ई कॉमर्स के नए नियमों से क्यों नाखुश हैं TATA और Amazon ?

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धोखाधड़ी और अनुचित व्यापार प्रथाओं पर रोक लगाने के लिए भारत सरकार ने देश के ई-कॉमर्स नियमों को सख़्त करने का प्रस्ताव दिया है। भारत ने इस हफ्ते अमेज़ॅन और टाटा के प्रतिनिधियों सहित सरकारी अधिकारियों से मुलाकात की और ऑनलाइन खुदरा विक्रेताओं की ‘फ्लैश सेल’ को सीमित करने के लिए रूपरेखा तैयार की है। निजी स्तर पर लगाम लगाने के साथ-साथ इन कंपनियों में ग्राहकों की शिकायतों का निस्तारण करने के लिए एक अलग प्रणाली बनाना अनिवार्य किया है।पहले हुई एक बैठक में कंपनियों के अधिकारियों ने उपभोक्ता मामलों के विभाग को बताया था कि वे प्रस्तावित नियमों को लेकर चिंतित हैं ।

गौरतलब है कि नए प्रस्ताव में फ्लैश बिक्री को सीमित करना, उनमें कुछ तरह की फ्लैश सेल पर बैन और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म की ओर से नियमों को नहीं मानने पर कार्रवाई शामिल है।  भ्रामक विज्ञापनों को रोकना और शिकायतों को संभालना, अमेज़ॅन और फ्लिपकार्ट को अपने व्यावसायिक ढांचे की समीक्षा करने और रिलायंस इंडस्ट्रीज के जियोमार्ट, बिगबास्केट और स्नैपडील सहित घरेलू प्रतिद्वंद्वियों की लागत में वृद्धि करने के लिए मजबूर कर सकता है। प्रस्तावित संशोधनों में ई-कॉमर्स संस्थाओं को किसी भी कानून के तहत अपराधों की रोकथाम, पता लगाने और जांच और अभियोजन के लिए सरकारी एजेंसी से आदेश प्राप्त होने के 72 घंटे के भीतर सूचना प्रदान करनी होगी। इसके उल्लंघन में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है।

अमेज़ॅन ने तर्क दिया है कि कोविड-19 महामारी के चलते पहले ही छोटे व्यवसाय प्रभावित हुए हैं और प्रस्तावित नियमों का उसके विक्रेताओं पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा । प्रस्तावित नीति में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ई-कॉमर्स कंपनियां अपने किसी भी संबंधित उद्यम को वेंडर के रूप में वेबसाइट पर सूचीबद्ध न करें। अमेज़ॅन विशेष रूप से प्रभावित हो सकता है, क्योंकि इसके दो विक्रेताओ ‘क्लाउडटेल’ और ‘अप्पारियो’ में अप्रत्यक्ष हिस्सेदारी है। रिलायंस के एक कार्यकारी ने बताया कि प्रस्तावित नियमों से उपभोक्ताओं का विश्वास बढ़ेगा, लेकिन कुछ शर्तों को स्पष्ट करने की आवश्यकता है।

उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के एक अधिकारी ने दावा किया कि ये नियम उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए हैं और दूसरे देशों की तरह सख्त नहीं हैं । इसका मुख्य उद्देश्य ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म में पारदर्शिता लाना है । उल्लेखनीय है कि मौजद समय में ई-कॉमर्स कम्पनियां ,कंपनी अधिनियम, भारतीय भागीदारी अधिनियम या सीमित देयता भागीदारी अधिनियम के तहत पंजीकृत हैं न कि डीपीआईआईटी के साथ।

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