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नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी से कांग्रेस को कितना फ़ायदा होगा ?

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पूर्व बसपा नेता नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी अपनी पुरानी पार्टी कांग्रेस जॉइन कर चुके हैं. ज्ञात होकि नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी बहुजन समाज पार्टी के एक बड़े मुस्लिम चेहरे के तौर पर जाने जाते रहे हैं. बसपा जॉइन करने के पहले नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी कांग्रेस में  हुआ करते थे.
2017 के उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावों के पहले बसपा सुप्रीमो मायावती से अनबन होने के बाद नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी ने बसपा को अलविदा कह दिया था. तब ही से तरह –तरह के कयास लगाए जा रहे थे, कि नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी किस पार्टी में अपनी नई राजनीतिक राह को चुनेंगे.
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फिलहाल ये चर्चा उस वक़्त ख़त्म हुई जब बाकायदा नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया. इसके बाद एक नई चर्चा शुरू हुई, कि सिद्दीक़ी के कांग्रेस जॉइन करने से कांग्रेस को उत्तरप्रदेश में क्या फ़ायदा होगा. साथ ही यूपी की राजनीति में किस तरह के समीकरण बनेंगे. यही सवाल हमने सोशलमीडिया में मौजूद लोगों से पुछा. जिसके जवाब में हर तरह के जवाब आये.

हमारा सवाल कुछ इस तरह था

नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी कांग्रेस जॉइन कर रहे हैं और जल्द ही शिवपाल यादव के कांग्रेस में शामिल होने की खबर है, इन दो बड़े नेताओं के कांग्रेस में शामिल होने से यूपी की सियासत में क्या चेंज देखने को मिल सकता है ? अपनी राय दें. आपकी राय को Tribunehindi.com में जगह दी जायेगी.
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आईये देखते हैं, इस सवाल के जवाब में किसने क्या प्रतिक्रिया दी

