आरएसएस ने अपने काडर को तो चुनाव में लगाया हुआ है लेकिन खुद मोहन भागवत और उनके नंबर टू भैयाजी जोशी चुनाव की घोषणा के बाद से ठंडी सांस खींचे हुये हैं. भागवत का आखिरी बयान बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक के बाद फरवरी के तीसरे सप्ताह में आया था और तब से शांत हैं.
2014 के चुनाव की याद करें तो मतदान के कई सप्ताह पहले आरएसएस ने उत्तर और पश्चिम के राज्यों में बड़ी संख्या में साधू संतों के कार्यक्रम कराये थे जिसमे राम कथाओं और प्रवचनों के दौरान खुले आम चुनाव में बीजेपी के समर्थन की अपील जारी होती थी. अकेले गुजरात में राम देव और श्री श्री रविशंकर के दर्जनों शिविर लगाए गए थे अलग अलग शहरों में. इस बार ऐसा कुछ भी नहीं देखने को मिल रहा है.
मोहन भागवत और भैयाजी जोशी किसी न किसी सार्वजनिक कार्यक्रम का सहारा लेकर तमाम मुद्दों पर संघ की राय ज़ाहिर करते हैं. चुनाव से पहले अगर ये दोनों ऐसा अवसर नहीं तलाश रहे हैं तो ये कोई संयोग नहीं है.
इस चुप्पी का कारण क्या हो सकता है?
आरएसएस में सरकार्यवाहक जिस पद पर इस वक़्त भैयाजी जोशी हैं बहुत अहम होता है. आरएसएस के सभी विंग और सह सरकार्यवाह इसी को रिपोर्ट करते हैं. बीजेपी का संगठन महामंत्री भी आरएसएस का होता है जिसके जरिये आरएसएस बीजेपी पर कंट्रोल रखती है. बीजेपी के अध्यक्ष को अगर इस्तीफा देना होता है तो वो संगठन महामंत्री को ही देता है. इसकी भी सीधी रिपोर्टिंग भैयाजी जोशी को ही है.
मोदी अपने करीबी सह-सरकार्यवाह (संयुक्त महामंत्री) दत्तात्रेय होसबोले को आरएसएस का नंबर टू बनवाना चाहते थे पर कामयाब नहीं हुये और पिछले साल भैयाजी को तीन साल के लिए एक्सटेंशन मिल गया. अगर मोदी कामयाब हो गए होते तो आरएसएस पर भी उनका वर्चस्व हो जाता. जाहिर है भैयाजी जोशी मोदी की इस कोशिश से उत्साहित नहीं होंगे.
आरएसएस के दोनों बड़े नेताओं की चुप्पी के दो कारण हो सकते हैं.
पहला तो उन्हे आभास है कि 2014 जैसा बहुमत नहीं आने जा रहा है और ऐसी स्थिति में वो नितिन गडकरी या किसी और को प्लान बी के तौर पर आगे बढ़ाने का मन बना चुके हैं. इसमे मुरली मनोहर जोशी जैसे नेता भी कोई न कोई भूमिका निभा रहे होंगे. आरएसएस बीजेपी के सांसदो, मंत्रियों और पदाधिकारियों से हमेशा समानान्तर संपर्क में रहता है.
दूसरी वजह है राहुल गांधी के लगातार आरएसएस पर सीधे प्रहार. मोदी राज में आरएसएस लगातार चर्चा और विवादों का केंद्र रहा है जो वो नहीं चाहता है. बदलती राजनीतिक परिस्थिति में वो किसी से दुश्मनी भी नहीं चाहेगा जिससे उसके दूरगामी लक्ष्य प्रभावित हों – इसलिए भी वो बैकफूट पर दिखना चाहते हैं.