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गूलर का पारिस्थितिक, औषधीय और धार्मिक महत्त्व

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गूलर- ficus racemosa/ficus glomerata
गूलर/उदुम्बर/जंतुफल पंच पल्लवों में से एक है।
पंच पल्लव : पीपल, गूलर, अशोक, आम और वट के पत्ते सामूहिक रूप से पंच पल्लव के नाम से जाने जाते हैं।

इनका आयुर्वेदीय चिकित्सा और धार्मिक कार्यों में बड़ा महत्त्व है।
इकोसिस्टम(पारिस्थितिकी) में भी इसका बड़ा महत्त्व है। ficus कुल की 850प्रजातियां होती हैं रेन फॉरेस्ट इकोसिस्टम में इन्हें key stone species का दर्जा प्राप्त है अर्थात ये इकोसिस्टम में बैलेंस बनाये रखने का एक महत्वपूर्ण और आवश्यक कारक हैं और इनके नष्ट होने से पर्यावरण का संतुलन बिगड़ जायेगा।
आयुर्वेद मतानुसार गूलर शीतल, रुक्ष, गुरु, मधुर, कषाय, व्रण रोपक, वर्ण प्रसादक, पित्त-कफ और रक्त विकार को दूर करने वाला है।
यह पाचक और वातहर है। यह रक्तप्रदर और रक्तपित्त की उत्तम औषधि है।
गूलर को आयुर्वेद में हजारों साल से चिकित्सीय रूप से प्रयोग किया जाता रहा है। इसमें खून साफ़ करने के, गर्भाशय को शुद्ध करने के, वीर्य वर्धक और डायबिटीज को दूर करने के गुण पाए जाते हैं। औषधीय प्रयोग के लिए इसके पत्ते, छाल, जड़ तथा दूध सभी का इस्तेमाल किया जाता है।
गूलर का प्रयोग विविध रोगों के उपचार में प्रभावी है। यह शरीर को स्वस्थ्य और मजबूत बनाता है। यह दिल के रोगों, मधुमेह, वात-विकार, प्रमेह विकार, प्रदर, गर्भपात, आदि की बहुत ही कारगर औषधि है। गूलर के पके हुए फल खाने योग्य होते हैं। इनका सेवन हृदय रोग, ज्वर, चक्कर आना, कमजोरी, वीर्य सम्बन्धी दोष, शक्तिहीनता आदि को दूर करता है। ये स्त्री पुरुषों के यौन रोगों की भी उत्तम औषधि है।
पंच पल्लवों का धार्मिक महत्त्व भी बहुत है। अथर्ववेद में इन्हें आयुष्य और समृद्धि कारक, रोग-दारिद्र्य नाशक कहा गया है।
कलश स्थापना में भी पंचपल्लव का विशेष महत्व है। कलश स्थापना शुभ कार्यों में होती हैं, जैसे-विवाह, गृह प्रवेश, कुआं पूजन, व्रत, पर्व आदि। माना जाता है कि पंचपल्लव से आयु की वृद्धि होती है, क्योंकि ये वृक्ष दीर्घजीवी हैं।
गूलर को ‘विष्णु सहस्रनाम’ में विष्णु का रूप भी माना गया है।

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