जब अपने देश को 15 अगस्त को आजादी नसीब हुई थी, तब गांधी जी ने कहा कि आजादी की घोषणा गांवो और शहरों में एक साथ की जाये. उस समय नेहरू गाँधीजी के सबसे नज़दीक़ी शिष्य थे और नेहरू बहुत तीक्ष्ण बुद्धि वाले थे. और उन्हें विदेशी मामलों का बहुत गहरा ज्ञान था.
भारत की राजधानी नई दिल्ली मे 15 अगस्त को आधी रात को शुरू हुआ. समारोह की शुरूआत रात को 11 बजे हुई. सबसे पहले वंदे मातरम गाया गया. उसके पश्चात् दो मिनट का मौन रखा गया, यह मौन उन लोगों की याद में था जिन लोगों ने देश की आजादी के लिये जान की क़ुर्बानी दी थी. महिलाओं की तरफ से राष्ट्रीय झंडा प्रस्तुत किया गया. उसके बाद भाषण का दौर चला. तीन मुख्य वक़्ता थे पहला चौधरी खालिकुज्जमा, दुसरे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन और तीसरे नेहरू.
उस समय नेहरु ने अपने महशूर भाषण ‘Tryst with Destiny’ दिया था. उस समय मध्य रात्रि की बेला में जब पुरी दुनियाँ नींद के आग़ोश में सो रही थी. हिंदुस्तान एक नयी ज़िंदगी और आजादी के वातावरण में अपनी आंख खोल रहा है. यह एक ऐसा क्षण है जो इतिहास में बहुत ही कम प्रकट होता है.
जब हम पुराने युग से नये युग में प्रवेश करते है, जब एक युग ख़त्म होता है. और जब एक देश की बहुत दिनों से दबायी गयी आत्मा अचानक अभिव्यक्ति पा लेती है.यह भाषण कांउसिल हाल में दिया गया. सड़कों पर लोग ख़ुशी से चिल्ला रहे थे. प्रधानमंत्री के अलावा 13 अन्य मंत्री यों के नाम थे.
गांधीजी ने उन्हें पहले सतर्क किया था कि आजादी हिंदुस्तान को मिल रही है कांग्रेस को नही गांधीजी ने कहा था की मंत्री मंडल गठन में सबसे काबिल लोगों को जगह मिलनी चाहिये. चाहे वह किसी भी पार्टी का क्यो न हो, पाँच अलग अलग धर्मों के लोग थे. एक महिला राजकुमारी अमृत कौर थी. दो अछूत माने जाने वाले समुदाय से थे. पटेल मौलाना अबुल कलाम अंबेडकर जैसे लोग हमारे पहले मंत्रीमंडल में थे.
गवर्नर जनरल लार्ड मांउटबेटन बने. वो आखिरी वायसराय थे. देश के हर गांव शहर मे आजादी का जश्न मनाया गया. लेकिन गांधीजी ने 15 अगस्त 1947 को चौबीस घंटे का उपवास करके मनाया. और आजादी के साथ देश का बँटवारा हो गया था. कलकता में 16 अगस्त को हिंसा फैल गयी. गांधीजी ने ग्रामीण बंगाल की ओर घटना स्थल पर रवाना हुये. उस समय 77 साल का वृद्ध कीचड़ ओर चटाने से भरे कठीन इलाक़ों में हिन्दुओं को सांत्वना दी.
अपने सात सप्ताहों मे गांधीजी ने 116 मील पैदल यात्रा की. सौ जगहों पर सभा की. उसके बाद बिहार की यात्रा की. वहाँ मुसलमान हिंसा के शिकार हुए. फिर दिल्ली पहुँचे. यहाँ पंजाब से शरणार्थियों आये हुये थे वहां उन्हें शांत करने की गांधीजी ने कोशिश की. इस तरह महापुरूष ने दंगों की आग में जलते दोनो धर्मों के लोगों के बीच शांती बनायी. इस देश की हमारी भावी पिढियां गांधीजी की हमेसा ऋणि रहेगी. गांधी जी ने आजादी का सपना साकार करने मे सारी ज़िंदगी लगा दी.