जेट एयरवेज को सरकारी बैंक क्यों उबारें ?

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जेट एयरवेज और एतिहाद एयर लाइंस को बचाने के लिये सरकार ने बैंकों से धन देकर मदद करने के लिये कहा है। और उधर सरकारी कम्पनी बीएसएनएल अपने अधिकारियों और कर्मचारियों को तनख्वाह तक नहीं दे पा रही है। सरकार जितनी तत्परता से निजी और चहेते पूंजीपतियों के लिये सक्रिय होती है उतनी तत्परता से अपनी सरकारी कंपनियों के लिये नहीं खड़ी होती है।
जेट एयरवेज के पायलट और अन्य स्टाफ ने नेशनल एविगेटर गिल्ड के माध्यम से प्रधानमंत्री को अपनी व्यथा लिखी है। गिल्ड ने प्रधानमंत्री को लिखा है कि, ” हमें यह आशंका है कि यह एयरलाइन बैठने के कगार पर है, औऱ इससे हज़ारों कर्मचारियों के बेरोजगार हो जाने की संभावना है। इससे न केवल हवाई यात्राएं कम हो जाएंगी बल्कि जो शेष होंगी उनके किराए भी बढ़ जाएंगे जिससे हवाई सफर करने वालों को दिक्कतें उठानी पड़ेंगी। ”
पायलटों ने यह भी चेतावनी दी है कि तीन माह से उन्हें तनख्वाह नहीं मिल रही है और अगर 31 मार्च तक उन्हें तनख्वाह नहीं मिली तो वे 1 अप्रैल से विमान उड़ाना बंद कर देंगे।
पिछले पांच सालों में सरकार की जितनी चिंता निजी पूंजीपतियों के उद्योगों को उबारने पर रही है उसकी शतांश चिंता भी सरकारी कम्पनियों के प्रबंधन पर नहीं रही है। चाहे ओएनजीसी हो, या एचएएल, चाहे कोई भी नवरत्न कंपनी हो सबके प्रबंधन को कभी जानबूझकर तो कभी नज़रअंदाज़ कर के कुप्रबन्धित होने दिया गया।
गैस ऑथोरिटी ऑफ इंडिया, ऑयल एंड नेचुरल गैस कमीशन, को रिलायंस गैस, बीएसएनएल को जिओ, इंडियन ऑयल को रिलायंस पेट्रोल की तुलना में सदैव सौतेलेपन से ही देखा गया है। और यह इल्जाम इन सरकारी कम्पनियों के प्रबंधन और अधिकारियों कर्मचारियों के माथे पर मढ दिया गया कि वे काम नहीं करते हैं, कामचोरी करते हैं। साथ ही भ्रष्टाचार भी करते हैं।
सरकारी कम्पनियों के प्रबंधन और अधिकारियों के विरुद्ध एक आम आरोप है कि, वे काम नहीं करते हैं और कामचोर हैं और भ्रष्टाचारी भी हैं। फिर ऐसे लोगों से निपटने के लिये सरकार को रोका किसने है ? सरकार ने कितनी पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग कम्पनियों के निठल्ले प्रबंधन और अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही की है और ऐसे लोगों को सज़ा दिया है ?  यह आंकड़ा बहुत ही कम है। उल्टे सरकार उन्हें गाहे बगाहे पुरस्कृत भी करती रहती है। पर जब व्यापारिक हितों की बात आती है तो सरकार की प्राथमिकता में निजी पूंजीपति घराने आते हैं और सरकारी कंपनियां ठगी जाती है।  सरकार खुद चाहती है कि ये बड़ी सरकारी कम्पनियां खुद ही कुप्रबंधन से बैठ जांय ताकि सरकार औने पौने भाव मे इन्हें अपने चहेते पूंजीपतियों को बेच सके। यह क्रम चल भी रहा है।
8500 करोड़ की यह मदद स्टेट बैंक और पीएनबी को देने के लिये कहा गया है। यह पैसा जनता के टैक्सों और उसकी बचत का है। जेट एयरवेज की कुल देनदारी लगभग 8500 करोड़ की है और आज की तारीख में जेट के पास इतना भी धन नहीं है कि वह यह हवाई कम्पनी चला सके। इसके विदेशी पार्टनर ने एतिहाद ने भी धन देने से मना कर दिया है।
सरकार ने केवल बैंक को ही नही बल्कि सरकारी कंपनी  NIIF नेशनल इन्वेस्टमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर फण्ड को  को भी जेट एयरवेज़ में हिस्सेदारी लेने के लिये कहा गया है। आज जेट के शेयर 150 ₹ में खरीदने की तैयारी की जा रही है जबकि आज इस शेयर की कोई कीमत नहीं है। वास्तविकता तो यही है कि जेट एयरवेज़ कंपनी बंद हो चुकी है, बस आधिकारिक घोषणा होनी शेष है।
जेट एयरवेज़ के बैठ जाने से उस कम्पनी के हज़ारों कर्मचारियों की नौकरी जा सकती है और बढ़ती बेरोजगारी के इस तूफान में यह एक और कहर जुड़ जाएगी। यह बात अपनी जगह बिलकुल दुरुस्त है। पर सरकार जितनी तत्परता और तेजी से एक निजी कम्पनी को बचाने के लिये खड़ी होती है उतनी तेजी के साथ वह सरकारी कम्पनियों और किसानों तथा मज़दूरों के पक्ष में क्यों नहीं खड़ी होती है। साफ बात है कि सरकार की प्राथमिकता में पूंजीपति घराने हैं, किसान और मजदूर नहीं।

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© विजय शंकर सिंह