यूपी में राजनीतिक घेरेबंदी शुरू हो चुकी है,बसपा “ब्राह्मण सम्मेलन” करते हुए 2007 की तरह सोशल इंजीनियरिंग शुरु कर दी है,भाजपा आलाकमान ने मुख्यमंत्री से लेकर उपमुख्यमंत्री को विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी करने के लिए कह दिया है,और प्रियंका गांधी भी लखनऊ पहुंच चुकी हैं।
अब इन सब मे अखिलेश यादव भी पीछे नहीं रहने वाले थे तो वो दिल्ली में जयंत चौधरी के घर पहुंच गए,जहां उन्होंने दिवंगत चौधरी अजीत सिंह को श्रद्धांजलि देते हुए फोटो भी क्लिक करा ली है,और ठीक इसके बाद खबरें ये आयी है कि रालोद वेस्ट यूपी मे “भाई चारा” सम्मेलन कराएगी।
क्यों हो रहा है ये सम्मेलन?
दरअसल रालोद का कुनबा और वोटर बिखर चुका है,जाट और गुर्जर समाज मे पकड़ रखने वाली रालोद अपने साथ मुस्लिम समाज को जोड़ कर अपनी जड़ें दोबारा से मज़बूत करने की कोशिश मे हैं, नए नए अध्यक्ष बने जयंत चौधरी को ये समझ आने लगा है कि भाजपा से मुकाबला करना है तो सामाजिक समीकरण मज़बूत करना ही होगा।
यही कारण है की रालोद फुल एक्टिव नज़र आ रही है,लगातार उसके साथ नए नए नेता जुड़ रहे हैं और वो भी ऐसे नेता जिनका अपना जनाधार है,पूर्व विधायक से लेकर पूर्व सांसद और पूर्व प्रत्याशी भी ऐसा होने की बड़ी वजह है की समाजवादी पार्टी से हुआ गठबंधन,जो जाट-मुस्लिम के साथ होने के बाद रालोद को “किंगमेकर” बनाने की स्थिति में ले आएगा।
कितना कामयाब होंगे जयंत चौधरी और अखिलेश?
2019 में “महागठबंधन” के तहत समाजवादी पार्टी ,बहुजन समाज पार्टी और रालोद के गठबंधन के तहत रालोद को मुज़फ्फरनगर और बागपत लोकसभा मिली थी,और पिता – पुत्र दोनों ही ने मज़बूत चुनाव भी लड़ा था,लेकिन परिणाम के बाद के लटके हुए चेहरे आज भी सभी को याद हैं।
तब भी जाट-मुस्लिमों के साथ आने की बात कही जा रही थी, लेकिन अजीत सिंह के मैदान में होते हुए संजीव बालियान जीतने में कामयाब हुए,और जयंत चौधरी भी मामूली अंतर से चुनाव हार गए थे,और उस घटनाक्रम को अभी 2 साल ही हुए हैं।
क्या समीकरण साधना चाह रहे जयंत ?
भाईचारा सम्मेलन दरअसल किसान आंदोलन के बाद बने भाजपा विरोधी माहौल को कब्ज़ा करने की कोशिश है,क्योंकि इसमें ढकी छुपी कोई बात नही है कि किसान आंदोलन के बाद संजीव बालियान का कई गांवों में विरोध किया गया था,जब वो बिल के फायदे बताने गांव गांव जा रहे थे।
वहीं दिल्ली में किसान भी दोबारा से जुटने लगे हैं, और हो या न हो इसका सीधा फायदा रालोद-सपा गठबंधन को ही होगा,क्योंकि ये भी सच्चाई है कि पश्चिम यूपी के किसानों को गन्ने का रेट बढ़ कर नहीं मिला है,और ग्रामीण क्षेत्र का ये सबसे बड़ा मुद्दा है।
इस भाईचारा सम्मेलन के मातहत जयंत चौधरी उन मुद्दों और समस्याओं को उठाना चाह रहे हैं जो वेस्ट यूपी की बेसिक समस्या है,आने वाले 2 महीनों में जयंत चौधरी ये कार्यक्रम लगातार कार्यक्रम करेंगे,इसका असर क्या होगा या क्या हो सकता है? ये देखने वाली बात होगी।
कुछ असर होगा?
इसमें कोई ढकी औए छुपी बात नहीं है कि किसान आंदोलन ने भाजपा को झटका दिया है और आगे यही ही स्थिति बनी रही तो उसे नुक़सान होने वाला है,और जब उसे नुक़सान होगा तो फायदा सीधा रालोद-सपा ही को होगा, क्यूंकि ज़मीनी स्तर पर चली रही इस गठबंधन की मेहनत हालात में सुधार ला रही हैं।