बीस साल बाद अफ़ग़ानिस्तान में एक बार फ़िर तालिबान की सत्ता में वापसी हो गई है। एक धड़ा जो तालिबान के समर्थकों का है, वो खुशी मना रहा है। वहीं दूसरे धड़ा जिसे डर है कि अफ़गानिस्तान में तालिबान की सत्ता में वापसी से उनके लिए ठीक नही है, वो चिंतित हैं। वहीं बाक़ी दुनिया अफ़ग़ानिस्तान के ताज़ा घटनाक्रम पर बहस कर रही है, बहस करने वालों को तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है। पहले वो लोग जो सीधे सीधे तालिबान के पक्ष में लिख और बोल रहे हैं। वहीं दूसरा धड़ा उन लोगों का है जो तालिबान का कड़ा विरोध कर रहे हैं। वहीं तीसरा पक्ष भी है, जो परिस्थितियों पर नज़र रखा हुआ। न तालिबान के साथ है और नाही विरोध में, बस वो हालात पर नज़र बनाये हुए हैं।
पिछले दिनों जिस तेज़ी से तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता अपने हाथों में ली है, कुछ माह पहले तक किसी को इस बात का अंदाज़ा भी नही था। 9 जुलाई 2021 के पहले अफ़ग़ानिस्तान के दूरदराज़ के इलाक़ों में अपनी सत्ता चलाने वाला तालिबान सिर्फ़ एक माह में ( 15 अगस्त 2021 को) दोबारा अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता हथियाने में कामयाब हुआ। ये सब कैसे हुआ, यह सवाल ही सबको आश्चर्यचकित कर रहा है। अफ़ग़ान राजधानी क़ाबुल के तालिबान के कंट्रोल में आने के बाद से ही क़ाबुल में अफ़रा तफ़री का माहौल बना हुआ हैं । बड़ी संख्या में लोग क़ाबुल के हामिद करज़ई एयरपोर्ट पर इकट्ठा हुए हैं। तालिबान के पिछले कार्यकाल की यादों के साये तले ये लोग किसी भी कंडीशन में अफ़ग़ानिस्तान छोड़ देना चाहते हैं। एयरपोर्ट में भीड़ का बड़ा हिस्सा उन विदेशियों का है, जो क़ाबुल में रह रहे थे।
President Ashraf Ghani Leaves Afghanistanhttps://t.co/S2n7oR2LIY pic.twitter.com/adUEbJeQic
— TOLOnews (@TOLOnews) August 15, 2021
राष्ट्रपति अशरफ गनी द्वारा देश छोड़कर भाग जाने के बाद तालिबान ने प्रेसिडेंशियल पैलेस को अपने क़ब्ज़े में ले लिया है। धीरे धीरे सारे सरकारी दफ्तरों , सरकारी चैनल्स आदि को तालिबान अपने कंट्रोल में लेता जा रहा है। पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई के नेतृत्व में एक कोऑर्डिनेशन कमेटी बना दी गई है। जिसमें पूर्व राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह, पूर्व मुजाहिदीन कमांडर गुलबदीन हिकमतयार को शामिल किया गया है।
ख़बर लिखे जाने तक अफ़ग़ानिस्तान सरकार के सारे ख़ुफ़िया तंत्र और रक्षा सम्बंधित सुविधाओं को तालिबान के हैंडओवर कर दिया गया है। इसी बीच कई देश अपने नागरिकों को निकालने में लगे हुए हैं, अमेरिका में जो बाइडेन के विरोधी उन्हें अपने निशाने पर ले रहे हैं, जिस पर जो बाइडेन ने जवाब देते हुए कहा है, कि अमेरिका अपने मिशन में बहुत पहले ही कामयाब हो चुका था। ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद अफ़ग़ानिस्तान में रुकने का कोई औचित्य नही था।
तालिबान ने दोबारा कैसे हासिल की सत्ता ?
