नज़रिया – क्या देश के ही नागरिकों से भेदभाव कर विश्वशक्ति बन पायेगा भारत?

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कल मेरे एक संघी मित्र ने कहा कि आप क्या सोचते हैं कि – “यदि देश का बटवारा नहीं हुआ होता तो आज भारत दुनिया की एक बड़ी शक्ति होता ?”
मैंने कहा – “निश्चित रूप से परन्तु भारत दुनिया की एक बड़ी शक्ति बटवारे के बावजूद भी बन सकता था यदि देश में देशवासियों के ही एक वर्ग के प्रति दूसरे वर्ग से घृणा फैलाकर सत्ता पाने की राजनीति नहीं होती , नेताओं ने देश की उस शक्ति को बाँट दिया जो देश को दुनिया की एक बड़ी शक्ति बनाता”

शायद उसे उसके सवाल से अधिक का जवाब मिल गया परन्तु मेरे इस जवाब से कुछ सवाल पैदा हो गये।

श्रीलंका में अभी कुछ दिन पहले ही तमिलों के विरुद्ध सिंहलियों ने हिंसा की , और जैसे ही यह हिंसा फैलती श्रीलंका के तमाम सिंहली क्रिकेटर और अन्य सेलेब्रिटी तमिलों के समर्थन में आ गये , उनके समर्थन में बयान दिया और वह हिंसा खत्म हो गयी। काश कि भारत में भी ऐसा होता।
साउथ अफ्रीका के बल्लेबाज हाशिम अमला शक्ल और स्वभाव से एक कट्टर मुसलमान हैं , उनके चेहरे पर इस्लामिक दाढी है और वह पूरी तरह इस्लाम को फालो करते हैं।
ऑस्‍ट्रेलिया के ही पूर्व क्रिकटर डीन जोन्‍स ने लाइव कमेंट्री के दौरान हाशिम अमला को आतंकवादी कहा , पूरे दक्षिण अफ्रीका ने एक होकर डीन जोन्स का विरोध किया तो डीन जोन्स को माफी माँगनी पड़ी , स्टार चैनल ने इसी विरोध के कारण डीन जोन्स से हुआ करार रद्द किया और डीन जोन्स के कमेन्टेटर का खेल खत्म हो गया।

हाशिम अमला हों या आज की इंग्लैंड की टीम देखता हूँ जिसमें वैसी ही दाढी रखे मुसलमान मोईन अली और आदिल रशीद प्रमुख खिलाड़ी हों तो सोचता हूँ कि ऐसे इस्लामिक दाढ़ी रखे मुसलमान खिलाड़ी भारत की क्रिकेट टीम में होते तो देश में क्या प्रतिक्रिया होती ? बताने की आवश्यकता नहीं है।

भारत का दुनिया की महाशक्ति ना बन पाने का मेरी समझ से एक मात्र कारण नेताओं द्वारा देशवासियों को ही आपस में लड़ा कर उनके वोट से सत्ता प्राप्त करना रहा है।

आप अमेरिका , ब्रिटेन , कनाडा , जर्मनी , फ्रांस , चीन इत्यादि के चुनाव और उनकी आंतरिक राजनीति पर ध्यान दीजिए , वह वैश्विक रूप से आपको भले मुसलमान या इस्लाम विरोधी दिखते हों परन्तु अपने देश में किसी भी आधार पर वह ना तो देश वासियों में बिखराव पैदा करके राजनीति करते हैं ना देश को कमजोर करते हैं। यह इसीलिए विश्वशक्ति हैं।
जब देश की जनता आपस में ही लड़ती रहेगी तो देश की उर्जा और संसाधन एक तो बिखर जाएँगे और दूसरे शेष संसाधन आंतरिक सुरक्षा पर खर्च होंगी , बाकी सीमा पर तो खर्च निश्चित है ही।
मेरा आकलन है कि यह देश भारत अपने संसाधनों का “सुरक्षा” के संदर्भ में जितना खर्च करता है वह यदि ना हो तो इस देश को विश्वशक्ति बनाने से कोई रोक नहीं सकता।
अमेरिका , ब्रिटेन , कनाडा , जर्मनी , फ्रांस , चीन के विश्वशक्ति बनने का यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वह अपनी आंतरिक और वाह्य सुरक्षा को लेकर निश्चिंत हैं और अपने संसाधनों का प्रयोग देश को विश्वशक्ति बनाने में खर्च कर रहे हैं और हम देश के अंदर शांति बनी रहे इस पर। पर नेता यह बात नहीं समझते और देश की जनता तो 99% मुर्ख है ही।

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