3 जून भारत के लिए एक ऐसी तारीख है जिसका दर्द भारत अभी तक झेल रहा है। आज ही के दिन औपनिवेशिक भारत के आखिरी वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने विभाजन की योजना घोषणा की थी। इसी आधार पर पाकिस्तान के अस्तित्व पर मुहर लगा दी गई थी। लिहाजा इस योजना को “माउंटबेटन योजना” या “3 जून योजना” कहा जाता है। दरअसल, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आजादी की आवाज को बुलंद होते देख अंग्रेज़ हुकूमत ने 20 फरवरी 1947 के दिन भारत को 1948 तक आजाद करने की घोषणा की थी। इस घोषणा के बाद देश में राजनीतिक बहस का दौर शुरू हो गया, जिसके बाद राजनीतिक हिंसा का दौर ऐसा चला की विभाजन के नरसंहार तक, इसे रोका नहीं जा सका।
हिंसा रोकने में अंतरिम सरकार हुई असफल
आजादी की घोषणा के बाद जैसे ही हिंसा बढ़ने लगी, ब्रिटिश हुकूमत को लगा था कि केंद्र की अंतरिम सरकार इस हिंसा को काबू कर लेगी, लेकिन अंतरिम सरकार हिंसा काबू करने में पूरी तरह असफल रही। ऐसी स्थिति में ब्रिटिश हुकूमत को जल्दी ही कोई क़दम उठाना था, तब ब्रिटिश राज साम्प्रदायिक एवं राजनीतिक गतिरोध को समाप्त करने के लिए ‘माउंटबेटन योजना’ के साथ सामने आया। जिसमें भारत के विभाजन और पाकिस्तान के जन्म का खाका था। ब्रिटिश सरकार ने ये फैसला मुस्लिम लीग और कांग्रेस के नेताओं के साथ लंबे विचार विमर्श के बाद लिया था और 3 जून को इसकी घोषणा होने के कारण इसे 3 जून की योजना भी कहा गया।
विभाजन की माउंटबेंटन योजना ( Mountbatten plan) के मुख्य बिंदु
इस योजना में धर्म के आधार पर भारत को दो देशों में विभाजित करने का खाका पेश किया गया था, इस योजना में तीन मुख्य बातें शामिल थीं। पहली, भारत पाकिस्तान के बंटवारे के सिद्धांत को ब्रिटेन सरकार से स्वीकार किया जाएगा, दूसरी- बनने वाली सरकारों को डोमिनियन स्टेट (अर्ध स्वायत्त राज्य व्यवस्था) का दर्जा दिया जाएगा और तीसरी, उसे ब्रिटिश राष्ट्रमंडल से अलग होने या शामिल रहने का फैसला करने का अधिकार मिलेगा। दरअसल, बात उस समय तक के राजनीतिक परिदृश्य में स्थापित हो चुकी थी कि भारत के पंजाब और बंगाल प्रांत का बंटवारा होगा और एक नया देश पाकिस्तान बनेगा। लेकिन यह विभाजन किस तरह से होगा किसे क्या मिलेगा? यह इस योजना के आने से पहले किसी के नहीं पता था। यही खाका इस योजना में तैयार किया गया ।
हर चीज़ के बंटवारे की बनी थी योजना
माउंनबैटन की इस योजना में हर चीज के बंटवारे के लिए एक प्लान था, मसलन परिसंपत्तियों, कर्मचारियों,भूमि, क्षेत्र और सेना का बंटवारा कैसे होगा? सीमा का निर्धारण, राज्य के अधिकार और संविधान निर्माण की प्रक्रिया क्या होगी जैसे प्रश्नों के लिए एक समाधान इस योजना में मौजूद था, और इन्हीं समाधानों और प्लान के आधार पर विभाजन को अमलीजामा पहनाया गया। यही योजना बाद में भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के रुप में विकसित हुई। इसी पर आधारित पर भारत को ब्रिटेन के शासन से मुक्ति मिली और स्वराज स्थापित हुआ और पाकिस्तान के रुप में भारत का एक बडा हिस्सा भी उससे अलग हुआ।
युद्ध से बेहतर है कि भारत-पकिस्तान अलग हो जाएं
