किसान आंदोलन या भाजपा किसे चुनेगा पश्चिमी यूपी?

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जब हम दिल्ली बॉर्डर से यूपी में एंट्री करते हैं तो पहला ज़िला पड़ता है ग़ाज़ियाबाद, बस यहीं ही से यूपी का गन्ना क्षेत्र शुरू होता है। जो देश भर में गन्ने के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक हैं। इस क्षेत्र की एक और पहचान है,ये “जाटलैंड” के नाम से मशहूर हैं। इस क्षेत्र में गाज़ियाबाद, मेरठ,मुजफ्फरनगर,बागपत ,बिजनोर, हापुड़, बुलंदशहर ,कैराना से लेकर अमरोहा,अलीगढ़ और मथुरा आदि ज़िलें स्थित हैं

क्यों वेस्ट यूपी का माहौल गर्म है।

बीती सर्दियों से पहले किसान दिल्ली बॉर्डर पर आ गए थे, कड़ाके की सर्दी के बीच कृषि बिलों के खिलाफ खड़ा हुआ आंदोलन एक बड़ा आंदोलन बन गया था। लेकिन 26 जनवरी को ट्रेक्टर रैली हुई उसमें हिंसा और आंदोलन बिखर गया। कई जगह से धरने पर बैठें किसान उठ खड़े हुए लेकिन गाज़ीपुर बॉर्डर पर से किसान नहीं उठें।

वहां किसानों का नेतृत्व राकेश टिकेट कर रहे थे, सर्दी की कड़कड़ाती रात में आंदोलन को हटाने को लेकर एक नॉटिस यूपी सरकार की तरफ से जारी हुआ और मीडिया को बाइट देते हुए आंदोलन के नेता राकेश टिकैत रोने लगें। उनके आँसूओं ने बिखरते हुए आंदोलन को बदल दिया,जहां ये लग रहा था आंदोलन अब खत्म होगा लेकिन हज़ारों किसानों ने वेस्ट यूपी से इन आंसुओं को अपना समझ कर दिल्ली कूच कर दिया।

बस यही से राजनीतिक माहौल बदल गया,राकेश टिकैत कुछ ही दिनों में बड़ा राजनीतिक नाम बन गए। क्योंकि उनके पैतृक गांव “सिसौली” जो मुजफ्फरनगर लोकसभा में पड़ता है वहां से लेकर राजधानी दिल्ली तक भारतीय किसान यूनियन के समर्थन के लिए हज़ारों आदमी गाज़ीपुर बॉर्डर दिल्ली पहुंचने लगे।इसी तरह धीरे धीरे किसान आंदोलन राष्ट्रीय मुद्दा बन गया।

अब जब ये आंदोलन राष्ट्रीय मुद्दा बन गया तो,मुजफ्फरनगर लोकसभा से सांसद और केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान पर दबाव बढ़ गया,भाजपा हाईकमान से उन्हें किसानों के लिए आये तीनों कृषि बिलों के बारे में बताने की ज़िम्मेदारी मिल गई। लेकिन हालात अब भी बेहतर नहीं हुए, कई गांवों में उनके विरोध के वीडियो वायरल होने लगे।

संजीव बालियान (मुजफ्फरनगर सांसद) और सत्यपाल सिंह (बागपत सांसद) दोनों ही पर भारी दबाव था,क्योंकी ये दोनों ही जाट समाज से आते हैं और राकेश टिकैत भी जाट समाज से आते हैं। अब जाट समाज खुद से खुद के बारे में सवाल कर रहा था,वो क्या करे? किसे वोट दे?

क्या स्थिति है कौन कौन नेता हैं?

