आज जब के देश महात्मा गांधी जी की 71 वीं बरसी मनाने में मगन है और पूरा सोशल मीडिया गांधी जी को श्रद्धांजली अर्पित कर रहा है,ऐसे समय में एक हस्ती और है जिसको याद किए बग़ैर यह चर्चा ही अधूरी है. मैं बात कर रहा हूं भारत के महान सपूत और स्वतंत्रता सेनानी बत्तख़ मियां की, इस देश की यह विडंबना ही है के इस देश में महात्मा गांधी को मारने वाले नाथु राम गोडसे को तो याद किया जाता है, लेकिन गांधी जी की जान बचाने वाले बत्तख़ मियां को देश भुला देता है.
इन्हें वह भी याद नहीं करते हैं, जो बहुत ज़ोर शोर से चम्पारण सत्याग्रह का बखान करते नहीं थकते, लेकिन यह भूल जाते हैं के अगर बत्तख़ मियां ने वह दूध का पियाला गांधी जी को पिला दिया होता तो आज देश महात्मा से महरूम हो जाता. लेकिन सलाम है इस महान आत्मा को जिसने अंग्रेज़ों की ग़ुलामी को ना मान कर अपने ज़मीर की बात सुनी और देशहित में वह कारनामा अंजाम दिया जिसे रहती दुनिया तक याद किया जाएगा.
होना तो यह चाहिए था के ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानी और वीर सपूत की यह कहानी सोने के अक्षरों से लिखा जाता लेकिन अफ़सोस के ऐसे वक़्त में उस इंसान को भुला दिया गया है. जिसने गांधी को महात्मा बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया और उनकी जान बचाई. जो एक क़र्ज़ है देश पर, जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ बिहार के चंपारण के सपूत बत्तख़ मियां साहब की. क्या मौजूदा परिस्थिति में बत्तख़ मियाँ साहब के खोए हुए सम्मान को दोबारा बहाल करने में हमारी राज्य/केंद्रीय सरकारें पूरी तरह से ईमानदार हैं?
या फिर तथाकथित रहबरों से यह उम्मीद की जा सकती है के वह ऐसे अनमोल हीरे की फीकी पड़ती चमक को बरक़रार रखने के लिये अपने से कोशिश करेंगे? और क्या आज के युवा जो हमारे देश की रीढ़ हैं अपने पूर्वजों (शहीदों) को सम्मानित करने की कोई कोशिश करेंगे ?
नील किसानों के सत्याग्रह में शामिल होने गए गांधी जी को जब अंग्रेज ने मारने की साजिश रची तो जिस शख्स( बत्तख़ मिया) ने जान बचाई थी, वह परिवार आज भटक रहा है. दरअसल जब नील किसानों की बदहाली देख गांधी जी 1917 में चंपारण गए थे। तब उनके मूवमेंट से अंग्रेज सरकार डर गई थी। हुकूमत ने तय किया कि गांधी जी की हत्या करा दी जाए। ताकि किसान उनके प्रभाव में न आएं। तब वहां नील प्लांटेशन के मैनेजर इरविन को ब्रितानी हुकूमत ने गांधी जी की हत्या के लिए आदेश दिया।
इस पर इरविन ने साजिश के तहत गांधी जी को डिनर पर बुलाया। अंग्रेज इरविन के रसोइया तब बत्तख मियां थे। इरविन ने बत्तख मियां को जहर की पुड़िया देते हुए कहा कि इसे दूध में मिलाकर डिनर के बाद गांधी जी को ग्लास दे देना। उस वक्त तो बत्तख मियां ने तो हामी भर दी। जब दूध देने की बारी आई तो बत्तख मियां ने गांधी जी को इशारा कर बता दिया कि दाल में काला है। दूध पीना खतरे से खाली नहीं है। जिस पर गांधी जी ने दूध नहीं पीया।
भेद खुलने पर जुल्म का शिकार हुआ बत्तख मियां का परिवार
जब गांधी सही-सलामत बच गए और अगले दिन भेद खुला तो इरविन ने बत्तख मियां को न केवल नौकरी से निकाल दिया, बल्कि ब्रिटिश हुकूमत से गद्दारी के आरोप में कई फर्जी मुकदमे भी लदवा दिए। यही नहीं बत्तख मियां की गांव की पूरी जमीन छीन ली गई। वहीं परिवार को भी मोतिहारी के सिसवा अजगरी पैतृक गांव को छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया गया।
भारत की आज़ादी के बाद जब डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति बनने के बाद 1950 ई में मोतिहारी आये तो भीड़ में खड़े एक आदमी को पास बुलाया और सबको बताया के यह बत्तख़ मियां हैं. जिन्होंने ने गांधी जी की जान बचाई थी, और फिर वहां पे मौजूद कलेक्टर को हुकुम दिया के इनके बेटों को सरकारी नौकरी दी जाए और ज़मीन भी उपलब्ध् कराई जाए, लेकिन यह वादा नेताओं की तरह ही झूठा निकला और आज आलम यह है के उनके बच्चे मेहनत मज़दूरी कर के अपनी ज़िंदगी बसर कर रहे हैं. और सरकारें बस अपनी अपनी राजैतिक रोटियां सेकने में लगी हैं.
बत्तख़ मियां के नाम पर सिर्फ़ राजनीती होती है, इनके नाम का इस्तेमाल कर के लाखों वोट बटोरे जाते हैं लेकिन इनके परिजनों की सुध लेने वाला कोई नहीं है. हालांकि बत्तक मियां के गांव में उनका स्मारक बना हुआ, मज़ार का भी निर्माण हुआ है, जिला मुख्यालय में ‘संग्रहालय‘ का निर्माण भी किया गया है। लेकिन कुछ और वादे पूरे होने को अभी भी बाकी हैं। तो मेरी मौजूदा केंद्र और राज्य सरकारों से यह अपील है गांधी जी को सम्मानित करते हुए उन्हें भी सम्मान दें जिन्होंने ने इन्हें महात्मा गांधी बनाने में अपना योगदान दिया है। इनके बच्चों की नौकरी को बहाल करे, और उनके नाम से कोई कॉलेज,यूनिवर्सिटी बनाए,किसी सड़क, चौक चौराहे का नाम रखे, तब ही इस महान सपूत के द्वारा देशहित में किए गए कार्यों का हक़ अदा पाएगा.