इस योजना से पहले ही कांग्रेस के कुछ नेता विभाजन का समर्थन भी कर चुके थे, जेपी कृपलानी का नाम इन सब में सबसे उपर आता है। कृपलानी ने वायसराय को लिखा था कि.“युद्ध से बेहतर यह है कि हम उनकी पाकिस्तान की मांग को मान लें। किन्तु यह तभी संभव होगा जब आप पंजाब और बंगाल का ईमानदारीपूर्वक विभाजन करें।”
क्या थे माउंटबेटन योजना के मुख्य बिंदू
- पंजाब और बंगाल में हिन्दू तथा मुसलमान बहुसंख्यक जिलों के प्रांतीय विधानसभा के सदस्यों बैठक अलग से बुलाई जाएगी और उसमें कोई भी पक्ष यदि प्रांत का विभाजन चाहेगा तो विभाजन कर दिया जायेगा।
- विभाजन होने पर दो डेमोनियन और दो संविधानों का निर्माण किया जाएगा और सिंध इस संबंध में फैसला खुद लेगा।
- उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत तथा असम के सिलहट जिले में जनमत संग्रह द्वारा यह पता लगाया जायेगा कि वे भारत के किस के साथ शामिल होना चाहते हैं।
- इस योजना में भारतीय रजवाड़ों को स्वतंत्र रहने का विकल्प नहीं दिया गया, उन्हें या तो भारत में या पाकिस्तान में सम्मिलित होना था या पाकिस्तान में ।
- डोमेनियन स्टेट के आधार पर भारत-पकिस्तान को सत्ता का हस्तांतरण किया जाएगा।
- यदि विभाजन में गतिरोध उत्पन्न हुआ तो एक सीमा आयोग का गठन किया जायेगा।
पहले बाल्कन योजना के तहत पेश किया गया था
इस योजना के खाके को पहले बाल्कन योजना या “इस्मा योजना” के तहत 15 और 16 अप्रैल 1947 को पेश किया गया था। इस योजना का मुख्य प्रस्ताव यह था कि तमाम प्रान्त एक भारतीय संघ या भारत और पाकिस्तान के दो राज्यों की जगह अलग और स्वतंत्र राज्य बनें और बाद में वो तय करें कि उन्हें किस तरफ शामिल होना है। इस योजना पर माउंटबेटन ने भारतीय नेताओं से किसी तरह की विस्तृत चर्चा नहीं की थी, केवल औपचारिक रूप से भारतीय नेताओं से इस योजना के संबंध में जिक्र किया गया था। भारतीय नेताओं से इसके जिक्र के बाद वो सीधे लंदन चले गए। बाद में माउंटबेटन जब शिमला गए, उस समय उन्होंने यह योजना जवाहर लाल नेहरू के सामने पेश की, इस योजना को सुनते ही उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया। परिणाम स्वरूप माउंटबेटन ने इंग्लैंड को सूचना भेज दी कि शायद यह योजना कामयाब नहीं होगी और वो इसे रद्द करना चाहते हैं। इस अस्वीकृत योजना को बाल्कन प्लान भी कहा जाता है।
बजाय पहले स्वतंत्र उत्तराधिकारी राज्य बनें। इस योजना के अनुसार सभी प्रांतों अर्थात मद्रास, बॉम्बे, बंगाल, पंजाब और उत्तर पश्चिम फ्रंटियर आदि के संयुक्त प्रांतों को स्वतंत्र घोषित करने का प्रस्ताव दिया गया। बाद में ये राज्य तय करेंगे कि वह किस तरफ शामिल होंगे।
पहले इस योजना को लेकर माउंटबेटन ने भारतीय नेताओं के कोई विस्तृत चर्चा नहीं की थी, उन्होंने बेहद अनौपचारिक रूप से भारतीय नेताओं से इसका जिक्र किया था.उन्होंने योजना को अंतिम स्पर्श दिया और सीधे लंदन चले गए. बाद में जब माउंटबेटन जब शिमला गए तब उन्होंने जवाहर लाल नेहरू के सामने इस योजना को पेश किया।
नेहरू ने इस योजना को तुरंत अस्वीकार कर दिया। नेहरू के अनुसार यह योजना भारत के बाल्कनीकरण को आमंत्रित करेगी। नतीजतन, माउंटबेटन ने इंग्लैंड को सूचित किया कि शायद यह योजना कामयाब न हो और वह इसे रद्द करना पसंद करेंगे। इसलिए इस योजना को बाल्कन प्लान भी कहा जाता था।