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कविता – दिल का समंदर

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तेरे दिल का समंदर है गहरा बहुत
पर डुबाने को मुझको ये काफी नहीं
कल फिर तुम तोड़ोगी वादा कोई
फिर कहोगी
गलती मैंने की माफ़ कर दो मुझे
और आगे से गलती फिर होगी नहीं
तेरे दिल का समंदर है गहरा बहुत
पर डुबाने….
कुछ कहता हूँ मैं तुम सुनो ध्यान से
तोड़ा अब फिर से जो तुमने वादा कोई
जायेंगे भूल हम भी जो कसमें खाई थी
तुझे आज़ाद कर देंगे ख़ुद से मग़र
तुझे देंगे दोबारा से माफ़ी नहीं
तेरे दिल का समंदर…
:अमरेन्द्र सिंह