कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच सीमा विवाद 9 Border Dispute between Maharashtra and Karnataka ) के कारण जारी उठापठक के बीच मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई ( Basavaraj bommai ) ने सोमवार को कहा कि अगर महाराष्ट्र के मंत्री हालिया घटनाक्रम के बाद कर्नाटक में प्रवेश करने की कोशिश करते हैं तो उनकी सरकार उचित कार्रवाई करने में किसी भी तरह का संकोच नहीं करेगी। इस तरह उन्होंने अपनी ही पार्टी की पड़ौसी राज्य की सरकार को चेतावनी दे दी है ।
उन्होंने कहा, ‘अगर महाराष्ट्र के मंत्री राज्य में प्रवेश करने की कोशिश करते हैं, तो संबंधित अधिकारियों को उपयुक्त कानूनी कार्रवाई शुरू करने का निर्देश दे दिया गया है। वही कार्रवाई जो पहले की गई थी, इस बार भी की जाएगी। मुख्यमंत्री बोम्माई ने यह भी कहा कि यह साफ़तौर पर लिखित में कहा गया है कि महाराष्ट्र के मंत्रियों का दौरा मौजूदा हालात में सही नहीं है और इससे राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है।
बोम्माई ने कहा, ”इसके बावजूद कर्नाटक का दौरा करने का उनका (महाराष्ट्र के मंत्रियों का) फैसला सही नहीं है। इस स्थिति में महाराष्ट्र के मंत्रियों का दौरा उकसावे की कार्रवाई है। इसके अलावा, यह लोगों की भावनाओं को भड़काने जैसा होगा। उन्होंने यह भी कहा कि वह इस मुद्दे पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से बात करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, समन्वय मंत्रियों चंद्रकांत पाटिल और शंभूराज देसाई ने घोषणा की है कि वे 6 दिसंबर को बेलगावी का दौरा करेंगे।
यह विवाद 1960 के दशक में भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के बाद शुरू हुआ था। बेलगावी में बड़ी मराठी भाषी आबादी के कारण, महाराष्ट्र इसे अपने क्षेत्र का हिस्सा होने का दावा करता है। यह कर्नाटक के कई गांवों पर भी दावा करता है जहां मराठी भाषी लोग रहते हैं। इससे पहले एकनाथ शिंदे ने कहा, ‘हम सीमावर्ती इलाकों में मराठी लोगों को न्याय दिलाने का काम कर रहे हैं। महाराष्ट्र में एक इंच भी जगह कहीं नहीं जाने दी जाएगी। उन्होंने कहा, ’40 गांवों की समस्याओं का समाधान करना हमारी सरकार की ज़िम्मेदारी है।
क्या है कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच का सीमा विवाद
बात 1956 की है, जब देशभर में भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया गया। इस दौरान कुछ राज्यों का दूसरे राज्यों में विलय हुआ तो कुछ नए राज्यों का उदय हुआ। राज्यों के पुनर्गठन के लिए 1953 में गठित किए गए जस्टिस फ़ज़ल अली आयोग द्वारा 1955 में अपनी रिपोर्ट पेश करने के बाद, उनकी सिफारिशों के आधार पर राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 लाया गया था ।
1 नवंबर 1956 को तात्कालीन मैसूर ( वर्तमान कर्नाटक )आस्तित्व में आया, भाषा के आधार पर राज्यों के गठन के दौरान मराठी भाषी क्षेत्रों में एक आंदोलन शुरू हुआ, जिसके बाद 1 मई 1960 को महाराष्ट्र राज्य की स्थापना हुई। इसके लिए तात्कालीन बॉम्बे राज्य का उत्तरी हिस्सा नए आस्तित्व में आए गुजरात राज्य में तो दक्षिणी हिस्सा महाराष्ट्र में मिला दिया गया, महाराष्ट्र के निर्माण के लिये कोकण, मराठवाड़ा, विदर्भ और अन्य मराठी भाषी क्षेत्रों को भी शामिल किया गया ।
इसी दौरान कर्नाटक में स्थित बेलगावी ज़िले को महाराष्ट्र में शामिल करने की मांग उठी । बेलगावी में बड़ी आबादी मराठी भाषियों की है, इस दौरान कई आंदोलन भी हुए । महाराष्ट्र में महाराष्ट्र एकीकरण आंदोलन ने आकार लिया , धीरे धीरे यह विवाद । महाराष्ट्र और कर्नाटक सरकार के बीच एक ऐसा विवाद बन गया कि इसके निवारण के लिए तात्कालीन कांग्रेस सरकार ने 25 अक्टूबर 1966 को जस्टिस महाजन की अगुआई में एक आयोग का गठन किया।
आयोग ने 1967 में अपनी रिपोर्ट केंद्र को सौंप दी, इस रिपोर्ट में आयोग ने कर्नाटक के 264 कस्बों और गांवों को महाराष्ट्र में और महाराष्ट्र के 247 गांवों को कर्नाटक में विलय का सुझाव दिया था। 1970 में केंद्र सरकार ने इसे संसद में पेश किया, जिसके बाद मराठी भाषी क्षेत्रों को महाराष्ट्र में और कन्नड़ क्षेत्रों को कर्नाटक में शामिल करने की मांग उठती रही है।
2007 में कर्नाटक सरकार ने विधानसभा बेलगावी में सुवर्ण विधान सौधा ( विधानसभा ) का निर्माण शुरू किया । यह निर्माण बेलगावी में कर्नाटक के दावे को और मज़बूत करने के लिए किया गया । यह निर्माण कार्य 2012 में पूर्ण हुआ और 2012 में ही इस विधानसभा भवन का उद्घाटन किया गया। तब ही से कर्नाटक विधानसभा का शीतकालीन सत्र बेलगावी में आयोजित किया जाने लगा। जैसे ही कर्नाटक विधानसभा का शीतकालीन सत्र करीब आता हाई, बेलगावी समेत कर्नाटक और महाराष्ट्र की सीमा में हालात तनावपूर्ण हो जाते हैं। साल 2021 में भी हालात बेहद तनावपूर्ण हो गए थे।
साल था 2004, जब महाराष्ट्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे को लेकर गई थी, और वहाँ पर यह मांग की गई कि कर्नाटक के 5 जिलों बेलगावी, बीदर, कलबुर्गी, विजयपुरा और कारवार के 865 गांवों को महाराष्ट्र में मिला दिया जाए। कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच इस विवाद पर कर्नाटक की दलील ये है कि राज्यों की सीमा तय करने का अधिकार संसद को है नाकि कोर्ट को, और यह अधिकार हमें संविधान का अनुच्छेद 3 देता है।
अब देखना ये है कि यह विवाद कैसे सुलझता है, फ़िलहाल केंद्र और दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार है । ऐसे में भाजपा के लिए यह मामला बेहद समस्या पैदा करने वाला बन गया है।