग्रेस के चीफ सचिन पायलट का था। अंदरूनी खबरें भी यहीं थी कि इस जीत का ताज सचिन पायलट के सिर पर सजने वाला है। लेकिन “जादूगर” ने जादू कर दिया।

दरअसल इस जादूगर का नाम राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को कहा जाता है। जो पिछले 40 सालों से राजस्थान से लेकर दिल्ली तक कांग्रेस मे अपना जादू करने में कामयाब हुए हैं। 2018 में भी यही ही हुआ। उन्होंने युवा, मेहनती और ज़मीनी नेता के तौर पर स्थापित सचिन पायलट के हाथ से मुख्यमंत्री का पद छीन लिया।

लेकिन सचिन पायलट ने पार्टी के साथ वफादारी का क़ोल निभाते हुए “आलाकमान” के आदेश को माना । लेकिन 1 से डेढ़ साल बाद भी कुछ भी बदलाव या तोहफा सचिन पायलट को मिल नहीं पाया है। करीबन 6 सालों तक प्रदेश कांग्रेस का चीफ रहने वाले पूर्व उपमुख्यमंत्री अब राजस्थान में सिर्फ एक विधायक की हैसियत से अपना काम चला रहे हैं।

कांग्रेस के लिए पायलट और जादूगर दोनों ज़रुरी हैं।

कांग्रेस के साथ राजस्थान में हालात पंजाब वाले नही हैं। यहां पर पार्टी को सचिन पायलट की हर हाल में बहुत जरूरत है। क्योंकि सचिन पायलट स्वर्गीय राजेश पायलट के सुपुत्र हैं।

जिनके नाम के पहले गर्व के साथ आज भी किसान नेता लिखा जाता रहा है। दूसरी बात सचिन पायलट का ददिहाल उतर प्रदेश ही का है। जहां अगले साल ही में चुनाव होने वाले हैं।

उसी उत्तर प्रदेश में जहां सचिन पायलट बिरादरी/समाज यानी गुर्जर समाज का वोट अच्छी तादाद में हैं। फिलहाल अकेले यूपी का विधानसभा चुनाव लड़ रही कांग्रेस के लिये यूपी का गुर्जर समाज का ये नेता बहुत ज़्यादा ज़रुरी हो जाता है ।

इसी तरह से अगर अशोक गहलोत की बात की जाए तो अशोक गहलोत फ़िलहाल कांग्रेस के उन नेताओं और वफादारों में हैं जो 40 से 45 सालों तक कांग्रेस का हर दौर में साथ देते आये हैं। राजस्थान में संग़ठन हो या सरकार हर जगह उनकी ज़बरदस्त पकड़ बतायी जाती है ।

इसलिए ही पार्टी में उनका कद साल दर साल सिर्फ बढ़ा ही है और 2018 में भी उन्हें यूँ ही तरज़ीह नहीं दी गयी थी उनके एक्सपीरियंस को सबसे बड़ी वजह बताया गया था।

इस हालात में ये मुमकिन नहीं है कि पार्टी यूँ ही अशोक गहलोत को पद से हटाने का फैसला ले सकती है क्योंकि कांग्रेस आलाकमान के बहुत खास लोगों में उनकी गिनती होती है।

अब क्या हैं रास्ते?

सही मायनों में राजस्थान में बहुत जल्द ही सचिन पायलट का अज्ञातवास खत्म होता हुआ दिखाई दे रहा है। क्योंकि अगर पंजाब फॉर्मूला यहां अपना लिया जाता है तो ये तय है कि गहलोत को कुर्सी छोड़नी ही होगी। लेकिन ऐसे में भी सचिन डायरेक्ट मुख्यमंत्री बन जाये ये भी मुमकिन नही है ऐसा हम सिद्धू के मामले में देख भी चुके हैं।

लेकिन हाँ उन्हें मंत्रालय में भी बड़ा पद दिया जा सकता है और राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष का पद भी दोबारा से दिया जा सकता है। जिसके बाद बहुत हद तक राजस्थान की आंतरिक कलह बहुत हद तक शांत हो सकती है।

आखिरी बात ये है की कुछ दिनों से चल रही दिल्ली से लेकर जयपुर तक की हलचल बता रही है कि कुछ बड़ा होने वाला है। इस बड़े काम मे किसका फायदा होगा किसका नुक़सान होगा ये तय करने का ज़िम्मा “आलाकमान” का है।