अरूण शौरी कई बार सीधा बोलते हैं,कई बार तीखा बोलते हैं। लेकिन बोलते सही हैं। आज वो मन की बात वाली किताब पर सवाल उठा रहे हैं। लेकिन एक सवाल उन्होंने अस्सी के दशक में उठाया था सवाल सीधा सा था, कि क्या ये मुमकिन है कि मध्यम वर्गीय परिवार का एक लड़का एकाएक 5.4 मिलियन एक साल में बना ले और पिता को कुछ मालूम ना चले। बेटा था उमेश कटरे,पिता थे मोहन कटरे,1987 के साल में सीबीआई के डायरेक्टर।
उसी साल अगस्त के महीने में सीबीआई के पास ताजा ताजा केस आया था नुस्ली वाडिया के कत्ल की साजिश का । रिलायंस के एक पब्लिक रिलेशन मैनेजर कीर्ति अंबानी पर साजिश का आरोप था।
साजिश की पोल अपराध होने से पहले ही खुल गई, तो महाराष्ट्र के तत्कालीन सीएम शरद पवार ने सेवन रेसकोर्स रोड में घंटी बजा केस फाइल की कहानी सुनाई और नतीजतन केस मुंबई पुलिस से सीबीआई को सौंपा गया।
1 अगस्त 1987 को कीर्ति अंबानी पर मुकदमा दर्ज हुआ,उसी दिन मोहन कटारे भागे भागे मुबंई पहुंचे,केस की फाइलें खंगाली। इस दौरान वो बेटे के मरीन ड्राइव वाले बंगले पर ही ठहरे थे। इकलौते बेटे उमेश के रिलायंस से कारोबारी रिश्ते थे। सरस डिटरजेंट नाम की कंपनी के जरिए वो सालाना मोटा मुनाफा रिलायंस से उठा रहे थे।
खैर केस चलता रहा हश्र वही हुआ जो ऐसे कई केसों का होता है। कीर्ति समेत दो साजिशकर्ताओं को बेल मिल गई। रिलायंस ने कहा उन्हें कुछ मालूम नहीं। मोहन कटरे ने भी कहा कि बेटे की कमाई के बारे में उन्हें कुछ मालूम नहीं।
लेकिन कहा जाता है कि उस वक्त एक साथ कई अखबारों में ये खबर प्लांट की गई कि कीर्ति अंबानी के खानदान में मानसिक बीमारी की हिस्ट्री रही है। बाकी सब हिस्ट्री वैसे भी है। रिलायंस वहीं की वहीं है। कीर्ति अंबानी पिछले साल ही दुनिया छोड़ चुका है। बात अरुण शौरी की हो रही थी,उनके उठाए कई सवाल सही जान पड़ते हैं।