नईम अख्तर  कहते हैं – नसीमुद्दीन सिद्दीकी के कांग्रेस में जाने से बहुत अधिक फायदा नहीं होगा और ना ही शिवपाल यादव के जाने से वजह यह है कि नसीमुद्दीन बसपा में एक कद्दावर नेता  रहते हुए मुस्लिम कम्युनिटी के लिए कोई खास काम नहीं किया है.
ना ही कोई यूनिवर्सिटी IIT पॉलिटेक्निक जैसे कोई स्कूल भी नहीं बनवाया ना ही किसी खास मुद्दे पर कोई एक्शन लिया विपक्ष में रहते हुए भी मायावती के इशारों पर नाचने वाले नसीमुद्दीन कांग्रेस में जाकर  कोई बहुत बड़ा गुल नहीं खिला पाएंगे.
रही शिवपाल की बात तो शिवपाल में  भी अब वह दम नहीं रहा जिसका अंदाजा था. क्योंकि मुलायम सिंह यादव ने टुकड़ों में तोड़ा है शिवपाल को अगर सत्ता में रहते हैं या सत्ता जाते हैं शिवपाल अलग हो गए होते तो अखिलेश खेमा घबरा जाता. लेकिन मुलायम की कूटनीतिक चाल  शिवपाल को चारों खाने चित कर दी और अब शिवपाल के पास बहुत अधिक सियासत नहीं बची है.
कांग्रेस उत्तर प्रदेश में मुर्दा पार्टी खुद है, मुर्दा पार्टी में मुर्दों को जाने से जिंदगी मिलने की आस बहुत कम है. वैसे सियासत है किसी भी करवट जा सकती हैं.
मारूफ़ जे चौहान  कहते हैं – नसीमुद्दीन और शिवपाल को छोड़ दीजिये, ध्यान देने योग्य बात ये के नसीमुद्दीन के साथ 4 पूर्व सांसद और चार दर्ज़न पूर्व विधायक राहुल गांधी के समक्ष कांग्रेस में शामिल हुए हैं उनमें से एक पूर्व विधायक मेरी विधानसभा सीट से भी हैं जो जो सुरेश राणा के सामने लड़ते हुए 75000 वोट लेता हैं अगर इनमें से 25000 दलित वोट निकाल दे तो फिर भी 50000 वोट बिना पार्टी के लेने का भी माद्दा हैं पूर्व विधायक में, तो पूर्व विधायक हैं तकरीबन 50 ओर 4 पूर्व सांसद तो अब बताइये कांग्रेस को फायदा क्यों नही होगा.
अकेले नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी ओर शिवपाल को मत देखिये, 4 पूर्व सांसद और तकरीबन 50 पूर्व विधायको को देखिये महाराज, निश्चित ही कांग्रेस की हवा बनेगी।
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मोहम्मद उमर अशरफ  कहते हैं – कोई फ़र्क नही पज़ने जा रहा है। नसीमउद्दीन एक मुर्दा लीडर हैं। वहीं शिवपाल यादव भी कोई फ़ैक्टर नही हैं, क्युंके मुलायम ने अखिलेश को आगे कर दिया है। यादव का एक ही लीडर है और वो है मुलायाम सिंह यादव उसके बाद उसका वारिस अखिलेश। लोकल पार्टी के इस दौर में कांग्रेस उत्तर प्रदेश में मुर्दा थी, है और रहेगी।
दिनेश जिंदल    कहते हैं नसीमुद्दीन सिद्दीकी कभी भी दिग्गज नेता के रूप में स्थापित नहीं हुए हैं। उनका जो अपना वोट बैंक रहा है वह बसपा सुप्रीमो मायावती जी के कृपापात्र होने की वजह से रहा है। यदि इनके पास अपना जनाधार होता तो मायावती जी से कई बड़े नेता टूटकर इनके साथ लगे होते। इसीलिए मुझे तो नहीं लगता कि उत्तर प्रदेश में नसीमुद्दीन सिद्दीकी जैसे नेता किसी भी पार्टी को कोई लाभ दे सकते हैं। हां चाटुकारिता में बोले गए शब्द विपक्षियों का हथियार जरूर बन सकते हैं जैसा कि दयाशंकर जी के मामले में देखने को मिला।
हां शिवपाल जी थोड़े लाभदायक हो सकते हैं ।उनके अपने फॉलोवर हर जनपद में है। जमीनी नेता है और जहां उन्हें बुलाया जाता है वे जरूर जाते हैं। मगर उनके ऊपर भी गुंडों को संरक्षण देने का आरोप लगता रहा है और यदि वे इस आरोप से खुद को बचाए रखते हैं तो निश्चित ही पार्टी को मजबूती मिलेगी।
ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि भाजपा को राजनैतिक अमृत, उत्तर प्रदेश से ही मिलता रहा है। भाजपा के अविवादित नेता अटल जी की जन्मभूमि और कर्मभूमि और भाजपा को  जीवनदान देने वाला यही प्रदेश है, इसीलिए यहां पर भाजपा का प्रमुख एजेंडा “कट्टर हिंदुत्व” का रहा है। इसीलिए यहां पर आने वाले समय में यह रोचक रहेगा कि कौन सी पार्टी भाजपा के कट्टर हिंदुत्व का मुकाबला कर उत्तर प्रदेश को आगे ले जाने में सक्षम है। लोगों में आम धारणा यह है कि केंद्र में भाजपा को केवल कांग्रेसी ही टक्कर देती है और राज्य में भाजपा को केवल मायावती ही समेट सकती है। क्योंकि वे भी अपना शासन तानाशाही रवैया से चलाती हैं। लेकिन इस विषय पर मेरा अपना यह मानना है कि कांग्रेस में नसीमुद्दीन सिद्दीकी जी के आने का कोई लाभ कांग्रेस को नहीं मिलेगा।
