भाजपा का खेला भी निराला है। जैसे ही अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार रिचर्ड थेलर को घोषित हुआ, केंद्रीय मंत्रियों तक ने हल्ला मचा दिया कि नोटबंदी के समर्थक को नोबेल मिला है। मानो नोटबंदी के अत्याचार, मंदी, बेरोज़गारी और नोटबंदी के कारण हुई मौतों के पाप से रातोंरात छुटकारा मिल गया।
Richard Thaler just won the Nobel for Economics.. pic.twitter.com/oUvSGO0dbX
— Amit Malviya (@amitmalviya) October 9, 2017
सचाई क्या थी? थेलर (उचित ही) बड़े नोटों के समर्थक नहीं हैं। भारत में इस विचार के समर्थक वे लोग भी मिलेंगे जो मोदी के आलोचक हैं। मैं ख़ुद मानता हूँ कि दो सौ रुपए से बड़ा नोट नहीं होना चाहिए।
थेलर मानते आए हैं कि बड़े नोट चलन में न हों तो भ्रष्टाचार पर लगाम लग सकती है, कार्ड आदि से (कैशलेस) भुगतान की मात्रा बढ़ सकती है। आख़िर लोग छोटे नोटों की कितनी मात्रा लेनदेन में इस्तेमाल कर सकेंगे।
This is a policy I have long supported. First step toward cashless and good start on reducing corruption. https://t.co/KFBLIJSrLr
— Richard H Thaler (@R_Thaler) November 8, 2016
इसलिए जब थेलर को ख़बर मिली कि 500 और 1000 के नोट बंद कर दिए गए हैं, उन्होंने स्वाभाविक ही इसका “नीति-गत” स्वागत किया। लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि बंद नोटों की जगह 2000 का नोट चलाया जाएगा, तो उन्हें भरोसा नहीं हुआ और उन्होंने उसी घड़ी ट्वीट किया – “Really? Damn.’ अर्थात् “वाक़ई? लानत है।”
बताइए, थेलर नोटबंदी के समर्थक हुए या निंदक? यह लानत भी उन्होंने नोटबंदी की इब्तिदा के रोज़ भेजी थी। आगे नोटबंदी अर्थव्यवस्था और रोज़गार में जो मातम लाई, उसकी ख़बर थेलर को दे कर कोई भाजपाई उनके विचार पूछता तो शायद गाज गिरती।
अच्छा हुआ हुआ कि पीयूष गोयल ने इस सिलसिले में अपना री-ट्वीट वापस ले लिया है।