टॉम ऑल्टर का ऑडिशन रोक हंसने लगे थे लोग

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टॉम ऑल्टर का ऑडिशन रोक हंसने लगे थे लोग
टॉम ऑल्टर (Tom Alter) भारतीय सिनेमा में एक ऐसे बेहतरीन कलाकारों में से एक हैं। उन्हें सिनेमा में अपने योगदान के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। टॉम एक ऐसे अदाकार थे। जिन्हें किसी खांचे में समेट कर नहीं देखा जा सकता। ऐसा करना उनकी तौहीन करने जैसा है। टॉम ऑल्टर का जन्म मसूरी (Masoori) के राजपुर इलाके में 22 जून 1950 को हुआ था। टॉम बेशक विदेशी दिखते थे। लेकिन वो उतने ही देसी और पुराने ज़माने के तौर तरीके में जीने वाले व्यक्ति थे, जितने आपके या हमारे माता-पिता। टॉम के दादा नवंबर 1916 में भारत आए थे। तब से टॉम ऑल्टर की कुल पांच पीढ़ियां भारत में रह रही हैं। आज टॉम के जन्म दिन पर हम आपको जो किस्से बताने जा रहे है, वो शायद आपने पहले कभी नहीं पढ़े होंगे।

बंटवारे के समय परिवार में भी हुआ बंटवारा

टॉम ऑल्टर के दादा का जहाज़ मद्रास (Madras) में रुका इसके बाद वो ट्रेन से लाहौर चले गए। टॉम के दादा शुरआती दौर में रावलपिंडी, सियालकोट और पेशावर जैसे इलाकों में पादरी का काम किया करते थे। जब 1947 में भारत (India) पाकिस्तान (Pakistan) का बंटवारा हुआ तो टॉम के पिता भारत में, और दादा पाकिस्तान में रहना चाहते थे। इसीलिए टॉम के पिता भारत में पहले इलाहाबाद में आकर रहने लगे और कुछ दिन बाद इलाहाबाद से टॉम के पिता सहारनपुर और फिर जबलपुर में जाकर रहे। अंततः उनका पूरा परिवार मसूरी देहरादून के बीचोंबीच राजपुर में जा बसा।

वुडस्टॉक स्कूल से की पढ़ाई

टॉम ऑल्टर की पढ़ाई मसूरी के ही वुडस्टॉक स्कूल में हुई। और आगे की पढ़ाई के लिए टॉम अमेरिका के येल यूनिवर्सिटी में गए। लेकिन, वहां उनका मन नहीं लगा। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि मैं थोड़ा आवारा किस्म का था। इसलिए साल भर बाद ही दोबारा भारत लौट आए। यहां आकर उन्हें अपने ताऊ जी के कहने पर खेल के टीचर की नौकरी मिल गई।

आराधना फिल्म को देखकर ऐक्टिंग करने का देखा ख्वाब

यूं तो बचपन से टॉम फ़िल्में देखने के शौकीन थे। सिनेमा देखने के लिए ये मसूरी से देहरादून जाया करते थे। जब टॉम हरियाणा जगाधरी के सेंट थॉमस स्कूल में बतौर खेल टीचर की नौकरी करने लगे, तब उन्होंने हिंदी फिल्में देखना शुरू किया। इससे पहले टॉम सिर्फ अंग्रेजी फिल्में देखा करते थे। जगाधरी टॉकीज में जब टॉम ने आराधना फिल्म देखी, तो वो राजेश खन्ना साहब की एक्टिंग और अंदाज से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने फिल्मों में ऐक्टिंग करने की ठान ली।

जब ऑडिशन बीच में रोक कर हंसने थे जज

टॉम ने जब ऐक्टिंग में कैरियर बनाने का मन बनाया, तभी उन्हें ये महसूस हो गया था कि सिर्फ देखने में आसान लगती है। हकीकत में ये दस गुणा ज्यादा मुश्किल काम था। एक दिन उन्होंने अखबार में एफटीआईआई (FTII) पुणे का एक विज्ञापन देखा और अखबार में से ही दाखिले का फॉर्म काटकर हिंदी में भरकर भेज दिया। इसके बाद उन्हें ऑडिशन के लिए दिल्ली बुलाया गया। टॉम अपनी मोटरसाइकिल पर सवार होकर दिल्ली के लिए रवाना हो गए। यहां पर आकर उन्होंने देखा, 800 लोगों की लंबी लाइन लगी है। जिनमें से सिर्फ दो ही लोगों का सिलेक्शन किया जाना था। टॉम के बेटे जेमी ऑल्टर अपने यूट्यूब चैनल पर इससे जुड़ा किस्सा बताते हैं, जेमी कहते हैं कि इन 800 लोगों के बीच जब मेरे पिता जी का नंबर आया, तो अंदर बैठे लोगों ने अंग्रेजी के अमरीकी एक्सेंट में कहा कि “I am sorry sir, but you are in the wrong room” (माफ कीजिए महाशय आप गलत कमरे में आ गए हैं।) मेरे पिता ने भारतीय एक्सेंट वाली अंग्रेजी में जवाब दिया, “But I am here to do the audition for FTII, is this not a right room” ( पर मैं वहां एफटीआईआई के ऑडिशन देने के लिए आया हूं, क्या है सही कमरा नहीं है।