दिसंबर 2001 में अमरिका और सहयोगी देशों ( नाटो ) के संयुक्त मिशन के बाद सत्ता गंवाने वाले तालिबान ने 15 अगस्त 2021 को दोबारा क़ाबुल सहित पूरे अफ़ग़ानिस्तान में नियंत्रण हासिल कर लिया। सबसे अहम बात ये रही कि बम धमाकों और अपने बंदूकधारी हमलावरों के लिए जाने वाले तालिबान ने क़ाबुल और अन्य कई अफ़ग़ान राज्यों को बिना लड़े हासिल कर लिया। कुछ ही क्षेत्र ऐसे रहे जहां पर अफ़ग़ान सुरक्षा बलों और तालिबान के बीच झड़प हुई। अक्सर राज्यों में सुरक्षा बलों ने सरेंडर कर दिया और गवर्नरों ने तालिबान से बातचीत के बाद उन्हें नियंत्रण दे दिया।
जानकर बताते हैं, कि इतनी आसानी से तालिबान को सत्ता मिल जायेगी, ये खुद तालिबान ने भी नही सोचा था। इसलिए अब तालिबान यह संकेत देने की कोशिश कर रहा है कि वो अब पहले से कुछ बदल चुका है। जब 15 अगस्त 2021 की सुबह क़ाबुल के सभी रास्तों पर तालिबान के लड़ाके पहुंचे तो वह सीधे अंदर दाखिल नही हुए । अफ़ग़ान सरकार के तात्कालिक कार्यवाहक गृहमंत्री ने वीडियो जारी कर बताया कि अफ़ग़ान सरकार और तालिबान के बीच बातचीत जारी है और तालिबान काबुल तक पहुंच चुके हैं। इसी बीच शाम होते होते ये ख़बर आई कि राष्ट्रपति अशरफ़ गनी और उनके कई कैबिनेट मंत्री क़ाबुल से निकल चुके हैं। इसके एक दिन पहले ही क़ाबुल के करीब एक और महत्वपूर्ण स्थान जलालाबाद पर भी तालिबान के क़ब्ज़ा हो गया था।
Acting Interior Minister Abdul Sattar Mirzakwal said Kabul will not be attacked and that the transition will happen peacefully.
He assures Kabul residents that security forces will ensure the security of the city. pic.twitter.com/uim9LVqn9q
— TOLOnews (@TOLOnews) August 15, 2021
जब 9 जुलाई के बाद से तालिबान ने एक के बाद एक अफ़ग़ान प्रांतों पर फतह हासिल करना शुरू किया तब ही से ये कहा जा रहा था कि तालिबान जल्द ही अफ़ग़ानिस्तान पर कंट्रोल हासिल कर लेगा। पर ये सब इतनी जल्दी होगा, ये अनुमान किसी ने नही लगाया था। तालिबान ने शुरुआत में उत्तरी राज्यों फिर दक्षिणी राज्यों की ओर रुख किया था। सीमावर्ती राज्यों को जीतने के बाद तालिबान के लड़ाके राज्यों की राजधानियों की ओर रुख करने लगे थे। पहले कंधार, फिर मज़ारे शरीफ़ में तालिबान के कंट्रोल के बाद गजनी में तालिबान का नियंत्रण हुआ। गजनी के गवर्नर और तालिबान के बीच समझौता हुआ, जिसके बाद तालिबानियों ने गवर्नर के लिए रास्ता मुहैया कराया। इसके बाद यह सिलसिला कई राज्यों में चला , जहां अफ़ग़ान फोर्सेज़ ने सरेंडर कर दिया और गवर्नरों ने बिना किसी संघर्ष के राज्यों का कंट्रोल तालिबान को सौंप दिया। यह सिलसिला क़ाबुल में आकर ख़त्म हुआ।
अमेरिका ने 20 सालों में क्या पाया और क्या खोया ?
