“राजा” जो अपने प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़कर खुद प्रधानमंत्री बना

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वीपी सिंह, “राजा माण्डा” जो भारत के 7वें प्रधानमंत्री बनें और देश के सबसे बहुमूल्य पद को पाने के लिए इन्होंने अपने ही प्रधानमंत्री के खिलाफ देश भर में आंदोलन खड़ा कर दिया,जी हां आज इन्हीं का जन्मदिन है,आइये जानते हैं वीर प्रताप सिंह के बारे में कुछ अनोखे किस्से।

इकलौते “राजा” जो देश के प्रधानमंत्री भी बनें

वीपी सिंह गढ़वाल घराने के 41वें “राजा बहादुर” थे,इनकी ख्याति इलाहाबाद,वाराणसी और गोरखपुर के क्षेत्र तक फैली हुई थी,ये देश के एकमात्र ऐसे पूर्व शासक थे जो देश के प्रधानमंत्री भी बनें, हालांकी भारत के संविधान के अनुसार कोई भी “राजा” या “बादशाह” नहीं हो सकता है।

लेकिन ज़ुबान पर चढ़ी बात तो लोगों के मुंह से आसानी से जाती नही है, इसलिए इनके चुनावी क्षेत्र के लोग अक्सर इन्हें राजा बहादुर जी ही कहा करते थे,इलाहाबाद और फूलपुर लोकसभा से कई बार सांसद चुने गए वीपी सिंह के चाहने वाले लाखों में थे।
पहले सीएम,फिर रक्षा मंत्री और आखिर में देश के प्रधानमंत्री
विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के उन चुनिंदा नेताओं में शुमार हैं जो देश के तीन सर्वोच्च पदों तक पहुंचे थे और सत्ता पर काबिज़ हुए थे,इलाहाबाद के क्षेत्र में 1931 में जन्में वीपी सिंह 1980 में देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे,और 1984 मे राजीव गांधी की सरकार मे देश के वित्त और रक्षा मंत्री चुने गए थे।

हालांकि राजघराने से सम्बंध रखने वाले मांडा के राजा को अभी प्रधानमंत्री भी बनना था,क्योंकि उन्होंने राजनीति में हो रहे बदलाव को अपनी तीखी और तेज़ तर्रार नज़रों से परख लिया था और उनकी समझ मे आ गया था कि असल मे “देश का माहौल क्या है”।

इसलिए उन्होंने 1987 में रक्षा मंत्रालय से इस्तीफा देकर 1988 में “जन मोर्चा” बना लिया और 1989 में हुए चुनावों के बाद भाजपा की मदद से देश के 7वें प्रधानमंत्री बनें।

बोफ़ोर्स घोटाले के नाम पर “जन मोर्चा” के निर्माण और राजनीतिक परिवर्तन

बोफ़ोर्स घोटाला जिसकी चर्चा आज तक गाहे बगाहे होती रहती है,इसका शोर 1987 में उठा था,तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर ये आरोप लगाया गया कि उन्होंने बोफ़ोर्स तोप खरीदने में भारी घोटाला किया है,और इसी मुद्दे को हाथों हाथ लेकर उन्ही की सरकार में रक्षा मंत्री वीपी सिंह ने मोर्चा खोल दिया।
इस कथित घोटाले में प्रसिद्ध अभिनेता और इलाहाबाद से तत्कालीन सांसद अमिताभ बच्चन का नाम भी आया था,जिसके बाद मीडिया से लेकर देश भर में ये इस घोटाले की चर्चा होनी शुरू हो गयी थी,हालांकि बाद में उन्हें क्लीन चिट मिली थी। लेकिन इस वक़्त राजीव गांधी की सरकार के खिलाफ माहौल बनना शुरू हो गया था,इस माहौल ही का फायदा उठा कर वीपी सिंह ने देश भर में कांग्रेस की सरकार के खिलाफ झंडा बुलंद कर दिया।

जनमोर्चा और भारी जीत

राष्ट्रीय जनमोर्चा या जनमोर्चा के नाम से प्रसिद्ध ये राष्ट्रीय गठबंधन बहुत सारी गैर कांग्रेसी पार्टियों का गठजोड़ था जो कांग्रेस के खिलाफ अलग अलग क्षेत्रों में राजनीतिक लड़ाई लड़ रहीं थी,और राष्ट्रीय ज़न मोर्चा के अध्यक्ष वीर प्रताप सिंह थे, जिनकी पहचान बड़ा चश्मा और शान्त स्वभाव और नवाबों वाली टोपी हुआ करती थी।

1989 में कांग्रेस के खिलाफ हुए चुनाव में जनमोर्चा को देश भर में भारी जीत मिली,और कुल 143 सीटों के साथ वो दूसरे नम्बर पर आए,हालांकि कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनीं थी,लेकिन भाजपा और लेफ्ट फ्रंट के समर्थन के साथ ज़रूरी संख्या पूरी करते हुए सरकार बनाने का दावा वीपी सिंह ने पेश कर दिया।
फिर जो हुआ वो इतिहास में दर्ज है, एक ऐसा कारनामा जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है, अपने ही प्रधानमंत्री के खिलाफ एक केबिनेट मिनिस्टर ने देश भर में घूम घूम कर प्रचार करके चुनाव लड़ा और फिर खुद देश का प्रधानमंत्री बना, ये ही थे मांडा के राजा बहादुर वीपी सिंह।

मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू कर इतिहास रच दिया।

मंडल कमीशन की सिफारिशों को एक झटके में देश भर में लागू करते हुए ऐतिहासिक कारनामा करके दिखाया जो सालों से रुकी हुई थी,इन सिफारिशों के बाद ओबीसी आरक्षण 27 फीसदी बढ़ा दिया गया था,और इतिहास मे ये श्रेय इन्हीं को जाता है।
ये आरक्षण सरकारी नौकरियों में गिना जाने लगा,हालांकि इसके खिलाफ देश मे विरोध और समर्थन दोनों ही प्रतिक्रिया बराबर आयी थी लेकिन वो “राजा” ही क्या जो अपने कदम को 100 बार सोच कर न रखे और रखे तो उससे पीछे न हटें।

वीपी सिंह को क्यों याद किया जाए?

आज वीपी सिंह जैसे नेताओं को याद करते हुए ख्याल आता है कि क्या बेहतरीन दौर था वो जब अपने ही प्रधानमंत्री के खिलाफ प्रचार करने वाला खुद प्रधानमंत्री बन सकता था वरना आज की स्थिति तो ये है कि चुनाव “मुख्यमंत्री” के चेहरों पर होता है चाहे माहौल कुछ भी हो।

वीपी सिंह का नाम उन नामों में हैं जो इतिहास में अपनी बहादुरी और निर्भीकता के लिए हमेशा याद रखें जाएंगे क्योंकि ऐसे साहसी कदम उठाने वालों की गिनती तो उंगली पर की ही जा सकती है,और ये नाम खास होते हैं वीपी सिंह भी ऐसा ही नाम हैं।