क्या साईकल यात्रा अखिलेश को 2022 में जीत दिलायेगी ?

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2010-11 का दौर था, मायावती पूर्ण बहुमत से सत्ता में आकर उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं थी। अपने सुशासन के लिए मशहूर बहन जी की सरकार के दौर मे जनता परेशान थी। असल मे अपने पर्सनल कामों में बिज़ी रहने वाली बहन जी जनता की समस्याओं या असली मुद्दों को पहचान नहीं पा रही थी। लेकिन सत्ता पूर्ण बहुमत वाली थी तो कोई क्या करता?

वहीं दूसरी तरफ थी सत्ता से उखाड़ कर फेंकी गई समाजवादी पार्टी, जो 2009 में जबरन अपने समर्थन का पत्र लिए कांग्रेस दफ्तर में घूम रही थी। लेकिन कांग्रेस को उनके 21 सांसदों की ज़रूरत ही नहीं थी। कांग्रेस इस बार खुद बहुत मज़बूत थी। इसी वक्त, एक “लड़का” मैदान में आया, युवा ही था।

ऑस्ट्रेलिया से पढ़ाई करके आया लड़का, जिसे सन 2000 में उसके हनीमून के दौरान ही उसके पिता का फोन आ गया था कि “वापस आइये आपको लोकसभा चुनाव लड़ना है” और उसने कन्नौज लोकसभा से पर्चा भर दिया था। जी हां मैं अखिलेश यादव की बात कर रहा हूँ जो राजनीति में तो 1999 ही में आ गए थे, लेकिन नेता 2010 से 2012 के बीच बने थे। वहीं अखिलेश यादव फिर से साइकिल यात्रा निकाल रहे हैं।

अखिलेश की साईकल यात्रा का इतिहास

अखिलेश यादव उन नामों में से एक हैं जो राजनीतिक परिवार में पैदा हुए और उन्होंने राजनीति के दांव पेंच भी खूब सीखें हैं। यही वजह है कि 2011 के बाद के साल में अखिलेश यादव ने ज़मीनी स्तर पर भरपूर मेहनत करते हुए जनता के बीच जगह बनाई थी।

यही बहुत बड़ी वजह भी थी कि जनता ने उनकी बातों को सुना, 38 वर्षीय इस नेता से युवा उम्मीदें रखते थे क्योंकि ये “लेपटॉप” बांटने की बात करता था और बड़े-बुजुर्ग इसमें इसके पिता की छवि देखते थे, इसी वजह से इसे जनता का आशीर्वाद मिला और ये 2012 में उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना था।

बहुत कम लोग शायद जानते हों कि अखिलेश यादव जिस साइकिल यात्रा की शुरुआत कल करने वाले हैं ऐसी ही यात्रा उन्होंने 2012 के चुनावों से पहले निकाली थी। ये वो दौर था जब मायावती के शासन से लोग त्रस्त हो गए थे और लोगों ने उनमें एक नया और युवा चेहरा देखा था जिसके पास प्रदेश भर के लिए विज़न थे।

2022 में क्या उम्मीद है?

दरअसल, अखिलेश यादव भाजपा की प्रचंड बहुमत की सरकार के सामने एक चेहरा हैं, विपक्षी चेहरा जो एक मज़बूत नाम है। लोग उसे अपने मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं। यही कारण है कि प्रदेश भर में अगर किसी नेता को उम्मीद से देखा जा रहा है या फिर जिसे भाजपा के खिलाफ बड़ा माना जा रहा है वो अखिलेश हैं।

अखिलेश यादव इस साइकिल यात्रा से अपने चुनावी अभियान की शुरूआत कर रहे हैं जो बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण होने वाला है ये बात किसी से छुपी नही है। इसलिए ही अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी ने अपनी पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलना और उनसे रणनीति साझा करना शुरू कर दिया है।

इसके अलावा कुछ महीनों पहले से ही टिकट के दावेदारों से आवेदन भी मांगे गए थे और समाजवादी पार्टी से टिकट की चाह रखने वालों ने दिल खोल कर आवेदन भेजे हैं। सूत्रों के मुताबिक जल्दी ही पार्टी अपने योद्धाओं को मैदान में उतार देगी और 2022 की मज़बूत किले को फतह करना चाहेगी।

अखिलेश के लिए चुनौती कौन?

अखिलेश यादव के लिए फिलहाल बहुत सारी चुनौती हैं। सबसे बड़ी चुनौती हैं असदुद्दीन ओवैसी, जिन्होंने क़रीबन 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान करते हुए सबसे ज़्यादा टेंशन में अखिलेश यादव ही को डाला है क्योंकि असदुद्दीन मुख्य तौर पर मुस्लिम वोटों के लिए कोशिश करेंगे और ये छुपी बात नही है कि मुसलमान वोटर्स समाजवादी पार्टी की असली ताकत वही हैं।

दूसरी बड़ी चुनौती है, शिवपाल यादव की गैर मौजूदगी मे मैनेजमेंट, समाजवादी पार्टी को मजबूत मुलायम ने किया है और अब इसके नेता भले ही अखिलेश हों, लेकिन ये भी सच है कि शिवपाल समाजवादी पार्टी के “चाणक्य” थे। लेकिन अब वो अपना अलग दल बनाकर राजनीति में हैं।

इन चुनौतियों और उम्मीदों के बीच अखिलेश यादव साइकिल से उत्तर प्रदेश की यात्रा पर निकलने वाले हैं। बस देखना ये है कि क्या उनकी ये यात्रा उन्हें फिर से “लखनऊ” पहुंचाती है या नहीं?

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