इस बात पर वहां बैठी कमेटी ने कहा, हमें माफ कीजिए पर यह ऑडिशन हिंदी में होगा। उन्होंने ने जवाब देते हुए कहा मुझे हिंदी ऑडिशन देने में बेहद खुशी होगी। पापा ने अपने ऑडिशन को भाषा के आधार पर तीन हिस्सों तैयार किया था। पहला, अमरीकी हिप्पी। दूसरा, पढ़ा लिखा भारतीय व्यक्ति और तीसरा अनपढ़ देहाती। परफॉर्मेंस के दौरान कमेटी ने उनका एक्ट बीच में ही रोक दिया और हंसने लगे। इससे मेरे पापा बेहद निराश हुए, उन्हें लगा कि वो ऑडिशन में फेल हो गए हैं और वापस मसूरी चले गए। कुछ दिन बाद उन्हें एफटीआईआई की तरफ से सिलेक्शन का खत आया।

दरअसल, कमेटी के लोगों ने पहली बार किसी अंग्रेज जैसे दिखने वाले व्यक्ति के मुंह से इतनी अच्छी हिंदी सुनी थी। साथ मेरे पिता की परफॉर्मेंस से कमेटी के लोग इतने खुश हो गए थे कि उन्हें पूरी परफॉर्मेंस देखने की जरूरत ही महसूस नहीं हुई।

अपने पास कभी नहीं रखा मोबाइल फोन

टॉम ऑल्टर के बेटे जेमी बताते हुए हैं कि उनके पिता ने कभी अपने पास फोन नहीं रखा। इसके बावजूद वो काफी दूर-दूर तक ट्रैवल किया करते थे। जेमी कहते हैं ऐसे में पापा से केवल ईमेल के जरिए ही कॉन्टैक्ट कर सकते थे। दरअसल, टॉम ऑल्टर का मानना था कि आज स्मार्टफोन और लैपटॉप हम पर इतने हावी हैं कि हमें इनका गुलाम होने से बचना चाहिए। वो मानते थे, आज के समय में नौजवानों को कम से कम छः से सात घंटे अपने फोन को बंद करके रख देना चाहिए।

राज्यसभा की संविधान श्रृंखला में निभाया मौलाना अबुल कलाम का किरदार

वैसे तो टॉम ऑल्टर ने अपने फिल्मों कैरियर में करीब 300 से 350 फिल्मों में काम किया। इसके अलावा उन्होंने कई टीवी सीरियल में भी अपने अभिनय का दम दिखाया। राज्यसभा की संविधान श्रृंखला में मौलाना अबुल कलाम का किरदार निभाने के साथ ही टॉम शक्तिमान, यहां के हम सिकंदर और जुनून सहित कई सीरियलों में नजर आ चुके हैं।

नेहरू-गांधी के लिए गलत बातें सुन कर अफसोस होता है

एक इंटरव्यू में उनसे पूछा गया कि बीते वर्षों में हिंदुस्तानी समाज में जो बदलाव आ रहा है, उनमें कौनसी ऐसी चीजें हैं जो आपको अलार्मिंग लगती हैं। इसका जवाब देते हुए टॉम कहते हैं कि “मैं जब पैदा हुआ, तो एक नया भारत बन रहा था। वो सब मैंने अपनी आखों से देखा। यह बिल्कुल निजी बात है, आज जब नेहरू की बुराई होती है तो बड़ा अफसोस होता है और आजकल तो रिवाज है कि नेहरू जी ये थे, वो थे।”

टॉम आगे बताते हैं-मेरा जब जन्म हुआ तो वो हमारे प्रधानमंत्री थे। मुझे बस इतना याद है कि उनके हिंदुस्तान में किसी तरह के भेदभाव की बात नहीं होती थी। 17 साल तक उस आदमी ने हिंदुस्तान को बांध कर रखा। उनसे गलतियां हुईं, लेकिन अब जब लोग गांधी जी और नेहरू की बुराई करते हैं, खासकर वो नई पीढ़ी जिनको कुछ नहीं मालूम है तो मुझे बड़ा अफसोस होता है। बीते सालों में यह रिवाज बन गया है कि बीसवीं सदी में जो कुछ हुआ सब बकवास है। इस बात का मुझे बहुत दुख होता है।