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ये भी तो अज़ादी ही है, कि किसे बाईट दी जाये और किसे नहीं

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दो दिनों से कई पोस्ट पढ़ चुका हूं जिसमें Shehla Rashid की इस बात पर आलोचना की जा रही है कि उसने Republic के पत्रकार को क्यों हड़काया। कुछ बातें कहने को हैं:
ये जो ताज़ा रिपब्लिक है और जिसका डॉन पहले TIMES NOW में था, उसने कैसी रिपोर्टिंग और कैसी डिबेट की JNU को लेकर? ज़्यादा नहीं, बस डेढ़ साल पहले की बात है। पूरे देश में जेएनयू की जो ख़ास तरह की छवि बनाई गई, उसमें अर्नब गोस्वामी का बड़ा रोल है।

  • टाइम्स नाऊ जब जेएनयू, शेहला, Umar, Kanhaiya, Anirban इन सबको देशद्रोही बता रहा था तो वो कौन सी Neutrality और Objectivity दिखा रहा था? Objectivity नाम के शब्द को पत्रकारिता में बार-बार रटाया जाता है। पहले मीडिया इसे फॉलो करे। शेहला एक्टिविस्ट है। उसे पक्ष-विपक्ष चुनने की आज़ादी है। उसे आज़ादी है कि वो किसी चैनल को बाइट दे और किसी की माइक सामने से हटा दे। आप ज़बर्दस्ती मुंह पे माइक टांग देंगे क्या?
  •  ये भी हो सकता है कि वो रिपोर्टर अपने चैनल की आइडियोलॉजिकल फ्रेम से अलग हो। ऐसा होता भी है। लेकिन माइक जिस संस्था की थी उसका एजेंडा बिल्कुल क्लीयर है। पहले दिन से साफ़ है। उस एजेंडे को शेहला अपने विरोध में पाती है। इसलिए उसकी मर्जी है कि वो माइक हटाने को कह दें।
  • जिस प्रोटेस्ट में शेहला ने ऐसा किया वो 3 बजे प्रेस क्लब के भीतर वाला प्रोटेस्ट नहीं था, जिसे “सिर्फ़ पत्रकारों” का कहकर प्रचारित किया जा रहा है। शेहला वाला मामला उससे पहले का है, जो पत्रकारों के अलावा एक्टिविस्टों की साझे कॉल पर हो रहे प्रोटेस्ट में घटित हुआ।
  • मान लीजिए किसी मीडिया हाउस ने किसी संस्था के ख़िलाफ़ रिपोर्टिंग की। हफ़्ते भर बाद उस संस्था का कोई आदमी न्यूज़रूम पहुंच जाए और ज्ञान देने लगे तो चैनल वाले क्या करेंगे?
  • गौरी लंकेश की हत्या पर जो खेमा जश्न मना रहा है, रिपब्लिक उस खेमे को आइडियोलॉजिकल खुराक देता है। ऐसे में Gauri Lankesh की हत्या के ख़िलाफ़ प्रदर्शन में अगर रिपब्लिक की माइक कोई मुंह पर तान दे तो स्वाभाविक ग़ुस्सा निकलेगा।
  • पत्रकारिता में या कहीं भी objectivity सबसे बेकार चीज़ है। इसपर किसी को कोई डाउट हो तो अलग से बात कर लेंगे। ऑब्जेक्टिविटी की जो वैचारिक hegemony है वो बहुत ख़तरनाक है। तराजू से तौल कर निष्पक्षता नहीं आती। आप टास्क के तौर पर मुझे कोई बढ़िया डिबेट/लेख दे दीजिए मैं बता दूंगा कि कहां कहां ऑब्जेकेटिविटी नहीं है। लेख अगर ऑब्जेक्टिविटीवादी का हो तो और बढ़िया
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