कविता

0
More

ग़ज़ल- मुसव्विर हूं सभी तस्वीर में मैं रंग भरता हूं

  • October 12, 2017

हमेशा ज़िन्दगानी में मेरी ऐसा क्यूं नहीं होता जमाने की निगाहों में मैं अच्छा क्यूं नहीं होता उसूलों से मैं सौदा कर के खुद से पूछ...

0
More

कविता – ये दुनिया आखिरी बार कब इतनी खूबसूरत थी?

  • July 5, 2017

ये दुनिया आखिरी बार कब इतनी खूबसूरत थी? जब जेठ की धधकती दुपहरी में भी धरती का अधिकतम तापमान था 34 डिग्री सेलसियस। जब पाँच जून...

0
More

कविता – मुझे कागज़ की अब तक नाव तैराना नहीं आता

  • April 9, 2017

तुम्हारे सामने मुझको भी शरमाना नहीं आता के जैसे सामने सूरज के परवाना नही आता ये नकली फूल हैं इनको भी मुरझाना नही आता के चौराहे...

0
More

कविता: नील में रंगे सियार, तुम मुझे क्या दोगे ? – सतीश सक्सेना

  • October 10, 2016

अगर तुम रहे कुछ दिन भी सरदारी में , बहुत शीघ्र गांधी, सुभाष के गौरव को गौतम बुद्ध की गरिमा कबिरा के दोहे , सर्वधर्म समभाव...