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जो हम पर ईमान ना लाए चुनवा दो दीवारों में

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इंकलाबी सरजमीं मेरठ के इंकलाबी शायर मरहूम हफीज मेरठी साहब का एक शेर है- आज ये तय पाया है हूकुमत के इजारेदारों में जो हम पर ईमान ना लाए चुनवा दो दीवारों में हफीज साहब ने ये लाइनें तब कहीं थीं, जब जून 1975 में इमरजेंसी लगी थी और उसका विरोध करने वालों को जेल में डाल दिया गया था। तब हफीज साहब ने यह कह कर इमरजेंसी का विरोध किया था, ‘हम उनमें नहीं जो डर कर कह दें हम भी हैं ताबेदारों में’। इसके बाद हफीज साहब को मीसा के तहत जेल में डाल दिया गया था। तब एक घोषित इमरजेंसी थी। प्रेस की आजादी खत्म कर दी गई थी। असहमति की आवाजों को कुचल दिया गया था। अब हालात कमोबेश इमरजेंसी से ही हैं। बस अंतर इतना है कि ये अघोषित इमरजेंसी है। प्रेस पर कहने को कोई प्रतिबंध नहीं है, लेकिन ज्यादातर मीडिया हाउसेज ने बिना कहे ही सत्ता के आगे हथियार डाल दिए हैं। कमोबेश सभी अखबार और न्यूज चैनल एक तरह से सत्ता के दलाल बन कर रह गए हैं। जिन लोगों ने हथियार नहीं डाले हैं, सत्ता की पराधीनता स्वीकार नहीं की है, उन पर दूसरे तरीकों से दमन की कार्रवाई की जा रही है। एक फर्जी शिकायत के बहाने एनडीटीवी के सह संस्थापक प्रणय रॉय और राधिका रॉय पर सीबीआई और आयकर विभाग की संयुक्त्त छापेमारी इसी ओर इशारा कर रही है कि जो हम पर ईमान नहीं लाएगा, उन्हें दीवार में चुनवा दिया जाएगा। ये अच्छी बात है कि एनडीटीवी ने सत्ता के आगे झुकने से इंकार कर दिया है। लेकिन सवाल है कि कब तक एनडीटीवी जैसे सत्ता की कमियां निकालने वाले मीडिया हाउसेस सत्ता के दमन को झेल पाएंगे। सत्ता के गुणगान करने वाले चैनलों और अखबारों की तादाद बहुत कम है, जबकि सत्ता की गरीब विरोधी नीतियों और उसके फासीवाद का विरोध करने वाले वालों की बहुत कम। इस दौर में उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज बनकर रह गई है। जब कभी हम टीवी खबरें सुनने के लिए न्यूज चैनल देखते हैं या अखबार खोलते हैं, तो देखते हैं कि एक एजेंडे के तहत चंद मुद्दों को हवा दी जा रही है। चैनल दर चैनल बदल लीजिए, उन मुद्दों पर बहस होती मिलेगी, जिनसे देश दो भागों में बंटे। महंगाई, बेतहाशा बढ़ती बेरोजगारी, रसातल में जाती अर्थव्यवस्था पर चैनलों पर बहस होती दिखी है कभी? नहीं देखी होगी। अगर देखी होगी तो बहुत ही सरसरी और सरकार का बचाव करती हुई। बहस होती है ट्रिपल तलाक पर, गाय पर, लव जेहाद पर, घर वापसी पर, कश्मीर पर, पाकिस्तान पर, बगदादी पर, आईएसआईएस पर। सत्ता के गुण गाने वाले एंकरों के चेहरे देखिए कभी। लगता है, जैसे यही सबसे बड़े देशभक्त हैं, इन के दिल में ही देश के लिए जज्बा है। लगता है जैसे यही सरकार हैं, यही भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता हैं। इनकी नजरों में सभी विपक्षी दल देशद्रोही और विकास में बाधक हैं। कभी कभी तो ये एंकर भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता से भी ज्यादा विपक्षी दलों पर हमलावर हो जाते हैं। पता नहीं यह देखकर भाजपा के प्रवक्ताओं को शर्म आती है कि नहीं, लेकिन उन्हें जरूर आती होगी, जो मीडिया को सत्ता के सामने रेंगते हुए देख कर हैरान और परेशान हैं। इन एंकरों के चेहरों को गौर से देखेंगे तो उनके चेहरों पर सत्ता की दलाली की चमक साफ नजर आएगी। इन हालात को देखकर अगर आपको डर नहीं लगता, तो आप बहुत निडर हैं या फिर उस कबूतर की तरह हैं, जो सामने खतरा देखकर आंखें बंद कर लेता है और समझता है कि उसे कोई नहीं देख रहा है या फिर शतुरमुर्ग की तरह अपना मुंह रेत में दबा लेते हैं। वक्त बहुत कठिन है। हर मोर्चे पर सरकार विफल है। वह अपनी विफलता छिपाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। जा भी रही है। गाय, ट्रिपल तलाक, सेना, कश्मीर और पाकिस्तान को जेरे बहस लाकर सरकार अपनी नाकामी को छिपाने की कोशिश कर रही है। सरकार के सभी वादें झूठे साबित हुए हैं। आपको अच्छे दिन के बजाय बुरे दिन दे दिए गए हैं। खतरा
बड़ा है, सरकार की ताकत भी बड़ी है। वह कुछ भी करा सकती है। होशियार रहने की जरूरत है। मीडिया से उम्मीद मत रखिएगा। मीडिया के जिस हिस्से में अभी जमीर और ईमान बाकी रह गया है, उसके साथ खड़े होने की जरूरत है। हफीज मेरठी साहब कहा फिर दोहरा दूं- हम उनमें नहीं जो डर कर कह दें हम भी हैं ताबेदारों में