वो साल था 2001 जब अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में अमेरिका ने अपने मित्र देशों की सेनाओं के साथ अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया था। उस वक़्त तालिबान के नेता मुल्ला मुहम्मद उमर ने अलक़ायदा प्रमुख और 9/11 हमले मुख्य आरोपी ओसामा बिन लादेन को शरण दे रखी थी। अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को अमेरिका को न सौंपने और अलकायदा को अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन का उपयोग करने देने के आरोप के साथ हमला कर दिया था। दिसंबर 2001 में अफ़ग़ानिस्तान से तालिबान की सत्ता खत्म हो गई और उसके बाद लगातार 20 साल अमेरिका की सेनाओं के अफ़ग़ानिस्तान में लोकतंत्र स्थापित करने की कोशिशें की।
इन 20 सालों में जहां लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत सत्ता चलती रही, वहीं अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान में सड़कों और कई डेवलपमेंट प्रोग्राम्स में बड़ा निवेश किया। भारत भी इन विकास कार्यों में बड़ा साझेदार रहा। इस दौरान छिटपुट हिंसाओं और हमलों में अमेरिका और अफगानिस्तान दोनों ही देशों के सैनिकों व बड़ी संख्या में आम नागरिकों को भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। कई तालिबान लड़ाके या तो मारे गए या फ़िर गिरफ्तार कर लिए गए। अफ़ग़ानिस्तान में मौजूद अमरीकन सैनिकों के रहने और सुविधाओं समेत टोटल खर्च में भारी रकम ख़र्च हुई। अमरीकी रक्षा मंत्रालय के अनुसार अक्टूबर 2001 से सितंबर 2019 तक अफ़ग़ानिस्तान में 719 अरब डॉलर खर्च किये गए। साल 2011 से 2012 के बीच जब अमरीकी सैनिकों की तादाद 1 लाख से अधिक हो गई थी, तब सर्वाधिक खर्च हुआ। अमेरिकन कांग्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2011 से 2012 के बीच यह खर्च 100 अरब डॉलर पार कर चुका था।
इस युद्ध के दौरान अमेरिका ने अपने 2300 से अधिक सैनिकों की जान गंवाई, वहीं 20660 सैनिक घायल हुए। यह संख्या अफ़ग़ान सुरक्षा बलों की मौत के आंकड़ों के सामने बहुत कम है। अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ गनी ने 2019 में एक बयान में कहा था कि तालिबान के ख़िलाफ़ युद्ध में सिर्फ़ 2015 से 2019 के बीच ही 45 हज़ार से अधिक जवानों ने अपनी जान गंवाई है। वहीं एक शोध के अनुसार 2001 में युद्ध शुरू होने के बाद 61 हज़ार से अधिक अफ़ग़ान सैनिक और पुलिसकर्मी मारे गए। सबसे अधिक चौंकाने वाला आंकड़ा अफ़ग़ान नागरिकों की मौत का है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2009 से अब तक 1 लाख 11 हज़ार अफ़ग़ान नागरिक मारे गए। अर्थात अमेरिका और तालिबान की लड़ाई से सबसे बड़ा नुकसान आम अफगानियों का हुआ, जिन्होंने भारी संख्या में अपनी जान से हाथ धोया।
और अपने मुख्य मक़सद में यूं क़ामयाब हुआ अमेरिका
साल था 2011 और 11 मई की वो तारीख थी, जब सुबह सुबह ये ख़बर सामने आई कि अमेरिका की स्पेशल फोर्स ने बिन लादेन को न सिर्फ़ ढूंढ निकाला बल्कि एक ऑपरेशन में उसे मौत के घाट उतार दिया है। पर इस खबर में जिस चीज़ ने सबसे ज़्यादा चौंकाया, वो ये था कि ओसामा बिन लादेन को अफ़ग़ानिस्तान नही बल्कि पाकिस्तान में मारा गया था। दरअसल ये एक बेहद ही ख़ुफ़िया ऑपरेशन था, जिसके संबंध में पाकिस्तान को भी ख़बर नही थी। पाकिस्तान के ख़ैबर पख्तूनख्वा प्रांत के शहर ओबेटाबाद में एक बड़ी ईमारत में बिन लादेन को रात के तीन बजे अमेरिका की स्पेशल सेल ने बड़ी ही खामोशी से न सिर्फ़ धर दबोचा था बल्कि उस मक़सद को भी पूरा कर लिया था, जिस मक़सद से अमेरिका 2001 में अफ़ग़ानिस्तान आया था। और इस तरह ओसामा बिन लादेन को मारकर अमेरिका ने अपना बदला पूरा किया।
दोबारा सत्ता मिलने पर खुदको उदार दिखाने की कोशिश कर रहा है तालिबान
तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने ट्वीट करके यह कहा है हम सभी राजनयिकों, दूतावासों, वाणिज्य दूतावासों और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के NGO कर्मचारियों को आश्वस्त करते हैं, कि आईईए की ओर से न केवल उनके लिए कोई समस्या पैदा नहीं की जाएगी बल्कि उन्हें एक सुरक्षित वातावरण प्रदान किया जाएगा, इंशाअल्लाह।
We assure all diplomats, embassies, consulates, and charitable workers, whether they are international or national that not only no problem will be created for them on the part of IEA but a secure environment will be provided to them, Inshallah.
