“नेताजी” जिन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ आर्मी बनाई

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1947 में हो रहे भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सुभाष चंद्र बोस एक अहम सेनानी थे। उन्हें नेताजी के नाम से जाना जाता था। नेता जी ने ही भारत को ‘जय हिंद ‘ का अमर नारा दिया। उनका कथन, “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा” काफी लोकप्रिय हुआ था। इन्होंने ही आजाद हिंद फौज का नेतृत्व किया था।

आज ही के दिन, 18 अगस्त 1945 को उन्होंने ताइबान के ताइहोकू सैनिक अस्पताल में अपना दम तोड़ा था। मगर यह कोई सामान्य मृत्यु नहीं थी। आज तक इस घटना के ठोस सबूत और सही रिकार्ड मौजूद नहीं है।

नेताजी का व्यक्तिगत जीवन

इस महान और वीर स्वतंत्रता सेनानी का जन्म 23 जनवरी 1897 में कटक, ओडिशा में हुआ था। पिता वकील थे और बाद में बंगाल विधानसभा के सदस्य भी बने। बोस की कुल 6 बहनें और 7 भाई थें। उन्होंने कोलकाता यूनिवर्सिटी से बीए ऑनर्स की पढ़ाई की। बाद में बोस आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए।

कम उम्र से ही था स्वतंत्रता सेनानी बनने का सपना

24 साल की उम्र में उन्होंने महात्मा गांधी से मुलाकात की थी। 20 जुलाई 1921 को इंग्लैंड से लौटने के बाद उन्होंने गांधी जी से मुंबई में मुलाकात की। उस वक्त गांधी जी का असहयोग आंदोलन देशभर में काफी जोरों से चल रहा था।

उन्होंने इसी आंदोलन में सुभाष चन्द्र बोस को कोलकत्ता से काम करने के लिए भेजा। कोलकत्ता में इस आंदोलन का नेतृत्व दासबाबू कर रहे थे,जिनके साथ मिलकर नेताजी भी कार्य करने लगे।

नेहरू जी के साथ जुड़कर नेताजी ने कांग्रेस में युवाओं की इंडिपेंडेंस लीग बनाई। 1927 में साइमन कमीशन की खिलाफ नेताजी ने कोलकत्ता में मुहिम की बाग डोर संभाली थी।

आजाद हिंद फौज में बनाई खुद की पहचान

सुभाष चंद्र बोस को 4 जुलाई 1943 को रासबिहारी बोस ने आजाद हिंद फौज की कमान सौंपी थी। उन्होंने जापान के सहयोग से अंग्रेजों को भारत से भगाने का काम इस फौज की मदद से करने का प्रयास किया था। नेताजी को इस फौज का सर्वोच्च कमांडर चुना गया था।

दूसरे विश्व युद्ध के समय अंग्रेजों के खिलाफ नेताजी ने लड़ने की ठान ली थी। इसी फौज में रहते हुए उन्होंने लोगों को सबसे बड़ा नारा, “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा, जय हिंद!” दिया था।

नेताजी की मृत्यु आज भी रहस्य

जापान के दूसरे विश्व युद्ध हारने के बाद अंग्रेज सुभाष चन्द्र बोस के जान के पीछे पड़ गए थे। इसके लिए उन्होंने रशिया से मदद मांगने के लिए 18 अगस्त 1945 को मंचूरिया के लिए उड़ान भरी। उस उड़ान के ठीक 5 दिन बाद टोक्यो रेडियो से प्रसारित समाचार में जानकारी दी गई कि वह विमान उसी दिन दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। विमान ताइहोकु एयरपोर्ट के पास क्रैश हुआ था।

नेताजी ने ताइहोकु के सैनिक अस्पताल में ही अपना दम तोड़ा। मगर आज उनके निधन के 76 साल बाद भी उनकी मृत्यु के ठोस सबूत भारत के पास नहीं है।

उनकी मृत्यु के सच को जानने के लिए कुल 3 कमिटी बनाई गई थी। इनमें से दो ने टोक्यो की रिपोर्ट को सही माना और बताया कि उनकी मृत्यु विमान के क्रैश से ही हुई थी।

मगर मनोज मुखर्जी की 1999 में गठित कमिटी ने अपने रिपोर्ट में बताया कि ताइवान सरकार के पास उस वक्त के किसी भी विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने का ठोस रिकॉर्ड मौजूद नहीं है।

क्या नेताजी ही थे गुमनामी बाबा?

यूपी के अयोध्या (तब फैजाबाद) में लोगों ने यह दावा किया था कि उन्होंने सुभाष चंद्र बोस को उनके देहांत के बाद भी देखा था। लोगों ने उन्हें गुमनामी बाबा के रूप में देखा था।

बाद में जब गुमनामी बाबा की मृत्यु हुई तो उनके पास से नेताजी के कई सारे तस्वीर, उनके लिखे हुए लेख और उनके मृत्यु के जांच के लिए गठित कमिटी के रिपोर्ट मिले थे।