मर्दों के अंदर धर्मांन्धता, जातीयता, मर्दानगी का अहंकार भरा है

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बलात्कार के मामले को इस सरकार बनाम उस सरकार का मुद्दा बना कर देख लिया गया। कठुआ बनाम उन्नाव का मुद्दा बनाकर देख लिया गया। हिन्दू बनाम मुसलमान बनाकर देख लिया गया। अपराधियों के मज़हब देखे गए। पीड़िता का जात धर्म देख लिया गया। राजनीति का कोई ऐसा गर्त न रहा होगा जहाँ बलात्कार का मामला न पहुँचा हो। समाज को निशाना बनाकर देख लिया गया। क़ानून बनाकर देख लिया गया। फाँसी की सज़ा देकर देख लिया गया। बलात्कार ख़त्म नहीं हुआ। कम नहीं हुआ।
बुधवार को हरियाणा के महेंद्रगढ़ में कोचिंग के लिए जाती एक लड़की को अगवा कर लिया गया। उसका बलात्कार किया गया। बलात्कारी ने उसके बाद घरवालों को फ़ोन किया कि लड़की यहाँ पड़ी हुई है, ले जाएँ। हरियाणा पुलिस प्रमुख ने कहा है कि मुख्य आरोपी सेना का है। उसे गिरफ़्तार करने की अनुमति ली जा रही है।दिल्ली का एक वीडियो आपने देखा होगा कि एक लड़का एक लड़की को लात घूँसे से मारे जा रहा है।तोमर मार रहा है। अली वीडियो बना रहा है।
कुछ कहना बाक़ी नहीं रहा। सब कहा जा चुका है। सब कुछ सुना जा चुका है। सज़ा दी गई। सज़ा नहीं दी गई। फिर भी यह हिंसा थम नहीं रही है। पुरुष की क्रूरताएं चरम पर हैं। सत्ता का नशा है। ताक़त बेहिसाब है। किसी को शर्म नहीं आती है। बलात्कार की मानसिकता की जो बुनावट है उस पर किसी बात का असर नहीं है। अगले दिन किसी अगले मोड़ पर बलात्कारी खड़ा मिलता है। आप चुप रहते हैं। आप बोलते हैं। ज़िंदाबाद बोलते हैं। मुर्दाबाद बोलते हैं। फिर भी बलात्कारी कम नहीं होते हैं। मर्दों के अंदर धर्मांन्धता, जातीयता, मर्दानगी का अहंकार भरा है। वही समाज में है। वही सरकार में है।

नोट :- यह लेख वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार की फ़ेसबुक वाल से लिया गया है