हिटलर के जर्मनी का भयानक दौर आज से शुरू हो गया था

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जर्मनी का इतिहास एक भयानक दौर को अपने में समेटे हुए है, जिसमें लाखों यहुदियों को दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया गया था। यही नहीं, इस दौर में यहुदियों न सिर्फ यहुदियों के मौलिक अधिकार छीन लिए गए, लाखों यहुदियों को मौत के घाट उतार दिया गया। जिस दौर की हम बात कर रहे हैं, उसे इतिहास में नाजीवाद का नाम दिया गया है। ऐसा इसीलिए क्योंकि वहाँ उस समय नाज़ियों की सत्ता थी। 

पर क्या आप जानते है कि आज के दिन यानी 15 सिंतबर का जर्मनी के इस क्रूर इतिहास से एक गहरा नाता है। दरअसल आज के ही दिन जर्मनी की नाजीवादी सरकार ने उलटे स्वास्तिक को अपने झंडे के प्रतीक चिन्ह के रूप में अपनाया था। 

यहुदियों की छीन ली थी नागरिकता 

जर्मन वेबसाइट dw.com के अनुसार आज के दिन ही जर्मनी में न्यूरेम्बर्ग कानून बनाकर यहूदियों को आधिकारिक तौर पर राज्य की नागरिकता से वंचित कर उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया गया था। साथ उल्टे स्वास्तिक (जो आर्यों का प्रतीक चिह्न माना जाता था।) को जर्मनी के राष्ट्रीय ध्वज के रूप ने अपनाया गया। 

यहुदी दुकानदार का टूटा हुआ स्टोर
Britannica.com से साभार

दोयम दर्जे का नागरिक बनने के बाद यहूदियों को सरकार व सार्वजनिक पदों और व्यवसाओं के लिए भी अयोग्य घोषित कर दिया गया था। पहले जर्मनी में यहुदियों द्वारा चलाए जा रहे, व्यवसायों का बहिष्कार हो रहा था, परंतु इस कानून ने बहिष्कार को कानूनी मान्यता दे दी। इसके साथ ही यहूदियों और आर्यों के बीच शादी पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था।

ऐसे तय हुआ जर्मन-यहूदी होने का आधार

Dw.com की मानें तो पहले इसकी कोई स्पष्ट कानूनी परिभाषा नहीं थी। अगर किसी जर्मन के पूर्वज अगर यहूदी हुए तो उन्हें किस श्रेणी में गिना जाएगा, और इसलिए कई सारे यहूदी इस भेदभाव से बच गए। लेकिन न्यूरेम्बर्ग कानून में इसे भी स्पष्ट कर दिया गया।

इस कानून में कहा गया कि अगर किसी व्यक्ति की बीती तीन या चार पीढ़ी जर्मन थीं, तो उसे जर्मन की नागरिकता श्रेणी में ही गिना जाना था। इसके अलावा अगर किसी व्यक्ति के बीती तीन या चार यहूदी थीं, उन्हें यहूदियों के श्रेणी में गिना जाने लगा। साथ ही एक या दो यहूदी पीढ़ी के पूर्वज वालें लोगों को मिश्रित खून वाला वर्णसंकर कहा जाने लगा ।

सिविल सेवा में जाने पर भी लगाया प्रतिबंध 

akg images से साभार

जर्मन में यहुदियों पर एक के बाद एक प्रतिबंध लगते गए, इसी दिशा में रेस्टोरेशन ऑफ प्रोफेशनल सिविल नाम का एक कानून बनाया गया, जिसके तहत गैर-आर्यों को सिविल सर्विस में आने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इस कानून की सहायता से नाजियों के राजनैतिक प्रतिद्वंदियों को सिविल सर्विसेज की परीक्षा में भाग लेने पर ही प्रतिबंध लगा गया।

अन्य वर्गों पर भी लागू हुआ कानून 

शुरुआत में इस कानून से यहुदियों की नागरिकता छीनकर उन्हें मौलिक अधिकारों से वंचित किया गया। पर यह कानून केवल यहूदियों तक सीमित नहीं रहे बल्कि बाद में इन्हें जिप्सियों या बंजारों और अश्वेतों पर भी लागू कर दिया गया।

60 लाख यहुदियों ने गंवाई अपनी जान

ये कानून हिटलर के अत्याचार की बस शुरूआत भर थी। हिटलर के उदय से उसके पतन तक जर्मनी में कुल 60 लाख यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया गया था।  दरअसल, 1933 में हिटलर के सत्ता में आते ही यहूदियों के प्रति लोगों में नफरत बढ़ने लगी। जब नाजी पार्टी सत्ता में आई, तो जल्दी ही ये विचारधारा बन गई और यहूदियों को व्यवस्थित और सुनियोजित तरीके से निशाना बनाया गया। 

 हिटलर के इस कार्यकाल में इतनी बड़ी संख्या में यहुदियों को मारा गया कि विश्व इतिहास में इसे “द होलोकास्ट” यानी नरसंहार का नाम दिया गया था। जर्मन में 1933 से 1945 तक यहूदी होना किसी पाप से कम नहीं था। यह नरसंहार 1941 में शुरु हुआ और 1945 तक लगातार चलता रहा।  

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