नई दिल्ली, 4 मई: सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 (3) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने से गुरुवार को इंकार कर दिया, जो आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने और दो साल या उससे अधिक की सजा पाए जाने पर सांसदों और राज्य के विधायकों को स्वत: अयोग्य ठहराने से संबंधित है।
याचिकाकर्ता आभा मुरलीधरन के वकील ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 (3) संविधान के दायरे से बाहर है क्योंकि यह संसद के निर्वाचित सदस्य या विधानसभा सदस्य की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगाती है।
उन्होंने प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ से कहा कि यह प्रावधान एक विधायक को उनके निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं द्वारा उन्हे दिए गए कर्तव्यों का स्वतंत्र रूप से निर्वहन करने से रोकता है।
पीठ ने कहा, ”नहीं, हम इस याचिका पर विचार नहीं करेंगे। पीड़ित पक्ष को हमारे सामने आने दीजिए । पीठ ने कहा, ”आप एक व्यक्ति के रूप में कैसे प्रभावित होते हैं? जब आप प्रावधान के कारण अयोग्य हो जाते हैं, तो हम इस पर गौर कर सकते हैं। अभी नहीं। या तो अपनी याचिका वापस लें या हम इसे खारिज कर देंगे। अदालत ने कहा : क्षमा करें, हम इस मुद्दे पर केवल पीड़ित व्यक्ति को सुनेंगे।
धारा 8 (3) कहती है, “किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया व्यक्ति और कम से कम दो साल के कारावास की सजा सुनाई गई है [उप-धारा (1) या उप-धारा (2) में संदर्भित किसी भी अपराध के अलावा] ऐसी दोषसिद्धि की तारीख से अयोग्य घोषित किया जाएगा और उसकी रिहाई के बाद से छह साल की अवधि के लिए अयोग्य घोषित किया जाएगा।
याचिका में कहा गया है कि धारा 8 (3) जनप्रतिनिधित्व कानून के अन्य प्रावधानों की उपधारा (1) के विपरीत है। पीठ ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत अयोग्यता पर विचार करते समय प्रकृति, गंभीरता, भूमिका, नैतिक अधमता और आरोपी की भूमिका जैसे कारकों की जांच की जानी चाहिए।
याचिकाकर्ता ने कहा कि धारा 8 (3) सजा और कारावास के आधार पर स्वत: अयोग्यता का प्रावधान करती है, जो स्वयं विरोधाभासी है और अयोग्यता के लिए उचित प्रक्रिया के बारे में अस्पष्टता पैदा करती है।