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किसान का धर्म

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एक किसान बस किसान होता है,जब उसे मुनाफा हो तब भी किसान होता है और जब उसकी फसल बर्बाद हो जाए तब भी किसान होता है,जब उसे कर्जा मिलता है वो सिर्फ किसान होता है और फ़सल बर्बादी की वजह से वो जब कर्ज नही चुका पाता तब भी किसान होता है और तो और जब वो आर्थिक तंगी में आत्महत्या करके अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेता है वो तब भी किसान ही होता है..!
जो किसान चार साल ग्यारह महीने किसान ही रहता है तो वो इलेक्शन से 1 महीना पहले हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई में कैसे बंट जाता है? सिर्फ और सिर्फ साम्प्रदायिकता की राजनीती और इसी राजनीति में यह नहीं कि सिर्फ एक ही घर बर्बाद हो नुकसान दोनों का होता है और सत्ताधारी मौज करते हैं और किसान पर हंसते हैं..!!
जबसे किसान पार्टीबाजी औऱ धर्म की राजनीति में फंसा है तबसे उसका बुरा हाल है,कल ही 7 किसानों की ज़मीन हरयाणा में नीलाम करा दी गई आत्महत्या से तो आप चिर परिचित हैं…!!
तुम कमज़ोर हो गए हो इसलिए अब कोई चौधरी चरण सिंह,चौधरी देवीलाल या चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत नहीं है,ये महापुरुष अलग से नहीं आए थे इन्होंने सत्ताधारियों को अपने इशारों पर नचाया था,अपने हिसाब से काम लिए थे लेकिन अब तुम अपनी अपनी पार्टियों के हिसाब से काम करते हो और खुद को बेहतर साबित करने के लिए एक दूसरे से लड़ते हो मरते हो फिर चील बाज़ की तरह सत्ता में बैठे लोग तुम्हे नोचते हैं पर तुम विरोध नही करते क्योंकि तुमने उन्हें सर पर बैठा लिया है…!!
हश्र और बुरा होगा राजनीति तुम तय करो क्योंकि तुम जनता हो कोई सत्ताधारी तुम्हारा भविष्य तय नहीं करेगा..!!
होशियार हो जा भोले किसान यही चौधरी छोटूराम ने कहा था और यही कहते कहते बाबा टिकैत गए अब तुम इनकी वाणी भूल चुके हो और पार्टियों के गुलाम बन गए हो..!!
बाबा टिकैत अमर रहें..!!
पगड़ी सम्भाल जट्टा,दुश्मन पहचान जट्टा…!!

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