( पत्रकार Rahul Kotiyal बीती नौ अगस्त को कश्मीर गए थे. ये वहाँ लगे कर्फ़्यू का पाँचवा दिन था. इस दिन से 20 अगस्त तक वो घाटी में रहे और इस दौरान इनकी कुल छह रिपोर्ट्स न्यूज़लांड्री में पब्लिश हुई थीं। राहुल ने आम कश्मीरियों के साथ-साथ उन लोगों से भी बात की जिनके बच्चों को गिरफ़्तार किया गया है, उनसे भी जिनके परिजनों पर पीएसए (पब्लिक सेफ़्टी ऐक्ट) लगा है, अपनी जान जोखिम में डाल वहाँ तैनात सुरक्षा बलों से भी बात की, मुख्यधारा की राजनीति में रहे लोगों से भी और घाटी में जो अल्पसंख्यक हैं यानी कश्मीरी पंडित, सिख और गुज्जर समुदाय के लोगों से भी. Tribunhindi.com पर हम पब्लिश कर रहे हैं, सुरक्षा बलों से बातचीत पर आधारित सीरीज़ – कन्फ़ेशंस ऑफ़ ए कॉप )
क़रीब दो साल पुरानी बात है. बुरहान की मौत के बाद उठा तूफ़ान थम चुका था और आज की तुलना में घाटी के हालात बेहतर थे. एक शाम मुझे मेरे आईजी साहब का फ़ोन आया. उन्होंने एक लड़के का नाम-पता नोट करवाया और कहा ‘पक्का इनपुट है. ये लड़का हाल ही में एचएम (हिज़बुल मुजाहिदीन) से जुड़ा है और इसके पास वेपन भी आ गया है. तुरंत देखो इस मामले को.’
इनपुट किसी मुखबिर से नहीं बल्कि सीधा आईजी साहब से आ रहा था. लिहाज़ा इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता था. मैंने तुरंत अपने चार जवान साथ लिए और बताए गए पते की तरफ़ बढ़ गया. लड़के का नाम और पता सही था. हमने उसे उठाया और उसके घर की तलाशी शुरू की. पूरा घर खोज लिया, यहां तक कि घर के पीछे खेत तक खोद डाला लेकिन हथियार नहीं मिला. फिर दो सिपाहियों को मैंने उसके घर पर नज़र रखने की ज़िम्मेदारी दी और उसे अपने साथ यहां कैम्प में ले आया.
लड़के से पूछना शुरू किया. वो लगातार यही कहता रहा कि ‘मेरे पास कोई हथियार नहीं है और मैं किसी संगठन के सम्पर्क में नहीं हूँ.’ फिर हमने उसे तोड़ना शुरू किया, अपने तरीक़ों से. लेकिन वो कुछ नहीं बोला. दो दिन तक ‘पूछताछ’ के बाद भी जब उसने एक शब्द नहीं बोला तो मुझे लगा कि या तो ये लड़का सच में निर्दोष है, कुछ नहीं जानता और या फिर हार्ड कोर रैडिकल है और ट्रेनिंग लेकर आया है.
लेकिन हमारा नेट्वर्क इतना मज़बूत तो है कि अगर ये उस पार से ट्रेनिंग लेकर आया होता तो हमारे पास इनपुट ज़रूर होता. इसका पुराना रिकॉर्ड एकदम क्लीयर था. इसलिए ये भी विश्वास नहीं होता था कि ये इतना हार्ड कोर हो सकता है कि टूट ही नहीं रहा.
मेरी परेशानी ये थी कि इनपुट सीधा आईजी साहब से आया था. मैं उनसे ये नहीं कह सकता था कि आपका इनपुट ग़लत है. वैसे भी उन्होंने ज़ोर देकर कहा था कि ‘ख़बर पक्की है.’
फिर मैंने इस लड़के की ब्राउज़िंग हिस्ट्री खंगाली. उसमें पोर्न के अलावा कुछ नहीं निकला. लास्ट में मैंने लड़के के कॉल डिटेल मँगवाए. उसमें देखा तो एक ऐसा नम्बर मिला जिस पर रोज़ घंटो-घंटो की कॉल की गई थी. उस नंबार का पता किया. वो एक लड़की का था जो इसके पड़ोस की ही रहने वाली थी. उस लड़की की भी कॉल डिटेल निकाली. मालूम हुआ कि लड़की के फ़ोन से इसके अलावा एक अन्य नम्बर पर भी लगातार कई-कई घंटे की कॉलिंग होती थी.
अब जब इस तीसरे नम्बर की पड़ताल की तो मालूम हुआ कि ये नम्बर जिसका है, वो आईबी (इंटेलिजेन्स ब्युरो) का इन्फ़ॉर्मर है. मुझे पूरा मामला समझ आ गया. उस इन्फ़ॉर्मर ने इस लड़के को किनारे लगाने के चक्कर में फ़र्ज़ी इनपुट दिया था. मैंने ये पूरा मामला ज्यों-का-त्यों, सारे कॉल रिकॉर्ड्ज़ के साथ आईजी साहब के टेबल पर रख दिया.
आईजी साहब बड़े शर्मिंदा हुए. उन्होंने मुझे कहा कि उस लड़के को तुरंत रिहा करो. लेकिन ये सम्भव नहीं था. वो जिस हाल में था उसे घर नहीं छोड़ सकते थे. दो दिन से हम उसे ‘इंटेरोगेट’ कर रहे थे. उसके पूरे शरीर में निशान थे, उसके ज़ख़्म खुले हुए थे और वो तो खड़ा भी नहीं हो पा रहा था. मैंने ये बात आईजी साहब को बताई तो वो मुझ पर भड़क उठे कि इतना मारने की क्या ज़रूरत थी. मैंने कहा सर आपका ही इनपुट था और आपने ही कहा था कि पक्का इनपुट है, क्या करते.
बहरहाल, मैं उस लड़के को फिर अपने घर लेकर आया. दो हफ़्तों तक मैंने उसे यहीं रखा और अपने स्टाफ़ से उसकी मरहम-पट्टी करवाई, उसे रोज़ रिसता-कबाब खिलाए. वर्दी के अहम में मैं उसे सीधा सॉरी तो नहीं बोल पाया लेकिन मेरा दिल जानता है मैं उसके लिए कितना सॉरी महसूस कर रहा था. क़रीब 15 दिन बाद जब वो अच्छे से चलने-फिरने लगा तो मैंने उसे उसके घर छुड़वा दिया.
उस लड़के के शरीर के ज़ख़्म तो भर गए थे लेकिन उसके आत्म-सम्मान पर जो घाव आए वो कभी नहीं भर पाए. यहां घाटी की फ़िज़ाओं में वैसे भी बग़ावत तैरती है. इस घटना ने उसे भी बाग़ी बना दिया. उसे अलगावादियों की बातों में आ जाने का कारण दे दिया. वो लड़का अब सच में हिज़बुल में शामिल हो चुका है.’