असम के सोनितपुर डिस्ट्रिक्ट के सूतिया में भाजपा विधायक पदमा हजारिका द्वारा बुलडोज़र का उपयोग करके 450 घरों को तोड़ने की घटना सामने आई है। जिसके बाद लगभग 3000 लोग अपने ही गाँव में टैंट में ज़िंदगी गुजारने को मजबूर हैं। ये सभी लोग मुस्लिम समुदाय के बताए जा रहे हैं। यह खबर हमें अरब न्यूज़ और द क्विंट से मिली है।
अरब न्यूज़ के मुताबिक – 65 वर्षीय पीड़ित अक्कास अली ने बताया कि उनकी गलती ये है, कि वो इस विधानसभा के वोटर नही हैं। मैं पड़ोस के विधानसभा क्षेत्र का वोटर हूँ, इसलिए भाजपा विधायक ने प्रशासन की मदद से मुझे और 400 से ज़्यादा अन्य परिवारों को अपने ही घरों से निकाल दिया है। अक्कास अली बस यहीं नहीं रुके, उन्होंने कहा कि प्रशासन हमें अपनी ही ज़मीन से निकालकर बांग्लादेशी बता रहा है। हमें डर है, कि ये यहाँ बांग्लादेशी हिंदुओं को बसायेंगे , जो भाजपा के परमानेंट वोटर बन जाएंगे।
स्वतंत्र पत्रकार अफ़रोज़ आलम साहिल ग्राउन्ड ज़ीरों से स्थिति का जायज़ा लेकर आए हैं। हमने स्वतंत्र पत्रकार अफ़रोज़ आलम साहिल से इस संबंध में बात की, उन्होंने हमें फोन पर बताया कि
असम के सोनितपुर डिस्ट्रिक्ट के सूतिया विधानसभा क्षेत्र की यह घटना है। जहां से भाजपा पदमा हजारिका विधायक हैं, अफ़रोज़ आलम साहिल के मुताबिक जब वो उस क्षेत्र में गए तो लोगों ने उन्हे बताया कि भाजपा विधायक का कहना है, कि ये सभी लोग बांग्लादेशी हैं। इसलिए उनके घर तोड़ दिए गए हैं, और हम यहाँ पर बांग्लादेश से आने वाले पीड़ित हिंदुओं को बसायेंगे, पर ये जानकर आपको हैरानी होगी कि वास्तविकता इससे उलट है। ये सभी लोग जिनके घर तोड़े गए हैं, सभी के नाम NRC की लिस्ट में शामिल हैं। बस इतना ही नहीं, इन सभी के नाम 1951 की NRC में भी शामिल था।
आखिर क्या वजह है, जो पीड़ित इस क्षेत्र की वोटर लिस्ट में रजिस्टर्ड नहीं थे
जब हम अफ़रोज़ से बात कर रहे थे तो उन्होंने बताया कि पीड़ितों का कहना है, चूंकि वो इस विधानसभा क्षेत्र के वोटर नहीं हैं, इसलिए भी उन्हे निशाना बनाया गया है। ज्ञात होकि ब्रह्मपुत्र और उसकी सहयोगी नदियों में बाढ़ आने के कारण असम में कई ऐसे गाँव हैं, जो बाढ़ के कारण तबाही का शिकार हुए हैं और उन गाँव में बसने वाले ग्रामीणों को अन्य दूसरे स्थान पर जाकर बसना पड़ा है। सूतिया में जिन लोगों के घर तोड़े गए हैं, वो भी बाढ़ का शिकार होने के बाद आज से लगभग 12-13 साल पहले यहाँ आकार बसे थे। पर उन्होंने अपना नाम तेजपुर विधानसभा क्षेत्र से यहाँ ट्रांसफर नहीं करवाया, बल्कि वो तेजपुर विधानसभा के ही वोटर बने रहे। बताया जाता है, कि असम में वोटर लिस्ट में नाम ट्रांसफर कराने के कारण डी–वोटर होने का खतरा बन जाता है। जिसके बाद NRC में नाम न आने के कई केस सामने आ चुके हैं। यही वजह है, कि उन्होंने सूतिया विधानसभा क्षेत्र की वोटरलिस्ट में अपना नाम ट्रांसफर न कराकर, तेजपुर में ही रहने दिया। इसलिए वो उस क्षेत्र में मतदान का उपयोग नहीं करते हैं।
प्रशासन ने कहा कि यह सरकारी ज़मीनों में किया गया अतिक्रमण था
पत्रकार अफ़रोज़ आलम साहिल ने इस संबंध में स्थानीय प्रशासन से बात की, तो उन्होंने कहा कि यह सारे मकान सरकारी ज़मीनों में किए गए अतिक्रमण का हिस्सा था, इस जमीन को अतिक्रमण मुक्त कराया गया है। पर जब प्रशासन से ये सवाल किया गया कि यदि यह अतिक्रमण था और आप सरकारी ज़मीन को मुक्त करा रहे थे, तो बीच बीच में कई मकान ऐसे ही क्यों छोड़ दिए गए। उन्हे क्यों नहीं तोड़ा गया। तब डिस्ट्रिक्ट कमिश्नर ने कहा कि सभी मकान तोड़े जाएंगे और यह ज़मीन तेजपुर यूनिवर्सिटी को दी जाएगी। पत्रकार ने बताया कि उक्त स्थान से तेजपुर यूनिवर्सिटी की दूरी बहुत ज़्यादा है, इसलिए प्रशासन के जवाब से संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता। अब प्रशासन द्वारा किए जा रहे दावों पर ये सवाल उठता है, की यदि वह ज़मीन अतिक्रमण मुक्त करा रहे थे, तब भी रिहायशी क्षेत्र में ऐसे मौसम में तोड़फोड़ करना कहाँ से सही है।
हमारा नाम 1951 की NRC में भी था, हम असम के मूलनिवासी हैं
पीड़ितों के अनुसार – वो सभी असम के मूल निवासी हैं और उन सभी का नाम न सिर्फ नागरिकता रजिस्टर (NRC) में मौजूद है, बल्कि 1951 की NRC में भी इनका नाम मौजूद था। बाढ़ के कारण उनके गाँव में हुई तबाही के बाद, वो सभी लोग इस जगह में आकर सस्ती ज़मीन खरीदकर बस गए थे। जिस तरह से दूसरे राज्यों में बाढ़ और प्राकृतिक तबाही से हुए नुकसान के बाद शासन एवं प्रशासन पीड़ितों को बसाने में मदद करता है, ऐसा असम के बाढ़ पीड़ितों के साथ नहीं हुआ। अब जब बीजेपी विधायक ने प्रशासन की मदद से बुलडोजर चलवाकर हमारे मकानों को तुड़वा दिया है, तो अब हम अपने ही गाँव में शरणार्थियों की तरह ज़िंदगी गुजारने पर मजबूर हो चुके हैं। हमें हमारी ही ज़मीनों पर विदेशी बताकर, विदेशियों की तरह व्यवहार किया जा रहा है।