सलीम अख्तर सिद्दीकी
हिमाचाल प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली थी, जिसे न्यूज चैनल लाइव दिखा रहे थे। एक न्यूज चैनल की वेबसाइट पर यह खबर चल रही थी। इस पर कमेंट आ रहे थे। आजकल आमतौर से मैं कमेंट नहीं पढ़ता, क्योंकि उनमें मोदी भक्त होते हैं या मुझ जैसे मुसलमान, जिन्हें आज पैदाइशी भाजपा विरोधी कह सकते हैं।
भाजपा या संघ का विरोध क्यों होता है, इसको समझना राकेट साइंस नहीं है। उसकी पूरी राजनीति मुस्लिम और इसलाम विरोध पर टिकी है। मैं तो कई बार कह चुका हूं कि अगर हिंदुस्तान में मुसलमान न होते तो भाजपा कहीं कूड़े के ढेर पर पड़ी होती, जिस पर मक्खियां भिनभिना रही होतीं। इस पर तुर्रा यह कि संघी बार बार यह कहते हैं कि मुसलमान भाजपा को सपोर्ट क्यों नहीं करते? अगर कोई ऐसी मुस्लिम पार्टी हो, जो दिन रात हिंदुओं और हिंदू धर्म को कोसे तो क्या हिंदू उसका समर्थन करेंगे? नहीं ना? तो फिर समझिए कि मुसलमान भाजपा में क्यों नहीं जाना चाहता।
बहरहाल, बात न्यूज चैनल के कमेंट की हो रही थी। इस तरह की खबरों की वेबसाइटों पर इस साल की शुरूआत तक मोदी सरकार की तारीफ और उसका समर्थन करते हुए कमेंट जो होते थे, वे 90 प्रतिशत तक होते थे। यहां तक कि नोटबंदी के दौर में भी मोदी सरकार की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई थी, बल्कि बढ़ोतरी हुई थी। उत्तर प्रदेश में भाजपा की प्रचंड जीत इसका उदाहरण थी। लोगों को उम्मीद थी कि नोटबंदी के नतीजे अच्छे आएंगे और उनका फायदा होगा। दूसरा सबसे बड़ा कारण यह था कि मोदी सरकार मुसलमानों को हाशिए पर डालकर उन्हें सबक सिखाएगी, जिससे उन्हें सुकून मिलेगा। लेकिन ऐसा हो नहीं सका।
जीएसटी लागू होने के बाद जब जीडीपी के आंकड़े आए, बेरोजगारी की समस्या विकराल हुई, महंगाई चरम पर पहुंची, तब से नजारा बदला बदला सा लग रहा है। वे लोग जो “अच्छे दिन आएंगे” वाले जुमले से प्रभावित होकर भाजपा को वोट दे आए थे, उनकी भाव भंगिमा बदली बदली लग रही है। न्यूज चैनल के कमेंट बॉक्स में आएं कमेंट को पढ़ना शुरू किया तो अधिकतर गैरमुस्लिमों की प्रतिक्रिया मोदी सरकार के प्रति नकारात्मक थी। वे साफ लिख रहे थे कि हम झांसे में आ गए और अपने के लिए बुरे दिन बुला लिए। वे साफ साफ हिमाचल के लोगों को नसीहत दे रहे थे कि भाजपा सरकार हिमाचल प्रदेश को भी बरबाद कर देगी। वे उत्तर प्रदेश का हवाला दे रहे थे, जहां योगी सरकार आने के बाद हालात पहले से बदतर हुए हैं। बिजली रुलाने लगी है, अपराध का ग्राफ बढ़ गया है, अस्पतालों में बच्चों की मौतें जारी हैं आदि आदि। पिछले साढ़े तीन सालों में भाजपा के प्रति नजरिया बदला बदला लगा, खासतौर से हिंदू समुदाय में।
