भीड़ तंत्र सोशल मीडिया पर भी मौजूद है। वह भले ही लोगों की खुद जान न लेता हो, लेकिन वह हिंसक समाज बनाने में मददगार साबित हो रहा है। कुतर्कों से अपराध को जस्टिफाई किया जा रहा है। सोशल मीडिया में उन लोगों की बहुतयात है, जिन्होंने अपने चेहरों पर राजनीतिक दलों, धार्मिक संगठनों और पत्रकारों का चेहरा लगा रखा है। ये सफेदपोश हैं। जब भी कभी मोदी या योगी सरकार फंसती है, तो ये लोग कुतर्क लेकर मैदान में आ जाते हैं। जरा बानगी देखिए, ‘विवेक तिवारी ने गाड़ी नहीं रोकी, उसकी सजा उसे मिल गई। अगर गाड़ी में कोई बदमाश होता तो वह सिपाही की जान ले सकता था।’ ‘तिवारी देर रात एक लड़की के साथ कार में क्या कर रहा था?’
यूं ये पढ़े लिखे लोग लगते हैं, लेकिन इतना भी नहीं जानते कि पुलिस को अगर कोई चकमा देकर भाग भी जाए तो वायरलेस से सूचना फ़्लेश कर दी जाती है, जिससे उसे कहीं और धर दबोचा जा सके। कभी थाने में जाकर बैठे हैं आप? अगर नहीं तो बैठिए। आपको वहां वायरलेस से लगातार सूचनाएं फ्लेश होती मिलेंगी। अगर विवेक तिवारी ने कानून तोड़ा भी तो उसकी गाड़ी रोकने के लिए टायर में गोली मारी जा सकती थी। लेकिन वह शॉर्ट कट चुनता है। सीधे भेजे में गोली मार देता है। हिंसा के लिए तैयार की जाने वाली भीड़ को एक पाठ पढ़ा दिया गया है, ‘जस्टिस ऑन द स्पॉट’। कितना भी पढ़ा लिखा आदमी हो, भले ही वह वकील क्यों न हो, उसने भी इस बात को गांठ बांध लिया है। अक्सर सुनने को मिल जाता है, अपराधियों को मौके पर ही मार देना चाहिए। इन्हें जेल में रखने से क्या फायदा।
ये लोग इतना भी नहीं जानते क्या कि इंसाफ देने का काम अदालत का होता है, पुलिस का नहीं? देश या प्रदेश डंडे से नहीं चलता। कानून और संविधान से चलता है। लेकिन देश पर इस वक्त ऐसे लोगों का राज है, जो हर काम डंडे से कराना चाहते हैं। भले ही उन्हें निर्दोष लोगों की हत्या क्यों न करनी पड़े। जब से योगी सरकार आई है, फर्जी एनकाउंटरों में कितने लोगों को मार डाला गया, कोई जवाब लेने वाला नहीं है। राष्ट्रीय और राज्य मानवाधिकार आयोगों को तो जैसे लकवा मार गया है। आंखों पर पट्टी बांध ली है।
विद्रूप यह है कि अगर कोई फर्जी एनकाउंटरों पर सवाल उठाए तो उसे देशद्रोही बताने से गुरेज नहीं किया जा रहा है। देश में ऐसा हिंसक समाज तैयार किया जा रहा है, जो रात दिन नफरत का जहर पी रहा है। वह धर्म और जाति के आधार पर नफरत का जहर पी रहा है। समाज में ऐसी जहरीली धारा बह रही है, जो सब कुछ छिन्न-भिन्न करने पर आमादा है। उसे खाद पानी देने का काम कर हैं, वे लोग जिनके चेहरे सौम्य लगते हैं, वे बुद्धिजीवी लगते हैं, साहित्यकार हैं, कहीं प्रोफेसर हैं, तो कहीं पत्रकार हैं, लेकिन उनका एजेंडा नफरत फैलाना है।