संजीव बालियान फ़िलहाल वेस्ट यूपी के सबसे बड़े जाट नेता हैं, उन्होंने वेस्ट की राजनीति के दिग्गज चौधरी अजीत सिंह को ज़बरदस्त तरह से 2019 में चुनाव हराया और भाजपा हाईकमान के सामने खुद को नेता की तरह स्थापित किया है। 2014 ,2017 और 2019 के चुनावों में संजीव बालियान ने ज़मीन पर मेहनत करके दिखाई है। कोरोना काल मे भी सांसद जी ज़मीन पर थे। इसलिए उनकी तारीफ भी हुई थी।

दूसरी तरफ राकेश टिकैत हैं, जो खुद 2 चुनाव हारे हैं रालोद से जुड़े रहे हैं, लेकिन फिलहाल वो एक बड़ा नाम बन गए हैं जो खुलेआम भाजपा सरकार के खिलाफ किसानों का नेतृत्व कर रहे हैं। उनका ये कहना है कि किसान भाजपा 2022 में जवाब देने वाले हैं। बीते करीब 9 महीनों से आंदोलन का नेतृव कर रहे टिकैत साहब राजनीति से खुद दूर बताते हुए बढिया राजनीति कर रहे हैं।

बुढ़ाना मे कल क्या बवाल हुआ है?

कल बुढ़ाना विधानसभा से भाजपा विधायक उमेश मलिक, सिसौली गांव अपनी विधानसभा क्षेत्र के दौरे पर थे। वहां उनके काफिले पर हमला हुआ उनकी गाड़ी पर तेल फैंका गया और शीशे तोड़े गए। ये सब कुछ किया भारतीय किसान यूनियन के लोगों ने , ऐसा आरोप लगाया है विधायक जी ने,अब यहां गरमा गर्मी बढ़ गयी है।

 

इस माहौल के बाद संजीव बालियान ने लोगों को संबोधित किया उसमें उन्होंने एक विवादित बयान दे दिया है। उन्होंने जो कहा है उसमें से एक लाइन ये है कि “कप्तान साहब (पुलिस अधिकारी) या तो आप लोग कार्यवाही कर लो या बीच मे हट जाओ” ये बयान बता रहा है कि भाजपा के नेताओं का विरोध इतना आसान क्षेत्रीय भाकियू के लोगों के लिए होने नहीं जा रहा है।

बात यही नहीं रुकी, भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत ने भी इतनी ही विवादित बात कह दी है। उन्होंने कहा है कि “अगर बालियान खाप में ये (संजीव बालियान) घुस जाए तो इनके साथ कुछ भी हो सकता है” ये दोनों ही बयान इसलिए अहम हो जाते हैं क्योंकि क्षेत्रीय आधार पर इन दोनों ही नेताओं के क्षेत्र एक हैं। इसके अलावा यूपी चुनाव तैयार हैं,यानी चुनाव बहुत रोमांचक यहां होने जा रहा है।

राजनीतिक स्थिति क्या कहती है?

फिलहाल मुजफ्फरनगर लोकसभा पर भाजपा लगातार 2 बार जीत कर आई है। वहीं इस लोकसभा के अंतर्गत 6 विधानसभा सीटों पर भी भाजपा ही का कब्ज़ा है। वहीं राष्ट्रीय लोकदल और समाजवादी पार्टी का गठबंधन इस क्षेत्र में भाजपा के चक्रव्यूह को भेदना चाह रहा है। क्योंकि 2022 की स्थिति भाजपा के लिए आसान नही है। हालात अब बदल गए हैं।

वहीं भाजपा ने जाट-गुर्जर समाज जैसे किसान वर्गों के बड़े नेताओं पर दांव खेल रखा है। विधानसभा से लेकर राज्यसभा और विधानसभा से लेकर विधान परिषद हर जगह भाजपा ने इनके प्रतिनिधित्व का ध्यान रखा है । इसके अलावा संग़ठन में भी भाजपा ने अपने पत्ते क्षेत्रीय नेताओं पर दांव खेल रखा है।

अब आने वाले 4 से 5 महीने यूपी की दशा और दिशा तय करेगा,क्यूंकि क़रीबन 100 विधानसभा सीटों वाला पश्चिमी यूपी में सब कुछ आसान होने नहीं जा रहा है। कम से कम भाजपा के लिए तो बिल्कुल आसान नहीं क्यूंकि उसे अपनी सत्ता बचानी है। वहीं दूसरी तरह राष्ट्रीय लोक दल है जिसके लिये ये चुनाव खुद को फिर से स्थापित करने वाला है। अब देखते हैं, क्या होता है कैसे होता है?

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