अगर मैं आपसे कहूँ देश के इतिहास में एक ऐसा भी नेता हुआ है जो अपने राज्य की सबसे मज़बूत लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और हार गया।
और उसे हराने वाली नेता की उम्र सिर्फ 27 साल थी,या मैं आपसे ये बताऊं की एक नेता जो “लोकसभा स्पीकर” बना तो उसके सामने संसद में खुलेआम नॉट लहराए गए।
जब ये बेटा सांसद बना तो इसने अपने पिता से बगावत कर दी,क्योंकी पिता ही कि तरह वो जनसंघ या हिन्दू महासभा से नहीं जुड़ा,बल्कि उसकी धुर विरोधी कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ा और उसकी राष्ट्रीय टीम तक जा पहुंचा।
बात हो रही है लोकसभा स्पीकर रहें और 10 बार सांसद रहें सोमनाथ चटर्जी की,जिन्हें आखिर वक़्त पर उन्हीं की पार्टी ने बाहर कर दिया।
जन्मभूमी और राजनीति।
सोमनाथ चटर्जी का जन्म 25 जुलाई 1929 को बंगाली ब्राह्मण निर्मल चंद्र चटर्जी और वीणापाणि देवी के घर में असम के तेजपुर में हुआ था। उनके पिता एक प्रतिष्ठीत वकील, और राष्ट्रवादी हिंदू जागृति के समर्थक थे।
उनके पिता अखिल भारतीय हिंदू महासभा के मेम्बर थे। सोमनाथ चटर्जी की शिक्षा-दीक्षा कलकत्ता और ब्रिटेन में हुई। उन्होंने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में भी पढ़ाई को थी।
उन्होंने ब्रिटेन में मिडिल टैंपल से लॉ की पढ़ाई करने के बाद कलकत्ता हाईकोर्ट में प्रैक्टिस की। इसके बाद उन्होंने राजनीति में आने का फैसला किया। सोमनाथ चटर्जी एक बेहतरीन वक्ता के रूप में भी जाने जाते हैं।
अपने पॉलिटिकल करियर की शुरुआत सोमनाथ चटर्जी ने सीपीएम के साथ 1968 में की और वह 2008 तक इस पार्टी से जुड़े भी रहें।
1971 में वह पहली बार संसद पहुंचे,इसके बाद उन्होंने राजनीति में ऐसा चक्र घुमाया की जीत ही हासिल हुई। वह 10 बार लोकसभा मेम्बर के रूप में चुने गए थे।
1971 से लेकर उन्होंने सभी लोकसभा के चुनावों में एक सदस्य के रूप में निर्वाचित होकर कदम रखा था,साल 2004 में 14वीं लोक सभा में वे 10वीं बार चुन कर आये।
साल 1989 से 2004 तक वे लोक सभा में सीपीआईएम के नेता भी रहे। उन्होंने लगभग 35 सालों तक एक सांसद के रूप में देश की सेवा की। इसके लिए उन्हें साल 1996 में उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार से नवाजा गया।
जब हार गए थे सोमनाथ चटर्जी
साल 1984 था,बंगाल पर लेफ्ट का राज चला करता था,और हाल ये था कि लेफ्ट के उम्मीदवार खिलाफ चुनाव लड़ने की भी हिम्मत नहीं होती थी। इसलिए कांग्रेस ने युवा नेता ममता बनर्जी को जादवपुर लोकसभा से उम्मीदवार बना दिया।
लेकिन चुनाव के समय और प्रचार के समय ममता को नजरअंदाज किया गया लेकिन,ममता ने परिणामों के दिन अपने विरोधी को चारों खाने चित कर दिया,और सोमनाथ चटर्जी चुनाव हार गए,ये एक मात्र मौका था जब वो चुनवा हारे थे।
जिस पार्टी में रहें उसने ही निकाल दिया.
वर्ष 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौता विधेयक के विरोध में सरक़ार और विपक्ष में ठनी हुई थी, लेफ्ट जो सरकार को बाहर अब समर्थन दे रहा था वो इसके खिलाफ था,और लोकसभा स्पीकर उन्हीं की पार्टी से थे,ऐसे में उनसे पार्टी ने कहा आप पद छोड़िए,लेकिन अपने सिद्धांतों के आगे उन्होंने पार्टी को आड़े नहीं आने दिया।
सीपीएम ने तत्कालीन मनमोहन सरकार से समर्थन वापस ले लिया था,तब सोमनाथ चटर्जी लोकसभा अध्यक्ष थे। इसके बाद सीपीएम ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया,लेकिन सरकार भी बच गई और सोमनाथ चटर्जी का नाम इतिहास में शामिल है।
थी.