लेकिन भाजपा का एक हार्डकोर कार्यकर्ता है, जो हमेशा से होता है। सभी पार्टियों में होता है, वह मोदी योगी सरकार के अभी भी गुण गा रहा है। उसे इस बात से मतलब नहीं है कि बेरोजगारी बढ़ गई है, महंगाई बढ़ रही है, पेट्रोल डीजल के दाम उच्च स्तर पर पहुंच गए है। बस उसे तो यह उम्मीद है कि मोदी योगी किसी तरह मुसलमानों को सबक सिखा दें। उन्हें सभी समस्याओं के पीछे “मुल्ले” नजर आते हैं। मोदी और योगी अपने हार्डकोर कार्यकर्ता की भावनाओं को समझते हैं। इसीलिए मोदी अपनी चुनावी सभाओं में कब्रिस्तान और शमशान की बात करके उनकी भावनाओं को हवा देकर अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं। चुनाव जीतने के बाद वह फिर “बगुला भगत” बन जाते हैं। एक आध बार गोरक्षकों को लताड़कर लिबरल होने का संदेश दे देते हैं। यह अलग बात है कि गोरक्षक उनकी नसीहत के बाद फिर किसी पशु व्यापारी की जान लेकर मोदी की नसीहत को ठेंगा दिखा देते हैं।
अगर हम बात उत्तर प्रदेश की करें तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विशुद्ध रूप से प्रदेश में हिंदू एजेंडा चला रहे हैं। स्लाटर हाऊस पर पाबंदी, मीट की दुकानें बंद करना, मदरसों पर जांच, उनमें सीसीटीवी कैमरे लगाने की बात या फिर हाल में ताजमहल को उत्तर प्रदेश की पर्यटन पुस्तिका से बाहर निकालने का मतलब यह है कि वे विकास से नहीं, अपनी कट्टर हिंदुत्ववादी वाली छवि बनाकर वोटरों का दिल जीतना चाहते हैं। उनकी सरकार पूरी तरह से भगवामय हो चुकी है। जब अस्पताल की परंपरागत सफेद चादरों को भी भगवा कर दिया जाए तो इसे भगवाकरण की इंतहा ही कहा जाएगा। लेकिन क्या महज हिंदुत्ववादी एजेंडा चलाने से प्रदेश का भला हो जाएगा?
जमीनी हकीकत तो यह है कि प्रदेश के किसान कर्जमाफी के नाम पर ठगे गए हैं। किस तरह, कितने रुपये कर्जे माफ किए गए हैं, यह पिछले दिनों पूरे देश ने देखा है। किसान मायूस हैं। रही सही कसर पूरी कर दी है पशुओं की खरीद फरोख्त पर पाबंदी लगाकर। किसान परेशान हैं। गांवों में गायों और बछड़ों के झुंड के झुंड खुले घूम रहे हैं, जो किसानों की फसल बरबाद कर रहे हैं। पशु व्यापारी गाय बछड़े खरीदने गांव में नहीं जा रहा है। अब किसानों के सामने समस्या यह है कि वह खुद खाए या बिना दूध वाली गाय या बछड़ों को खिलाए?
नाउम्मीदी और मायूसी का जो आलम आज देश में है, उसे मोदी सरकार नहीं समझ रही है, ऐसा नहीं है। सोशल मीडिया, जिसके दम पर मोदी सरकार सत्ता में आई है, अब उसे डराने लगा है। उसका रुख मोदी विरोधी होने लगा है। अगर ऐसा न होता तो मोदी सरकार पेट्रोल डीजल पर दो रुपये प्रतिलीटर एक्ससाइज ड्यूटी कम नहीं करती। देश की जनता आने वाले वक्त से डरने लगी है, तो मोदी सरकार भी आशंका से घिरने लगी है। नोटबंदी और जीएसटी के नकारात्मक प्रभाव अब खुलकर सामने आ गए हैं।
यशवंत सिन्हा के हमले के बाद अरुण शौरी का यह कहना कि नोटबंदी सबसे बड़ी मनी लॉन्ड्रिंग है, मनमोहन सिंह की उस बात पर मोहर लगाता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि नोटबंदी संगठित सरकारी लूट है। अब देखना यह है कि मोदी और योगी सरकार कब तक हिंदुत्ववादी, राष्ट्रवादी और देशभक्ति के टोटकों से अपने आप को बचाए रखती है?