मुहम्मद इक़बाल   कहते हैं – दोनों नेताओं से कांग्रेस को वोटों को लेकर कुछ ज़्यादा फ़ायदा तो नहीं होगा क्योंकि इन दोनों की ज़मीनी पकड़ कुछ भी नहीं हैं लेकिन इनके कांग्रेस में जाने से यूपी कांग्रेस को मोरल बूस्ट ज़रूर मिलेगा जोकि खुद अपने आप में बड़ी चीज़ है उसके इलावा नसीमुद्दीन सिद्दीकी के कांग्रेस में चले जाने से बसपा को एंटी मुस्लिम बताने का एक प्रोपगेंडा भी कांग्रेस के हाथ लग जाएगा.
शिवपाल और नसीमुद्दीन सिद्दकी कांग्रेस को अपने हित के लिए प्रोपगेंडा करने में सहायक होंगे यही एक फ़ायदा होगा
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असद शैख़ कहते हैं – लोकसभा चुनावों के।मद्देनजर देखें तो भाजपा के खिलाफ सिर्फ कांग्रेस है,तो भाजपा के किले में सेंध लगाने के लिए हर कोई उसकी तरफ ही जायगा, नसीमुद्दीन सिद्दीकी का जाना तय है और शिवपाल यादव जैसे दिग्गज नेता का भी उधर जाना हालात में बदलाव की तरफ इशारा कर रहा है।
जितेंद्र पाठक  कहते हैं – लोकसभा चुनाव जीत लेगी
रियाज़ निसार सबुगर   कहते हैं- कुछ खास फायदा नही होगा पर इतना कह सकते है के हवा बनाने जे काम आ सकता है।
अफ्फ़ान नौमानी   कहते हैं – पिछले दस वर्षों में भारतीय राजनीति में जो बदलाव दिखने को मिला है ऐसे में प्रत्यक्ष रूप से ये नहीं कहा जा सकता है कि नसीमुद्दीन सिद्दीकी व शिवपाल यादव के कांग्रेस मे शामिल होने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा या बहुत ज्यादा फर्क पड़ेगा । उत्तर प्रदेश के राजनीति पर गौर किया जाए तो ” फेस वैल्यु ” एक अहम मायने रखता है । ऐसे में मुस्लिम-यादव फैक्टर के तौर पर नसीमुद्दीन सिद्दीकी व शिवपाल यादव के प्रभाव को सीधे तौर पर इनकार नहीं किया जा सकता। कुल मिलाकर कांग्रेस के लिए नुकसान तो नहीं फायदा ही होगा।
अज़हर शमीम  कहते हैं – बसपा से निष्कासित पिटे हुए मोहरे नसीमुद्दीन सिद्दीकी के कांग्रेस में शामिल होने से कांग्रेस में ख़ुशी मनायी जा रही है और बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस बात की जानकारी दी गयी है। जबकि ज़्यादातर लोगो को पता है कि नसीमुद्दीन सिद्दीकी का मुस्लिम समाज में कोई ख़ास प्रभाव नहीं है और ना ही वो कोई बड़े मुस्लिम नेता हैं। उनकी बस यही पहचान है कि वो बहुजन समाज पार्टी में एक दलाल नेता रहे हैं और मायावती के चमचे बस। उन्होंने लोकसभा चुनाव में बड़ी, बड़ी रैलियां की, लेकिन बसपा को मुस्लिम वोट नहीं दिला सके। उनका कोई ऐसा कारनामा भी नहीं है कि जिसकी वजह से मुस्लिम समाज उन्हें सम्मान दे।
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बसपा सरकार में प्रभावशाली मंत्री होते हुए भी उन्होंने मुसलमानो के लिए कोई काम नहीं किया। ना ही आतंकवाद के झूठे आरोपों में बंद बड़ी संख्या में जेल भेजे गए निर्दोष मुस्लिम नौजवानों को कोई राहत दिला सके। सिवाय इसके की अपना और अपने रिश्तेदारों का घर भरा ,उन्हें आर्थिक लाभ पहुँचाया। और उनके ऊपर भ्रष्टाचार के भी आरोप लगे।
वाक़ी रशीद   कहते हैं- ज़मीन पर इनकी कोई पकड़ नही, 2-4 लोकल नेताओं को ज़रूर मुतास्सिर कर सकते हैं,
अवाम को नही, लेकिन कांग्रेस को कुछ न कुछ फ़ैयादा ज़रूर होगा
मुज़म्मिल अंसारी   कहते हैं – नसीमुद्दींन ने मुसलमानो के लिये कोई खास जमीनी काम नहीं किया है, और शिवपाल य़ादव को मुलायम ने विधानसभा चुनाव में अखिलेश को आगे करके अपने ही घर में मात दें दी है ज़िस खेल को समझने में शिवपाल य़ादव देर कर गये.
कांग्रेस को ज़्यादा फायदा तो नहीं होगा हाँ लेकिनं थोड़ा जनाधार ज़रूर मजबूत होगा
क़मर इंतेखाब  कहते हैं – देखिये कांग्रेस को नसीमुद्दीन का तो कतई फायदा नही होने वाला ।
राहिल हसी  कहते हैं – नसीमुद्दीन के पास कोई राजनीतिक ज़मीन न थी न है | शिवपाल ग्रुप अखिलेश से मनमुटाव होने पर टूट गया ये मात्र दो आम लोगो के किसी पार्टी से जुड़ने के बराबर है.

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