अखिलेश को मिल पाएगा गुर्जर समाज का समर्थन ?

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पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति पिछले 10 महीनों में बदल गई है। किसान आंदोलन के बाद 2013 के बाद से दूर हुआ हिन्दू-मुस्लिम समाज पहले से ज़्यादा करीब आया है।

क्यूंकि अब वो किसान होकर पहले की तरह से अपनी लड़ाई सिर्फ किसान हो कर लड़ रहा है। लेकिन इसमें भी कोई दो राय नही है कि 2022 के चुनावों के लिये राजनीतिक दल इस बदले माहौल का फायदा उठाएंगे।

पश्चिमी यूपी में किसानों की बहुत बड़ी आबादी रहती है। इस आबादी में गुर्जर समाज की तादाद भी अच्छी खासी है। अभी की मौजूदा स्थिति में कैराना लोकसभा और बिजनोर लोकसभा से गुर्जर समाज के सांसद जीत कर संसद में पहुंचें हैं।

इसके अलावा भाजपा को भी गुर्जरों का भरपूर समर्थन मिलता रहा है। लेकिन 2017 से लेकर 2019 तक यूपी की भारी बहुमत वाली भाजपा सरकार में कोई भी गुर्जर समाज का मंत्री नहीं था।

केन्द्र सरकार में तो था ही नही यहां भी नहीं था,2019 में योगी आदित्यनाथ ने अशोक कटारिया को स्वतंत्र प्रभार मंत्रालय दे कर आने वाले 2022 की तैयारियों को मजबूत किया था।

लेकिन किसान आंदोलन में जाट-गुर्जर समाज बड़ी तादाद में सड़कों पर उतरा रहा जिसकी वजह से भाजपा सरकार चिंतित है और अखिलेश यादव इस मौके का फायदा उठा रहे हैं।

अखिलेश के पास गुर्जर युवा नेता हैं

अखिलेश यादव ने मौके को समझते हुए कल सहारनपुर में बड़ी रैली आयोजित की थी। वो तीतरो गांव में मौजूद थे जो चौधरी यशपाल का पैतृक गांव है और गुर्जर बाहुल्य गांव कहलाता है।

असल मे अखिलेश यादव यहां गुर्जर समाज मे फिर से अपनी पहुंच बनाने आये थे। क्योंकि वो युवा गुर्जर नेताओं के करीबी भी हैं।

इनमें पूर्व सांसद संजय चौहान के पुत्र चंदन चौहान,पूर्व सांसद मुनव्वर हसन के पुत्र विधायक नाहिद हसन और अखिलेश के काफी करीबी कहे जाने वाले अतुल प्रधान शामिल हैं। इसके अलावा सहारनपुर के ज़िला अध्यक्ष चौधरी इन्द्रसेन जैसे बड़े नाम तो शामिल ही हैं।

अखिलेश यादव इस बार फिर से 2012 वाली कामयाबी को दोहराना चाहतें हैं जिसमें वो गुर्जर समाज के वोटों का सहयोग चाहते हैं। साथ ही साथ वो रालोद के साथ गठबंधन का इशारा देकर जाट-गुर्जर और मुस्लिम वोटों को जोड़ कर अपना गठबंधन बनाना चाहते हैं। इसमे अगर इन्हें कामयाबी मिलती है तो अखिलेश यादव को बम्पर सीटें और जीत मिल सकती है।

क्या है ज़मीनी हकीकत

फ़िलहाल बीते 10 महीनों से चल रहा किसान आंदोलन भाजपा के लिए काफी नुकसान का काम कर रहा है अब जब भाजपा के लिए नुक़सान होगा तो सबसे ज़्यादा फायदा भी सपा को ही होगा और ये बढ़ और जायेगा जब इसमें रालोद और जुड़ जाएगी।

जिसके बाद इस बदले हुए माहौल में अखिलेश यादव यूपी की सियासत का द्वार कहे जाने वाले पश्चिमी यूपी में जीत का परचम बुलन्द करते हुए नज़र आ सकते हैं।क्यूंकि पूरी तरह न सही लेकिन बहुत हद तक किसान तबका भाजपा से तीन कृषि कानूनों को लेकर नाराज़ है।

इन किसानों में जाट, गुर्जर और मुस्लिम समाज शामिल है। इसलिए इस मौके का फायदा अखिलेश यादव उठाना चाहते हैं और भाजपा को हराना चाहते हैं।

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