भारत का इतिहास जितना पुराना है उतनी ही इसमें विविधता (Diversity) रही है। मुग़लों का दौर भारत मे 1526 में शुरू होता है,जब बाबर ने दिल्ली सल्तनत के आखिरी “सुल्तान” इब्राहिम लोधी को पानीपत के पहले युद्ध मे हरा कर दिल्ली की गद्दी जीती थी। तब से लेकर 1857 तक दिल्ली पर मुग़लों का झंडा लहराता रहा।
जब कोई सल्तनत या साम्राज्य क़रीबन 300 सालों तक देश के प्रशासन( administration) में रहता है तो उसका असर वहां होना लाज़िम है। इसलिए जज़िया कर (मुस्लिम हुक़ूमत में गैर मुसलमानों द्वारा दिया जाने वाला कर) शुरू किया गया था। लेकिन अकबर के सुनहरे काल मे इसे खत्म करते हुए मोहब्बत का दौर भी शुरु हुआ।
सद्भाव का इतिहास पुराना है।
जहां पर बादशाह अकबर ने सिखों को ज़मीन तोहफे में दी थी और उसी ज़मीन पर पवित्र शहर अमृतसर बसाया गया था। इतना ही नहीं सिखों ने इस शहर पर गोल्डन टेंपल की नींव रखी गई तो गुरु अमरदास जी ने सूफी बुज़ुर्ग “मिया मीर” से इस धर्मस्थल की नींव रखवाई थी।
बस इन्हीं तथ्यों से सवाल ये उठता है कि क्या मुग़ल बादशाहों ने हिंदू त्यौहार मनाए हैं? क्या सिर्फ मुग़लों पर आरोप लगाकर सब कुछ तोड़ मरोड़ कर पेश करना ही सही है? आइये इस बारे में बात करते हैं।
अकबर और हुमायूं ने बंधवाया था रक्षा का धागा
बादशाह हुमायूं – अपने पिता की मौत के वक़्त दिल्ली को गद्दी पर बैठ कर हुमायूं के सामने बहुत बड़ी चुनौतियां थी । वहीं सबसे बड़ी चुनौती थी समुन्द्र के किनारे बसे गुजरात से जहां शासक “बहादुर शाह” ने उसे चुनौतियों में उलझा रखा था।
उस समय उसने अलग अलग राज्यों पर हमला करते हुए अपनी बेरहमी का परचम बुलन्द कर रखा था। इतिहासकारों के अनुसार उस वक़्त मेवाड़ की संरक्षक रानी कर्णवती ने हुमायूँ को राखी भेज कर बहादुर शाह के जुल्मों से अपने “भाई” से रक्षा की गुहार लगाई थी। जिसे पूरा करने के लिए हुमायूँ ने मेवाड़ की तरफ अपने घोड़े दौड़ा दिये थे।
लेकिन अफसोस अपनी “बहन” को बचाने में हुमायूँ नाकामयाब रहा और रानी कर्णवती ने उसके पहुंचने से पहले ही खुद को “जौहर” कर अपना अंत कर लिया। हालांकि बाद में इस “भाई” ही ने उसके बेटे को मेवाड़ के शासक बनाया और बहादुर शाह को हराया भी था।
बादशाह अकबर.. जो रक्षा बंधन पर पूरे दिन व्यस्त रहते थे
गौरतलब है कि अकबर के संबंध राजपूत घराने से थे,इसलिए ही अकबर इस त्यौहार को बहुत धूमधाम से मनाया करता था और महलों तक मे जश्न का माहौल होता था। अकबर ने राजा भारमल की पुत्री हरखाबाई से विवाह किया था। प्रसिद्व इतिहासकार और मध्यकालीन भारत के इतिहास के लिए जाने माने लेखक इरफान हबीब इस बारे में बताते हैं।
वो लिखते हैं “राजपूत अकबर के दरबार में महत्वपूर्ण पदों पर थे। इसलिए अकबर ने रक्षाबंधन के दिन खास तौर से दरबार में राखी बंधवाने की परंपरा की शुरुआत की, लेकिन देखा यह गया कि इतने लोग बादशाह को राखी बांधने आने लगे कि पूरा-पूरा दिन ही निकल जाया करता था।
जब पिता ऐसा किया करते थे तो बेटे कैसे पीछे रह सकते थे। इसलिए अकबर बादशाह के पुत्र जहाँगीर जो बाद में मुग़ल शासक बनें वो भी रक्षा बंधन का त्यौहार खूब खुशियों के साथ मनाया करते थे। जहाँगीर के बारे में ये तक तथ्य मिलते हैं कि “जहांगीर तो आम जनता में शामिल लोगों से भी राखियां बंधवाते थे। जिक्र मिलता है कि कलाई के साथ ही उनका पूरा हाथ राखी के धागों से भर जाया करता था।
इस तरह स्व मालूम ये चलता है कि भाई बहन के अटूट रिश्ते का त्यौहार सभी से जुड़ा रहा है। इससे जुड़ी कहानियां और दास्तान बहुत पुराने हैं। जिससे कोई भी अछूता नहीं रहा है। चाहें वो बादशाह हो या बादशाह ले वंशज। सभी ने इस पवित्र त्यौहार के मान को बनाये रखा है।