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समकालीन भारतीय राजनीति में गठबंधन का सिर्फ एक नियम होता है, 'सत्ता'

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भारत में राजनीति जैसा विषय नया नहीं है, ये हर्यक वंश से पहले भी पहचान रखता था और आज भी रखता है। शुद्ध राजनीति का अस्तित्व स्वतंत्रता के पश्च्यात ही देखने को मिलता है और आज़ादी ने भारतीय राजनीति को राजनीतिक संगठनो की सीमाओं में बाँध दिया है,विभिन्न विचारधाराओ ने राजनीति के विभिन्न रूपों को उजागर किया है।
राजनीतिक विचारधारा कोई अलग चीज़ नहीं है. यह बस समाज,व्यवस्था,सेवा को अपने अपने नज़रिए से देखने-समझने का एक तरीका है ऐसे ही कुछ तरीके भारत में भी विभिन्न राजनीतिक संगठनो द्वारा अपनाये जाते है।
वास्तव में राजनीति,विचारधारा,व्यवस्था(सरकार) आपस में जुडे हुए है। विचारधारा से राजनीति और राजनीति से व्यवस्था। समय के साथ साथ ही भारतीय लोगो में राजनीतिक परिपक्वता (समझ) आई है और वो हर राजनितिक क्षेत्र विचारधारा व मुद्दों को समझने लगे है। इसी राजनीतिक समझ ने भारत में एक विचारधारा के प्रभुत्व को तोड़कर गठबंधन जैसे नए राजनीतिक नियमो को बनाया है।
समकालीन समय में भी ये सत्ता प्राप्ति व सभी पक्षों का समर्थन हासिल करने का एक ज़रिया मात्र बन कर रह गया। कुछ समय पहले तक गठबंधन सत्ता को स्थिरता प्रदान करने का साधन था लेकिन आज की राजनीतिक दुनिया में इसकी प्रासंगिकता पर सवाल खड़ा हो गया है।
हां, ये विभिन्न विचारधाराओ का मेल हो सकता है लेकिन विपरीत विचारधाराओं का मेल भी व्यवस्था के लिए बुरा साबित हो सकता है।
गठबंधन का धर्म कहीं न कही अपने अस्तित्व,विचारधारा को एक कर देने की भी दुहाई देता है जिससे व्यवस्था से जुडे मुद्दों पर अधिक ध्यान दिया जा सके। लेकिन जब तक विभिन्न विभिन्न विचारधाराओ के स्थान पर एक सामूहिक विचारधारा न बन पाए तब तक गठबन्ध के सारे नियम, धर्म कार्य नहीं करते।
समकालीन भारतीय राजनीति में गठबंधन का सिर्फ एक नियम होता है, ‘सत्ता’. इससे पहले धुर विरोधी और इसके बाद नाम मात्र का विकास। इसका बड़ा कारण अपने ही संगठन और गठबंधंन के मूल्यों को न पहचानना हो सकता है लेकिन भारत में गठबंधन की राजनीति मूल्यों, नियमो , व नैेतिकता से कही आगे आ चुकी है जहाँ इसे नही आना चाहिए था।
वर्तमान समय में भारत में लगभग हर स्थान पर हर रूप में संगठनो का गठबन्धन देखने को मिलता है जो वैचारिक रूप से विपरीत पर इच्छा सामान रखते है(सत्ता). ऐसी राजनीतिक परिस्तिथिया या ऐसी सरकारें उपरी तौर पर सामान्य हो सकती है लेकिन आंतरिक रूप इसमें जाने कितने हित आपस में टकराते है। ये निचले स्तर की राजनीति, जनता के साथ धोखा,भविष्य के साथ खिलवाड़ है।
आजकल सरकारे बनाने के लिए गठबंधन का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। राजनीतिक रिश्तो का बनना टूटना आम बात हो गई है। गठबंधन की राजनीति अपने चरम(शीर्ष) पर है और यहाँ तक आने के बाद इस प्रकार की राजनीति का पतन आरम्भ होता है।सवाल यह है की एक दल के प्रभुत्व ,गठबंधन की राजनीति के बाद क्या???