सीबीआई के नए डायरेक्टर एम नागेश्वर राव के ख़िलाफ़ घूसखोरी के कई मामले हैं. आलोक वर्मा ने इन्हें हटाने की सिफारिश दी थी. सीवीसी ने मांगें नहीं मानी और राव के ख़िलाफ़ जांच नहीं हुई. अब घूसखोर अस्थाना को बचाने के लिए नागेश्वर राव को कमान दे दी गई.
लोकपाल क़ानून 2013 में ये प्रावधान किया गया था कि सीबीआई की नियुक्ति प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और भारत का मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा चुना गया कोई नुमाइंदा करेगा. हटाने की प्रक्रिया में भी यही लोग शामिल रहेंगे.
फिर मोदी सरकार ने क़ानून में तब्दीली कर दी. सत्ता में आते ही नवंबर 2014 में ये क्लाउज डाल दिया कि अगर तीन में से कोई व्यक्ति मौजूद नहीं रहता है तो इससे सीबीआई निदेशक की नियुक्ति रुकेगी नहीं. यानी अधूरे पैनल से भी ये नियुक्ति हो सकती है. मतलब मोदी जी चाहे तो अकेले कर सकते हैं.
पहले सीवीसी के पास ये अधिकार था. अभी फिर से सीवीसी को कमान थमाई जा रही है. क़ानून बनाया था कि चूचू का मुरब्बा ?
अस्थाना के ख़िलाफ़ जो लोग जांच कर रहे थे नागेश्वर राव ने सबको हटा दिया.
- अस्थाना और वर्मा में नहीं बनती थी. वर्मा और राव में भी ठनी हुई थी. वर्मा ने राव को सीबीआई से बर्खास्त करने को कहा था.
- अस्थाना को नापने निकले वर्मा को मोदी ने नाप दिया. अस्थाना हाई कोर्ट पहुंचे और वर्मा सुप्रीम कोर्ट, लेकिन सीबीआई पहुंचे राव.
- अब राव का दुश्मन वर्मा, अस्थाना का दुश्मन वर्मा. दोनों के दुश्मन एक, इसलिए दोनों दोस्त हुए.
- दोस्त के ख़िलाफ़ जो लोग जांच कर रहे थे उनको हटा देना ही दोस्ती है. मोदी जी के क़रीबी हैं अस्थाना. अजीत डोभाल के करीबी राव. अजीत डोभाल मोदी के करीबी. सब सबके करीबी हैं. करीब-करीब सब अस्थाना हैं.
सीबीआई PMO को रिपोर्ट करती है. CBI में जो कुछ चल रहा था उसकी पूरी जानकारी मोदी को थी. मोदी ने चलने दिया. जब अस्थाना घिरे, रफ़ाएल पर मोदी घिरे तो वितंडा बनाकर इसे CBI की अंदरूनी लड़ाई बता दिया गया.