— Suhail Shaheen. محمد سهیل شاهین (@suhailshaheen1) August 16, 2021
इस ट्वीट के अलावा अफ़ग़ानिस्तान के पत्रकारों ने ट्वीट करके जानकारी दी है कि महिला एंकर्स अफ़ग़ान न्यूज़ चैनल्स में दिखाई दे रही हैं। इस बात को लेकर NDTV के पत्रकार उमाशंकर सिंह ने भी ट्वीट करके कहा – काबुल पर काबिज़ होने के बाद तालिबान अभी तक कई बदला हुआ रुख़ दिखा रहा है। विदेशियों को नुकसान नहीं पहुंचाने का भरोसा दे रहा है। महिला एंकरों को न्यूज़ पढ़ने दे रहा है। भारत को अफ़ग़ानिस्तान के प्रोजेक्ट पर काम करते रहने देने की बात कर रहा है। लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है। दूसरा पहलू ये कि क्या तालिबान सिर्फ़ दुनिया की आंख में धूल झोंकने के लिए ऐसा कर रहा है? आगे चल अपनी सरकार को व्यापक मान्यता दिलाने की भूमिका बांध रहा है? जो जैसा अभी चाहता है क्या लश्कर-जैश-दैश के आतंकी उसे करने देंगे या वो मारकाट मचाएंगे और तालिबान भी तालिबान ही रहेगा?
दूसरा पहलू ये कि
क्या तालिबान सिर्फ़ दुनिया की आंख में धूल झोंकने के लिए ऐसा कर रहा है?
आगे चल अपनी सरकार को व्यापक मान्यता दिलाने की भूमिका बांध रहा है?
जो जैसा अभी चाहता है क्या लश्कर-जैश-दैश के आतंकी उसे करने देंगे या वो मारकाट मचाएंगे और तालिबान भी तालिबान ही रहेगा?
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— Umashankar Singh उमाशंकर सिंह (@umashankarsingh) August 17, 2021
चौतरफ़ा आलोचना झेलने के बाद आया जो बाइडेन का बयान
अमेरीकी सैनिकों के अफ़ग़ानिस्तान से लौटने के बाद तालिबान द्वारा नियंत्रण स्थापित कर लेने के पश्चात क़ाबुल से आई तस्वीरों ने सबको परेशान कर दिया था। जिसके कारण अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन सबके निशाने पाए आ गए थे। अपनी आलोचना और विरोधियों के द्वारा निशाने पर लिए जाने के बाद बाईडेन ने बयान जारी कर कहा कि वह अपने फ़ैसले पर अडिग हैं।
.@POTUS: हम 20 साल पहले स्पष्ट लक्ष्यों के साथ अफगानिस्तान गए थे: 11 सितंबर 2001 को हम पर हमला करने वालों को ख़त्म करना और ये सुनिश्चित करना कि अल क़ायदा अफ़ग़ानिस्तान से हम पर फिर हमला नहीं कर पाए।एक दशक पहले हमने ये कर दिया। कभी भी राष्ट्र निर्माण हमारा मिशन नहीं होना चाहिए था। pic.twitter.com/n9bHRSYhkf
— USA HindiMein (@USAHindiMein) August 17, 2021
बाइडेन ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा – मौजूदा घटनाक्रम दुर्भाग्य से इस बात का सबूत है कि अमेरिकी सैन्य बलों की कितनी भी संख्या कभी भी एक स्थिर, एकजुट और सुरक्षित अफ़ग़ानिस्तान नहीं बना सकती। अभी जो हो रहा है, वह पांच साल पहले भी आसानी से हो सकता था — या पंद्रह साल बाद भविष्य में। अमेरिकी सैनिक एक ऐसे युद्ध में लड़ और मर नहीं सकते — न ही ऐसा होना चाहिए — कि जिसमें कुल मिलाकर अफ़ग़ान सेनाएं स्वयं लड़ने और मरने के लिए तैयार नहीं हैं।
आगे जो बाइडेन कहते हैं हम 20 साल पहले स्पष्ट लक्ष्यों के साथ अफगानिस्तान गए थे: 11 सितंबर 2001 को हम पर हमला करने वालों को ख़त्म करना और ये सुनिश्चित करना कि अल क़ायदा अफ़ग़ानिस्तान से हम पर फिर हमला नहीं कर पाए।एक दशक पहले हमने ये कर दिया। कभी भी राष्ट्र निर्माण हमारा मिशन नहीं होना चाहिए था।